साझा आवाज साझा पहचान,दलित पसमांदा एक समान।

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आपकी समस्याओं का हल और कोई नहीं करेगा इसे हल करने के लिए आपको खुद ही आगे आना होगा। दलितों और पसमांदा समाज के लोगों को अब जरुरत ये है की वो हाथ से हाथ मिलाए और अपनी साझा समस्याओं को मिल कर हल करें।

दलित पसमांदा क्लेकटिव जस्टिस प्रोजेक्ट एक ऐसी ही आवाज है जो साझा आवाज और साझा पहचान की सोच को आगे बढ़ाने के मकसद से शुरू किया गया है। जिस तरह लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षित सीटें होने पर दलितों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है लेकिन तब भी आए दिन दलितों पर हो रहे ज़ुल्म और उनके साथ लगातार नाइंसाफी की खबरें देखने और सुनने को मिल जाती है।

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वहीं पसमांदा समाज यानी मुस्लिमों में वो समाज जो पीछे रह गया है वो भी समस्याओं से घिरा हुआ है। पसमांदा समाज की समस्याओं को उनके खुद के समाज का बहुत बड़ा तबका समस्या मानने को तैयार ही नहीं है क्योंकि वो आंखों पर पट्टी बांध कर सिर्फ फिक्र का ढोंग करना चाहते हैं.

जब हम ये समझ चुके हैं की दलित और पसमांदा समाज की समस्याएं एक जैसी है इसलिए उनका हल भी क्यों न मिलकर किया जाए? क्यों नहीं समाज के कुलीन वर्ग के ज़ुल्म और संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रख कर एक ऐसा मंच बनाया जाएं जो इन दोनों की समस्याओं को बुलंद आवाज के साथ उठाए।

दलित पसमांदा क्लेक्टिव जस्टिस प्रोजेक्ट एक ऐसी ही कोशिश है,ऐसी आवाज है जिसका मकसद बराबरी की धारणा को बढ़ चढ़ कर आगे बढ़ाना है। संविधान का बराबरी का सिद्धांत ही हमारा नारा है। जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी की मुहिम को प्राथमिकता पर रखना ही हमारा मिशन है।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

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