अयोध्या का राममंदिर शुद्ध राजनीतिक, धर्म से नहीं इसका कोई नाता

Share News:

भाजपा के सत्ता में रहने का हिन्दुत्ववादियों ने भरपूर फायदा उठाया है। कुछ विपक्षी दलों को समझ में नहीं आ रहा कि 22 जनवरी के निमंत्रण को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए। उन्हें निमंत्रण यह कहकर अस्वीकार कर देना चाहिए कि यह भाजपा और नरेन्द्र मोदी का कार्यक्रम है…..

संदीप पांडेय की टिप्पणी

Ayodhya Ram Mandir : 22 जनवरी को अयोध्या में एक मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है। यह मंदिर राम के नाम पर बनाया जा रहा है, जिन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया है। मंदिर एक मस्जिद को गिरा कर बनाया जा रहा है। मस्जिद गिराने की कार्यवाही को हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अंजाम दिया। सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने मस्जिद गिराने की कार्यवाही को आपराधिक कृत्य बताया है। न्यायालय के इसी फैसले ने जिस जमीन पर मस्जिद खड़ी थी उसे मंदिबनाने के लिए दे दिया। अब पुनः हिन्दुत्वादी संगठन सक्रिय हो गए और मंदिर निर्माण का श्रेय लेना चाह रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी एक राजनीतिक संगठन के रूप में इस कार्यक्रम में शामिल हो यह तो समझा जा सकता है, किंतु पूरे सरकारी तंत्र को इस कार्य में लगा दिया गया है। जिस तरह से पैसा इस कार्यक्रम पर खर्च किया जा रहा है, वह धर्मांधता का पागलपन है।

एक धर्मनिरपेक्ष देश में मंदिर बनाना सरकार का काम कैसे हो सकता है। नरेन्द्र मोदी देश के मुख्य धर्मगुरू की तरह पेश आ रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने मनुष्य को बनाया है, किंतु ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म के अहंकार को देखिए। शायद यह दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म होगा जिसमें इंसान ईश्वर की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करता है।

इससे पहले योगी आदित्यनाथ ने दीपोत्सव, जिसकी शुरूआत उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से हुई, में अयोध्या में 22.23 लाख दिए जला कर गिनीज़ विश्व रिकार्ड बनाया। पिछले वर्ष 17 लाख दिए जलाकर एक रिकार्ड बनाया गया था। इतने दियों को जलाने में बड़ी धनराशि खर्च करना उन गरीब लोगों के साथ मजाक है, जो अगली सुबह आकर दियों में बचा हुआ सरसों का तेल अपने घरों में खाना पकाने के लिए इकट्ठा करके ले जाते हैं। इतने दिए जला कर सरकार क्या साबित करना चाह रही है? क्या दिए जलाना सरकार का काम है? क्या सरकार का काम गिनीज़ रिकार्ड बनाना या तोड़ना है खासकर जब पिछला रिकार्ड भी उसका ही हो। यह बेवकूफी नहीं तो क्या है? अब तो आम लोग भी दीपावली पर दिए नहीं जलाते। ज्यादातर लोग अपने घरों पर चीन में बनी झालर लगाने लगे हैं। दिए तो सिर्फ प्रतीकात्मक रूप में जलाए जाते हैं।

योगी आदित्यनाथ पेशेवर कलाकारों को पैसा देकर राम, सीता, लक्ष्मण बनवाते हें जो उत्तर प्रदेश सरकार के हेलीकॉप्टर से अयोध्या आते हैं, जैसे पुष्पक विमान अयोध्या में उतर रहा हो और वे स्वयं पेशेवर कलाकारों की अगवानी में खड़े रहते हैं। यह सरकारी पैसे का दुरुपयोग नहीं तो क्या है?

वहीं दूसरी तरफ भाजपा की नीतियों व निर्णयों से लोग त्रस्त हैं। बिल्किस बानो के ग्यारह बलात्कारियों को, जिन्हें गुजरात सरकार की एक समिति एवं केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने उम्र कैद की सजा पूरी होने से पहले ही छोड़ दिया था, सर्वोच्च न्यायालय ने वापस जेल भेजने का निर्णय सुनाया है, किंतु फिर भी यह शक है कि दिए गए दो हफ्ते की अवधि में ये आत्मसमर्पण करेंगे। हो सकता है इन्हें लोक सभा चुनाव तक न जेल भेजा जाए। महिला कुश्ती खिलाड़ी अभी भी न्याय के लिए भटक रही हैं। उनके साथ साथ कुछ पुरुष कुश्ती खिलाड़ियों, जिनमें एक मूक-बघिर पहलवान भी शामिल हैं, ने भी अपने पुरस्कार व मेडल वापस कर दिए हैं। दूसरी तरफ यौन शोषण का आरोपी भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह भारत के कुश्ती तंत्र पर अपना शिकंजा कसे हुए हैं।

सरकार को इस बात की कोई परवाह ही नहीं है कि भारत की इससे कितनी बदनामी हो रही है। अजय मिश्र टेनी, जिनके उकसाने पर उनके बेटे आशीष मिश्र ने अपनी गाड़ी के नीचे किसानों को कुचल दिया, जिससे चार किसान व एक पत्रकार की मौत हो गई, अभी भी केन्द्रीय गृह मंत्री के पद पर बने हुए हैं एवं बेटा बिल्किस बानो के बलातकारियों की तरह जमानत पाकर खुला घूम रहा है जबकि दूसरी तरफ भीमा कोरेगांव व दिल्ली दंगों के मामलों में कितने निर्दोष बुद्धिजीवी व नौजवान गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम में जेल में बंद हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल रही।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के बाहर लंका बाजार में ठेला लगाने वाले करीब 20 रेहड़ी पटरी दुकानदारों के ठेले 24 दिसम्बर को नगर निगम ने जब्त कर लिए और ऐसा पहली बार हो रहा है कि कुछ वैध-अवैध पैसे लेकर ठेले छोड़ने के बजाए वह कह रहा है कि बिना पुलिस की इजाजत के वह ठेले नहीं छोड़ेगा। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी के विज्ञापन लगे हैं जिसमें वे रेहड़ी पटरी दुकानदारों के लिए स्वनिधि योजना के माध्यम से उनकी बेहतरी का श्रेय ले रहे हैं। 2014 का एक कानून है जो रेहड़ी पटरी दुकानदारों की पुलिसकर्मियों व नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न से उनकों संरक्षण देता है। लेकिन भाजपा सरकार में शासन-प्रशासन की तानाशाही के आगे सारे नियम-कानूनों का कोई मतलब नहीं रह गया है।

वाराणसी से गंगा पार रामनगर में कुछ लोगों के पास न्यायालय से स्थगनादेश के वाबजूद प्रशासन ने मार्ग विस्तारीकरण के लिए कई मकान ध्वस्त कर दिए हैं। 2019 से वाराणसी में सर्किल रेट नहीं बढ़ा है। पिण्डरा तहसील में काशी द्वार परियोजना के लिए जो भूमि अधिग्रहित की जा रही है उसमें किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिल पाएगा। आजमगढ़ में सालभर से ऊपर हो गया, 8 गांव के किसान एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि मात्र दो घंटे की दूरी पर जब वाराणसी में हवाई अड्डा है तो यहां बनाने की क्या जरूरत है? कुल मिलाकर किसान भाजपा सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति के खिलाफ जगह-जगह आवाज उठा रहे हैं।

हरदोई, उन्नाव, सीतापुर, बाराबंकी व ज्यादातर प्रदेश के इलाकों का किसान खुले गोवंश की समस्या से परेशान है। प्रदेश सरकार प्रत्येक पशु को खिलाने के लिए रु. 50 प्रति दिन देती है लेकिन ग्राम स्तर पर गौ आश्रय स्थल के निर्माण के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए ग्राम प्रधान यह काम करने से कतराते हैं। हाल ही में हरदोई जिले की ग्राम सभा पिपरीनाराणपुर से किसान गोवंश लेकर इस ऐलान के साथ निकले कि उन्हें योगी के दरवाजे पर ले जाकर बांधेंगे। उप जिलाधिकारी सण्डीला विकास खण्ड भरावन पहुंचीं एवं तुरंत पड़ोस की ग्रामसभा महुआ डांडा में 0.9 हेक्टेयर भूमि पर गौ आश्रय स्थल निर्माण का निर्णय लिया, किंतु प्रधान इच्छुक नहीं है।

सण्डीला विधायक, जो उसी की बिरादरी की हैं, मुख्य सचिव के जिलाधिकारियों को कड़े निर्देश कि सभी खुले गोवंश गौशालाओं या गौ आश्रय स्थलों में बंद किए जाएं, के खिलाफ, ग्राम प्रधान का साथ दे रही हैं और धीमी गति से उपलब्ध भूमि की तुलना में एक तिहाई हिस्से पर ही गौ आश्रय स्थल बन रहा है। किसान रात रात भर जग कर अपनी फसल बचाने को मजबूर हैं और यदि अपना खेत बचाने के लिए ब्लेड वाले तार लगाते हैं तो प्रदेश सरकार ने उसे प्रतिबंधित किया हुआ है और ऐसे तार लगाने पर जुर्माना लगेगा।

भाजपा सरकार ने उत्तर प्रदेश में यूरिया की कीमत न बढ़ाने का एक नायाब तरीका निकाला है। उसने बिना कीमत बढ़ाए बोरी का वजन 50 किलोग्राम से दो किस्तों में 40 किलोग्राम कर दिया है।
बराबंकी जिले के असेनी गांव में 2021 में ग्राम सभा ने गांव की शराब की दुकान को ग्राम सभा से हटाने का प्रस्ताव पारित किया। फिर एक आंदोलन हुआ। पिछले वर्ष जन्माष्टमी के दिन प्रदर्शनकारी महिला ग्रामवासियों पर लाठी चार्ज भी हुआ। तीन जिलाधिकारी बदल गए, लेकिन दुकान नहीं हटी। अधिकारी कहते हैं कि प्रदेश सरकार की आबकारी नीति के तहत दुकान चल रही है। 22 जनवरी को प्रदेश भर में शराब की दुकानें बंद रहेंगी। ऐसा पाखण्ड क्यों? भाजपा एक सरकार एक शराब नीति की बात क्यों नहीं करती? योगी के राज में विदेशी शराब की दुकानें खूब चल रही हैं।

सभी विभागों के संविदाकर्मी व बेरोजगार योगी सरकार के खिलाफ आंदोलनरत हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले एक बी.एड. शिखा पाल, जो सरकारी विद्यालय में शिक्षक पद के लिए अभ्यर्थी हैं, करीब छह माह शिक्षा निदेशालय की पानी की टंकी पर ही चढ़ी रहीं।

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन के साथ दस रुपए का पोस्टल आर्डर लगता है। इस समय लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी, वाराणसी, मुरादाबाद, लगभग पूरे प्रदेश के डाक घरों से दस रुपए मूल्य के पोस्टल आर्डर गायब हैं। यह सरकार का तरीका है कि लोग सरकार से सवाल न पूछें। यह विरोध के स्वर को दबाने का मात्र एक उदाहरण है।

अतः यह साफ है कि अयोध्या में राम मंदिर बनने से कोई राम राज्य नहीं आने वाला। हां, यह अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के काम आ सकता है, शायद इसीलिए मंदिर पूरा हुए बगैर उसका उद्घाटन किया जा रहा है। यह धर्मिक मंदिर नहीं है। यह राजनीतिक मंदिर है। भाजपा के सत्ता में रहने का हिन्दुत्ववादियों ने भरपूर फायदा उठाया है। कुछ विपक्षी दलों को समझ में नहीं आ रहा कि 22 जनवरी के निमंत्रण को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए। उन्हें निमंत्रण यह कहकर अस्वीकार कर देना चाहिए कि यह भाजपा और नरेन्द्र मोदी का कार्यक्रम है।

हिन्दुत्ववादियों का हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। किसी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ, विश्व हिन्दू परिषद या भाजपा के बड़े नेता ने हिन्दू धर्म पर कोई किताब नहीं लिखी, जिस तरह से महात्मा गांधी, विनोबा भावे, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, अरविंद घोष ने लिखी हैं। इसलिए मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में न शामिल होने का कोई अपराधबोध नहीं होना चाहिए। जनता को भी हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व की राजनीति में फर्क करना चाहिए।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *