महज़ चौदह साल की उम्र में निबंध लिखने वाली देश की पहली महिला दलित लेखिका के बारे में जानिए

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मुक्ता साल्वे का जन्म 1840 में पुणे में हुआ था। यह वह समय था जब जातियों के आधार पर भेदभाव ज़्यादा होता था और सवर्ण लोगों का दबदबा कायम था। मुक्ता का जन्म उस समय की अछूत मानी जाने वाली जाति “मांग” में हुआ था। मुक्ता साल्वे ने लेखन के माध्यम से ही अपने दौर में अछूतों के साथ होने वाले भेदभाव और सवर्ण लोगों की दकियानूसी सोच पर गहरा प्रहार किया था।

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मांग कौन सी जाति है?

मांग जाति के लोग मुख्य रुप से महाराष्ट्र में रहते हैं। मांग जाति को मातंग भी कहा जाता है। मातंग को तेलंगाना , आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मडिगा “कोम्माटी” के नाम से भी जाना जाता है। मांग समुदाय के लोगां को आज अनुसूचित जाति के नाम से जाना जाता है।

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महज़ 14 साल की उम्र में लेखन :

मुक्ता साल्वे को महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश की पहली दलित महिला लेखिका भी कहा जाता है। मुक्ता साल्वे को यह पहचान उनके द्वारा लिखित एक निबंध से मिली थीं। इस निबंध को मुक्ता साल्वे ने महज़ 14 साल की उम्र में लिखा था। मुक्ता साल्वे ने बचपन में समाज, घर, परिवार में असमानता और पीड़ा का सामना किया था। आपकों बता दें कि मुक्ता साल्वे ने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले द्वारा शुरु किए गए स्कूल से ही शिक्षा प्राप्त की थी।

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मुक्ता साल्वे पहली दलित महिला लेखिका, इमेज : गूगल

सामाजिक असमानता और जातिवादी सोच पर प्रहार:

मुक्ता साल्वे सावित्रीबाई फुले की विद्यार्थी रहीं हैं तो ऐसे में यह बात तो तय है कि उन्होंने दलितों की समस्याओं को बहुत नज़दीक से देखा था। उस दौर की समस्याओं के आधार पर शिक्षा अर्जित करते हुए मुक्ता साल्वे ने दलितों को लेकर एक निबंध लिखा था। यह निबंध “मांग महाराचेया दुखविसाई’ या फिर ‘ऑन द सफ़रिंग ऑफ़ मांग एंड महार” नाम से चर्चित था। इस निबंध में मुक्ता साल्वे ने न केवल मांग और महारों की पीड़ाओं को बताया था बल्कि सामाजिक असमानता और सवर्ण लोगों की जातिवादी सोच पर गहरा प्रहार किया था। मुक्ता साल्वे का निबंध मांग म्हारों दुख या मांग महाराचेया दुखविसाई निबंध लगभग 165 वर्ष पहले मराठी पत्रिका ज्ञानोदय में मांग महाराचेया दुखविसाई शीर्षक से दो भागों में प्रकाशित हुआ था। इस निबंध का पहला भाग 15 फरवरी 1855 को और दूसरा भाग 1 मार्च 1855 में प्रकाशित हुआ था।

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मांग म्हारों (अछूतों) के लिए क्या कहा है?

अपने निबंध में मुक्ता साल्वे ने सवर्ण लोगों के राज में मांग म्हारों( अछूतों) की स्थिति के लिए कहा था कि “सुनो बता रही हूं कि हम मनुष्यों को गाय भैंसों से भी नीच माना है, इन लोगों ने। जिस समय बाजीराव का राज था, उस समय हमें गधों के बराबर ही माना जाता था। आप देखिए, लंगड़े गधे को भी मारने पर उसका मालिक भी आपकी ऐसी-तैसी किए बिना नहीं रहेगा, लेकिन मांग-महारों को मत मारो ऐसा कहने वाला भला एक भी नहीं था। उस समय मांग महार गलती से भी तालिमखाने के सामने से यदि गुजर जाए तो गुल- पहाड़ी के मैदान में उनके सिर को काटकर उसकी गेंद बनाकर और तलवार से बल्ला बनाकर खेल खेला जाता था”

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मराठी पत्रिका ज्ञानोदय, इमेज बीबीसी

हम धर्महीन हैं:

मुक्ता साल्वे के निबंध का हर शब्द अछूतों के खिलाफ होने वाले भेदभाव का वर्णन करता है। अपने निबंध में मुक्ता साल्वे ने ब्राह्मणवाद के लिए कहा है कि “ब्राह्मण कहते हैं कि वेद हमारे हैं और हमें उनका पालन करना चाहिए तो इससे स्पष्ट है कि हमारे पास कोई धार्मिक पुस्तक नहीं है.” “यदि वेद ब्राह्मणों के लिए हैं तो वेदों के अनुसार आचरण करना ब्राह्मणों का धर्म है” यदि हम धार्मिक पुस्तकों को देखने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, तो यह स्पष्ट है कि हम धर्महीन हैं, है ना?”

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मुक्ता का ईश्वर से सवाल:

अपने निबंध में मुक्ता साल्वे धर्म के बारे में ईश्वर से सवाल पूँछती हैं और कहती हैं कि “हे भगवान, हमें बताएं कि आप किस धर्म के हैं, आपने कौन सा धर्म चुना है, ताकि हम सभी इसे समान रूप से अनुभव करें लेकिन जिस धर्म का अनुभव केवल एक समुदाय ही करे तो इसे और इस जैसे अन्य धर्म को पृथ्वी से नष्ट हो जाना चाहिए. हमारे मन में ऐसे धर्म पर गर्व करने का विचार भी न आने पाए.”

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महिलाओं के भेदभाव के बारे मे क्या कहा?

मुक्ता साल्वे ने अपने निबंध में ब्राह्मणवाद के अलावा दलित समाज की महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उनकी समस्याओं के बारें में भी बताया है। अपने निबंध में वह दलित समाज की महिलाओं के लिए लिखती हैं कि “जिस समय हमारी महिलाएँ बच्चे को जन्म देती हैं, उनके घरों में छत तक नहीं होती, तो गर्मी, बारिश और हवा की के कारण वे कितनी दुखी होती होंगी. महामारी के समय उन पर क्या बीतती होगी, इस पर अपने अनुभव से विचार करें. यदि किसी दिन उन्हें कोई रोग हो जाए तो वह दवा और डॉक्टर के लिए पैसे कहां से लाएगी? आपमें से कौन सा संभावित चिकित्सक है जो मुफ़्त दवा देगा.”

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अज्ञानता दूर करो:

मुक्ता अपने लेखन में दलितों को शिक्षित होने के लिए भी कहती हैं उन्होंने अपने निबंध में लिखा है कि “अज्ञानता दूर करो, पुरानी मान्यताओं से चिपके मत रहो और अन्याय मत सहो” ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले दोनों ने मुक्ता साल्वे को आत्म जागरुकता और धार्मिक व्यवस्था पर सवाल उठाना सिखाया था। मुक्ता साल्वे के निबंध ने उन्हें काफी प्रसिद्धि दिलाई और उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी है।

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मुक्ता साल्वे का निबंध इमेज क्रेडिट बीबीसी

मुक्ता के काम की इतिहास में जगह नहीं:

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई है कि मुक्ता साल्वे के निबंध के छपने के क़रीब 100 साल बाद एसजी माली और हरि नाराके जैसे विद्वानों का मानना था कि मुक्ता साल्वे के काम को इतिहास में शामिल नहीं किया गया होगा क्योंकि महिलाओं या फिर दलितों की कामों की उपेक्षा व्यवस्थित तौर पर हुई है।

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पहली दलित लेखिका होने पर विवाद नहीं:

बीबीसी एक रिपोर्ट के मुताबिक यह भी दावा किया जाता है कि अंग्रेजों की वजह से मुक्ता साल्वे का पहला और एकमात्र लेखन बचा हुआ है। इस निबंध को आज भी पढ़ना चुनौतीपूर्ण और प्रेरक है। यही वजह है कि मुक्ता साल्वे के बारे में बहुत जानकारी नहीं होने के बावजूद उनके पहली दलित महिला लेखिका होने पर कोई विवाद नहीं है।

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