जयंती विशेष : जातिवादियों ने दलित नेता बाबू जगजीवन राम को नहीं बनने दिया था प्रधानमंत्री !

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Babu jagjivan ram birth anniversary: भारतीय राजनीति में अक्सर एक सवाल ज़ोर पकड़ता है। सवाल ये की भारत को आज़ाद हुए 76 साल हो चुके हैं लेकिन अभी तक भारत को कोई भी दलित प्रधानमंत्री नहीं मिला है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि कभी दलित प्रधानमंत्री बनने का संयोग ही न बना हो। भारत की राजनीति में एक ऐसे दलित नेता हुए है जो 2 बार प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए। साथ ही भारत को दलित प्रधानमंत्री मिलने का सपना केवल सपना बनकर रह गया। हम बात कर रहे है भारत में दलितों के कद्दावर नेता रहे बाबू जगजीवन राम की। आज उनकी जयंती है और आज हम आपको बता रहे है उनके जीवन से जुड़ा एक बेहद दिलचस्प किस्सा।

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कौन थे बाबू जगजीवन राम :

5 अप्रैल 1908 को बिहार के शाहाबाद जिले जिसे अब भोजपुर के नाम से जाना जाता है के एक छोटे से गाँव चंदवा में सोभी राम और वसंती देवी के यहाँ बाबू जगजीवन राम का जन्म हुआ था। अपने पिता से आदर्शवाद, मानवीय मूल्य सीखे लेकिन जब स्कूल में थे तभी पिता की मृत्यु हो गयी। बाबू जगजीवन अपनी मां की सेवा करते रहे और उनके मार्गदर्शन में ही बिहार के आरा से प्रथम श्रेणी की पढ़ाई की। जातिगत भेदभाव और अलगाव देखा लेकिन BHU (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) से एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया और फिर कलकत्ता से अपनी स्नातक की पढ़ाई की।

जगजीवन राम ने कई रविदास सम्मेलनों का आयोजन किया था और कलकत्ता (कोलकाता) के विभिन्न क्षेत्रों में गुरु रविदास जयंती मनाई थी। 1934 में, उन्होंने कोलकाता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की। इन संगठनों के माध्यम से उन्होंने दलित वर्गों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया। उनका विचार था कि दलित नेताओं को न केवल सामाजिक सुधारों के लिए लड़ना चाहिए, बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व की भी मांग करनी चाहिए। अगले साल यानी 19 अक्टूबर, 1935 को बाबूजी रांची में हैमंड कमीशन के सामने पेश हुए और पहली बार दलितों के लिए वोटिंग के अधिकार की मांग की।

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बेटे की मौत से पूरी तरह टूट गए थे बाबूजी :

कांग्रेस की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक बाबूजी के नाम से मशहूर जगजीवन राम एक राष्ट्रीय नेता, स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय के योद्धा, दलित वर्गों के समर्थक, एक उत्कृष्ट सांसद, एक सच्चे लोकतंत्रवादी, एक प्रतिष्ठित केंद्रीय मंत्री, एक सक्षम प्रशासक और एक असाधारण प्रतिभाशाली वक्ता थे। उनका व्यक्तित्व विशाल था और उन्होंने प्रतिबद्धता, समर्पण और समर्पण के साथ भारतीय राजनीति में आधी सदी से अधिक की लंबी पारी खेली। 1935 में स्वतंत्रता सेनानी इंद्राणी से उनका विवाह हुआ। 17 जुलाई 1938 को उन्हें एक बेटा हुआ सुरेश कुमार और 1945 को उनके घर जन्म हुआ मीरा कुमार का जो आगे चलकर लोकसभा स्पीकर बनी। लेकिन 21 मई, 1985 को सुरेश कुमार का निधन हो गया, जिससे बाबू और इंद्राणी पूरी तरह से टूट गए।

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राजनीति में खेली लंबी पारी :

बाबू जगजीवन राम ने राजनीति में 50 साल से ज़्यादा की पारी खेली। बात उनकी पहली गिरफ्तारी से करते हैं। स्वतंत्रता सेनानी होने के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधी जी से वह बहुत प्रभावित थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने 10 दिसंबर 1940 को पहली बार गिरफ्तारी दी। इसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन और गांधी के सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। जिसके लिए वह 19 अगस्त 1942 को फिर से गिरफ्तार हुए।

● बाबू जगजीवन राम पहली बार 1936 में बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य के रूप में विधायक बने।
● 1936 में फिर से डिप्रेस्ड क्लासेस लीग के उम्मीदवार बने और 10 अगस्त 1936 को बिहार विधानसभा के निर्विरोध निर्वाचन घोषित किया गया।
● 1937 में कांग्रेस सरकार बनी जिसमे बाबूजी शिक्षा और विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव नियुक्त किये गए। हालांकि उन्होंने 1938 में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
● 1946 में जगजीवन राम फिर से निर्विरोध चुने गए और 2 सितंबर, 1946 को उन्हें श्रम मंत्री के रूप में अंतरिम सरकार में शामिल किया गया। इसके बाद वह लगभग 31 वर्षों तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे।

1937 से ही उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख भूमिका निभाई। स्वतंत्रता-पूर्व अवधि के दौरान, बाबूजी ने कांग्रेस पार्टी में राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। स्वतंत्रता के बाद, वह पार्टी की धुरी बन गए और पार्टी मामलों के साथ-साथ देश के शासन के लिए अपरिहार्य हो गए। वह 1940 से 1977 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे और 1948 से 1977 तक कांग्रेस कार्य समिति में रहे। वह 1950 से 1977 तक केंद्रीय संसदीय बोर्ड में रहे। अपनी कुशाग्र राजनीतिक कुशलता के कारण वह दिग्गजों के प्रिय थे।

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जब भारत को मिलने वाला था पहला दलित प्रधानमंत्री :

आपातकाल के चार साल बाद 1979 में दलित नेता बाबू जगजीवन राम भारत के चौथे उप प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि यहां तक का सफर उनके लिए कठिन था। 50 साल तक सांसद बने रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले बाबू जगजीवन राम दो बार प्रधानमंत्री बनते बनते भी राह गए थे और यहीं देश को पहला दलित प्रधानमंत्री मिलने का सपना भी चूर चूर हो गया।

1975 के आपातकाल में बाबू जगजीवन राम ने इंदिरा गांधी का पूरा समर्थन किया। आपातकाल के बाद 1977 में पहली बार चुनाव हो रहे थे लेकिन चुनावो में इंदिरा और जगजीवन के बीच खटास आ गयी थी। 1977 में अपनी अलग पार्टी “कॉंग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी” बनाई और जनता पार्टी के साथ मिलकर इंदिरा के खिलाफ चुनाव लड़ा और जीता भी। इस गठबंधन को पूरी 28 सीटें मिली थी। बाबू जगजीवन की मौजूदगी का लोहा हर किसी ने माना और इस तरह बाबू जगजीवन राम, मोरारजी देसाई और चरण सिंह के साथ प्रधानमंत्री की रेस में खड़े हो गए। हालांकि जनता पार्टी ने उन्हें धोखा दिया और जेपी नारायण से सलाह मशविरा कर मोरारजी देसाई को पीएम बना दिया गया। और बाबू जगजीवन के हाथ आई रक्षा मंत्री की कुर्सी।

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दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते बनते राह गए बाबूजी :

1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी। अब रेस में बाबू जगजीवन राम और चरण सिंह थे। इंदिरा गांधी ने बाहर से समर्थन देकर चरण सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया। और बाबू जगजीवन राम फिर प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए। हालांकि 23 दिन बाद इंदिरा ने समर्थन वापस ले लिया। मौका पाकर बाबू जगजीवन राम ने राष्ट्रपति को बहुमत साबित करने के लिए चिट्ठी लिखी लेकिन इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को कहकर लोकसभा भंग करवा दी । 1980 तक चरण सिंह केयरटेकर बने रहे और बाबू जगजीवन राम फिर उच्च जातियों की जालसाजी में फंसकर सिर्फ मुँह ताकते रह गए।

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दलित को प्रधानमंत्री बनते नहीं देख पाते ऊंची जाति वाले :

बाबू जगजीवन राम के समर्थकों ने कहा था कि ऊँची जाति वालों को ये मंजूर नहीं कि एक दलित देश को चलाने वाली कुर्सी पर बैठे। समर्थकों ने ये भी कहा कि कथित उच्च जाति के हिन्दू नेताओं को एक दलित का शीर्ष पद पर बैठना हज़म नहीं हो रहा था. वो एक ‘अछूत’, जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान से आए व्यक्ति को अपना लीडर नहीं मानना चाहते थे। ये कहानी थी दलित समाज से आने वाले उस लीडर की जिसे दो बार देश के शीर्ष पद पर जाने का मौका मिला लेकिन ऊँची जातियों की जातिवादी मानसिकता ने ऐसा होने नहीं दिया। और आज तक भारत देश को उसका पहला दलित प्रधानमंत्री नहीं मिल पाया।

वर्तमान की बात करें तो पीएम पद के लिए भारत में दो ही चेहरे दिखाई दे रहे है एक कॉंग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और दूसरी यूपी की चार बार मुख्यमंत्री रहीं और देश में पहली बार दलित महिला मुख्यमंत्री के तौर पर सामने आई बीएसपी सुप्रीमो मायावती। हालांकि देखना ये है की कब देश की बागडौर दलित के हाथ में आएगी। वैसे बता दें कि अगर मल्लिकार्जुन खड़गे प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह देश के पहले दलित प्रधानमंत्री होंगे। वहीं अगर मायावती प्रधानमंत्री बनती हैं तो वह देश की दूसरी महिला और पहली दलित प्रधानमंत्री होंगी।

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