महात्मा ज्योतिबा फुले सही मायनों में आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता, महिला-दलित उत्थान के लिए लगा दिया पूरा जीवन

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जो मनुवादी जातिवादी मानसिकता वाली पार्टियां बहुजन महापुरुषों का जिक्र तक करना पसंद नहीं करती थीं, उनके स्वर्णिम इतिहास को दबाने की कोशिश करते थे, वह मान्यवर साहेब और बहन मायावती के संघर्षों और कार्यों की वजह से उनके आगे शीश नवाने को मजबूर हैं….

दीपशिखा इंद्रा की टिप्पणी

Mahatma Jyotiba Phule Jayanti 2024 :  भारत देश में आजादी से पहले भारत देश में एक ऐसे महान समाज सुधारक पैद हुये जिन्होंने जाति-पाति, छूआ छूत, अशिक्षा सामाजिक कुरीतियां, धर्म के नाम पर बनाये गये रूढिवादी परम्पराओं को खत्म करने के साथ साथ किसानों की स्थिति सुधारने, दलितों के साथ हो रहे शोषण, अत्याचार, भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने और समाज में महिलाओं के अधिकारों को दिलाने के लिये बहुत सी महानतम व उल्लेखनीय कार्य किया। 19वीं शताब्दी में भारत देश अंधविश्वासी रूढ़िवादी परम्पराओं और नवीन विचारों में उलझा हुआ था। ऐसे ही विषमतावादी जातिवादी परिवेश में महाराष्ट्र के धरती पर गोविंद राव के घर पर 11 अप्रैल 1827 को पुणे के एक माली परिवार में एक बच्चा जन्म लेता है। उस बच्चे का नाम ज्योति राव रखा गया उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंद राव फुले था, लेकिन वो ज्योतिबाफुले के नाम से मशहूर हुये।

भारत देश में जातिवाद, पुरोहितवाद, रूढ़िवादी परम्परा स्त्री-पुरुष, पुरूषवादी सोच, समाज में फैली असमानता और धर्म के नाम पर बनाये गये रूढिवादी परम्पराओं व अंधविश्वास के साथ समाज में व्याप्त आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सामाजिक परिवर्तन की जरूरत भारत में पहले से रही है। इस लक्ष्य को लेकर आधुनिक युग में सार्थक, सशक्त और सफल आन्दोलन चलाने का सबसे बड़ा श्रेय महात्मा ज्योतिबाफुले को ही जाता है। सही मायनों में आज आधुनिक भारत के राष्ट्रपति महात्मा ज्योतिबाफुले जी हैं, लेकिन मनुवादी जातिवादियों ने महात्मा ज्योतिबाफुले जैसे महान समाज-सुधारक को और उनके विचारों को दबा दिया।

महात्मा ज्योतिबाफुले भारत में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई के आधार है या यूं कहें कि अगुवा थे। उन्होंने अपने विचारों और कार्योँ से शोषित वंचित पिछड़े वर्गों और महिलाओं को वर्ण व्यवस्था पुरूषवादी सोच और भेदकारी जातिवादी शोषणकारी दमनकारी चंगुल से आजाद करने के लिए संघर्ष और आन्दोलन का नेतृत्व किया। साथ ही महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा दिलाने के क्षेत्र में महान कार्य किये, जिसमें भारत देश की पहली महिला शिक्षिका और पत्नी माता सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर काम किया।

1848 में ज्योतिबाफुले जी अपने एक मित्र के शादी में गये थे, जहाँ पर पिछड़े वर्ग के होने के कारण उनका बहुत अपमान हुआ था। तब उन्होंने तय किया कि समाज से जातिवाद को जड़ से खत्म करना होगा और उसकी शुरुआत सबसे पहले महिला उत्थान व उनके सशक्तीकरण से करना जरूरी है, क्योंकि उनकी स्थिति बहुत खराब है।

उनका मानना था कि जब तक समाज में महिला-दलित पिछड़े वर्ग के लोगों का उत्थान नहीं होगा तब तक न जातिवाद जैसी व्यवस्था खत्म होगी और न ही समाज का चौमुखी विकास होगा। ज्योतिबाफुले का मानना था कि स्त्री-पुरुष और दलित-पिछड़े वर्गों की सामाजिक असमानताओं को दूर करने में शिक्षा एक सबसे बड़ा महत्वपूर्ण कारक है।

उन्होंने 1848 में लड़कियों के स्कूल खोला यह देश का पहला स्कूल था, जहां महिला लड़कियां पढ़ सकती थी। ध्यपिका न मिलने पर ज्योतिबाफुले ने अपने पत्नी माता सावित्रीबाई फुले को इस काबिल बना दिया कि वह उस स्कूल में पढ़ने लगीं और भारत देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं। यहां पर माता सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबाफुले को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ज्योतिबाफुले जी का मानना था कि सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत अपने घर से करनी चाहिए। और आगे इस कड़ी में उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के लिये दलितों पिछड़े वर्गों निर्बल लोगों के लिये 24 सितंबर 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था दलित पिछड़े वर्ग के लोगों को शोषण से मुक्त कराना था।

ज्योतिबा फुले ने ताउम्र पूरे जीवन संघर्षों को देखा जाएं तो उन्होंने भारत देश में सामाजिक परिवर्तन का आह्वान किया और समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों भेदभाव असमानता आदि को खत्म कर के समता मूलक समाज बनने की कोशिश की और इनके इस महान विचार और कार्य को पढ़कर जानकर राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब प्रभावित हुए बाबासाहेब ज्योतिबाफुले को अपना गुरू अपना आदर्श मानते थे और उन से प्रभावित होकर उनके इस कारवां को आगे बढ़ाने का काम किया और बहुजन समाज को हक अधिकार से लेकर हर क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व और मान सम्मान दिलाया जो सबसे महानतम व ऐतिहासिक कार्य बाबासाहेब ने किया, जिससे आज बहुजन समाज के लोग मान सम्मान स्वाभिमान के साथ जी रहे हैं।

भारत में सत्ता पर काबिज लोगों ने तथागत गौतमबुद्ध से लेकर कबीर, संत शिरोमणि रैदास, बिरसा मुंडा, ज्योतिबाफुले, शाहूजी महाराज, बाबासाहेब सभी बहुजन महापुरुषों महानायिकों के इतिहास उनकी विचारधारा को इतिहास के पन्नों में दबा दिया था, लेकिन लोकतंत्र के महानायक मान्यवर कांशीराम साहेब और बहन कुमारी मायावती के अथक प्रयासों व संघर्षों से बहुजन इतिहास और उसकी विचारधारा को जन जन तक पहुंचाना का सबसे बड़ा ऐतिहासिक और उल्लेखनीय कार्य किया।

मायावती ने यूपी में मुख्यमंत्री रहते बहुजन महापुरुषों के इतिहास को जिसे इतिहास के पन्नों में दफन कर दिया गया था, उस इतिहास को संगमरमर के पत्थरों पर लिखकर पुनर्जीवित किया। साथ ही इन बहुजन हीरोज को न सिर्फ भारत देश में बल्कि विश्व फलक पर स्थापित कर दिया।

बहनजी ने महात्मा ज्योतिबाफुले के मान सम्मान में कई ऐतिहासिक कार्य किये। जैसे उन्होंने अपनी बीएसपी सरकार के दौरान ज्योतिबाफुले विश्वविद्यालय के रूप में रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली का नामकरण किया। आगे ज्योतिबाफुले राजकीय स्वछकार आश्रम पद्धति विद्यालय लखनऊ का उद्घाटन किया। साथ ही भारत की प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्रीबाई फुले के नाम पर सावित्रीबाई फुले महिला छात्रावास मेरठ में बनवाया और माता सावित्रीबाई फुले महिला डिग्री काॅलेज चन्दौली में बनवाया।

आयरन लेडी कही जाने वाली मायावती ने महात्मा ज्योतिबाफुले की प्रतिमा की गागलहेडी सहारनपुर में स्थापना किया। साथ ही उन्होंने ने महात्मा ज्योतिबाफुले की प्रतिमा का छुटमलपुर चौराहा सहारनपुर में अनावरण किया। ऐसे ही बहनजी ने अपने शासनकाल के दौरान महात्मा ज्योतिबाफुले नगर जनपद का गठन भी किया और उनकी प्रतिमा का ज्योतिबाफुले नगर जनपद में अनावरण भी किया। महात्मा ज्योतिबाफुले के नाम पर इटावा में महात्मा ज्योतिबाफुले स्टेडियम का नामकरण भी किया।

बहनजी ने बीएसपी सरकार के दौरान महात्मा ज्योतिबाफुले के नाम पर ऐतिहासिक व उल्लेखनीय कार्य किया। इसी तरह बहुजन समाज पार्टी ने सभी बहुजन महापुरुषों के मान सम्मान में स्मारक, बौद्ध विहार और उनके नाम पर स्कूल काॅलेज हॉस्टल, जिले आदि बनवाये और नाम रखे, ताकि बहुजन इतिहास और उनकी विचारधारा जिंदा रहे और आने वाली पीढ़ियां भी अपने इतिहास को जान और समझ सकें।

जो मनुवादी जातिवादी मानसिकता वाली पार्टियां बहुजन महापुरुषों का जिक्र तक करना पसंद नहीं करती थीं, जो लोग उनके स्वर्णिम इतिहास को दबाने की कोशिश करते थे, वह मान्यवर साहेब और बहनजी के संघर्षों और कार्यों की वजह से बहुजन महापुरुषों—नायिकाओं के जन्मदिवस पर बधाई देने के साथ-साथ आज उनके आगे नतमस्तक होने तक मजबूर हो गये।

बहनजी के द्वारा किये गये कार्य इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गये और अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है, जिससे आने वाले समय में नई पीढ़ियों के लिये यह प्रेरणास्रोत होगा।

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