UP में निकलेगी सामाजिक न्याय पदयात्रा, माचा से निकली यात्रा का कांशीराम जयंती पर कठारा कानपुर में होगा समापन

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हिन्दुत्ववादी राजनीति मुसलमानों का डर दिखाकर चाहती है कि लोग जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को भुलाकर हिंदू के नाम पर एक हो जाएं, कई दलित व पिछड़े वर्ग के लोग धर्म के नाम पर भावना प्रधान राजनीति से दिग्भ्रमित भी हो गए हैं…

Samajik Nyay Padyatra : देश में बढ़ती जातिगत विषमता, धार्मिक भेदभाव, राजनीतिक वैमनस्यता और वैचारिक शून्यता के दौर में सिद्धांतों, सामाजिक सरोकारों और न्याय के लिए एक वैचारिक राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करने के उद्देश्य से सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) और सहयोगी संगठनों द्वारा समाजवादी राजनीतिज्ञ रामस्वरूप वर्मा और ललई सिंह पेरियार की स्मृति में एक सामाजिक न्याय पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। 13 मार्च को माचा से शुरू पदयात्रा का मान्यवर कांशीराम की जयंती 15 मार्च को कठारा में समापन होगा।

इस यात्रा के माध्यम से समाजवादी राम स्वरूप वर्मा, ललई सिंह पेरियार और मान्यवर कांशीराम के विचारों, सिद्धांतों एवं उनके ऐतिहासिक कार्यों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, आम जन मानस को राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ एक सामाजिक आन्दोलन के लिए प्रेरित किया जाएगा।

यात्रा में हिस्सेदारी कर रहे संगठनों का कहना है, जाति जनगणना के बगैर सामाजिक न्याय नहीं मिल सकता। देश में जाति जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही है।

मंडल आयोग की सिफारिशों में भी जाति जनगणना कराने की बात कही गई। पिछले दिनों बिहार में जाति जनगणना के आंकड़ों के आने के बाद हम उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि जाति जनगणना कराई जाए। केंद्र सरकार ने भी अन्य पिछड़ा वर्ग गणना कराने को कहा, लेकिन फिर वादे से मुकर गए।

वर्ष 2011 में जाति जनगणना के जो आंकड़े आए, उनको सार्वजनिक न करने से देश की पिछड़ी जातियों को उनका अधिकार नहीं हासिल हो पा रहा। देश में जनगणना होती है उसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना होती है, लेकिन पिछड़ी जातियों की गणना या जाति जनगणना नहीं की जाती। आने वाले दिनों में सरकार जब जनगणना कराए तो उसके साथ ही जाति जनगणना भी कराए।

बराबरी और सत्ता-संसाधनों पर न्यायसंगत बंटवारे के लिए जाति जनगणना बहुत जरूरी है। जातिवार जनगणना साफ करेगी कि देश के सत्ता संसाधनों पर किसका कितना कब्जा है, किसका हक अधिकार आजाद भारत में नहीं मिला, कौन गुलामी करने को मजबूर हैं। हक अधिकार न देकर धर्म के नाम पर जनता को विभाजित किया जा रहा है और हिन्दुत्ववादी राजनीति मुसलमानों का डर दिखाकर चाहती है कि लोग जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को भुलाकर हिंदू के नाम पर एक हो जाएं। कई दलित व पिछड़े वर्ग के लोग धर्म के नाम पर भावना प्रधान राजनीति से दिग्भ्रमित भी हो गए हैं। राजनीतिक दल जाति जनगणना कराने के मुद्दे पर सहमत हैं तो वह चुनावी घोषणा पत्र में समयबद्ध जाति जनगणना कराने की मांग को शामिल करें।

जातिवार जनगणना के साथ आरक्षण की सभी श्रेणियों व सामान्य श्रेणी में भी 50 प्रतिशत महिला की भागीदारी सुनिश्चित की जाए, मंडल आयोग की सम्पूर्ण सिफारिशों को लागू किया जाए, कोलेजियम सिस्टम जैसे न्यायिक नासूर को खत्म किया जाए, नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधानों पालन किया जाए और मानकों का अनुपालन न करने वाले अधिकारियों को दण्डित किया जाए, निजीकरण को समाप्त किया जाए, जो भी निजी क्षेत्र हैं उनमें आरक्षण पूर्णतः लागू किया जाए, चुनाव को निष्पक्ष कराने हेतु ई.वी.एम. जैसी अविश्वसनीय पद्धति को समाप्त किया जाए, चुनाव अनुपातिक प्रणाली पर कराए जाएं यानी जिस दल के जितने प्रतिशत मत हों, उसी अनुपात में विधायिका में उसके सदस्य हों, दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों के साथ सौतेला व्यबहार बंद किया जाए।

यात्रा में हिस्सेदारी करने वाले संगठनों ने अपील की है कि वर्तमान राजनीतिक संकट दौर में सामाजिक न्याय आंदोलन की जरूरत महसूस करते हैं तो हमारी इस पदयात्रा से जरूर जुड़े और एक मजबूत राजनीतिक विकल्प बनाने हमारा सहयोग करें।

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