बाबा साहेब का संविधान या मनुस्मृति का पाठ.. क्या चाहते हैं आप?

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बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी ने एक फेलोशिप आयोजित की है। जिसमें ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रसांगिकता पर शोध करवाई जाएगी। यह शोध 31 मार्च से शुरू होगी। BHU ने इसके लिए शोधकर्ताओं के आवेदन मंगवाना भी शुरू कर दिया है। लेकिन इस बीच मुद्दे पर बड़ी बहस शुरू हो गई है । बहस ये कि एक ऐसा देश जो संविधान से चलता है जहाँ एकता समानता औऱ बंधुत्व की बात होनी चाहिए। जहाँ संविधान की बात होनी चाहिए वहाँ देश के एक बड़े विशविद्यालय को मनृस्मृति का अध्ययन कराने की ज़रूत क्यों पड़ गई। मनुस्मृती वो ग्रंथ जो हिंदुओँ में भेद करता है। वर्ण व्यवस्था की बात करता है। एक वर्ण को जन्म से ऊंचा तो एक नीचा साबित करता है। जो ब्राहमणवादी विचारधारा पर कार्य करता है और जो जाति व्यवस्था और महिलाओं की अधीनता का समर्थन करता है। अब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के धर्मशास्त्र और मीमांसा विभाग उस ग्रंथ की प्रसांगिकता पर शोध करना चाहता है।

 

BHU की तरफ से जारी नोटिस (image : twitter)

 

अपनी इस शोध के विषय का बचाव करते हुए धर्मशास्त्र और मीमांसा विभाग के प्रमुख शंकर कुमार मिश्रा ने द क्विंट से बातचीत में कहा, वैदिक परंपरा और ऋषि-मुनि पहले ही इसका समर्थन कर चुके हैं, इसलिए इसे अलग से समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं है. उन्होंने इस बात को भी नकारा कि मनुस्मृती महिलाओं औऱ शूद्रों को दोयम दर्जे का बताती है।
हर शब्द के कई अर्थ होते हैं वाली बात कहते हुए उन्होंने आगे कहा, हरि शब्द का अर्थ भगवान विष्णु, बंदर, मेंढक या हाथी हो सकता है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसकी व्याख्या कैसे करते हैं। इन पाठों के साथ भी ऐसा ही है। कोई भी धार्मिक कार्य आपको झूठ बोलने या बुरा व्यवहार करने के लिए नहीं कहता है बल्कि कमजोरों की मदद, दान औऱ अपने परिवार का ख्याल रखने के लिए कहता है।

 

तो वहीं मामले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने the क्विंट से कहा कि मनुस्मृति के समय में जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। “आजादी के बाद, भारत ने शासन की आधुनिक प्रणाली, यानी संवैधानिक लोकतंत्र को अपनाया है। हम उस समय में वापस नहीं जा सकते। यह देश मनुस्मृति के आदेश से नहीं बल्कि लोगों की सामूहिक इच्छा से शासित होगा”

 

 

बता दें कि मनुस्मृति हिंदुओं का मानक धर्मग्रंथ है जो जन्म के आधार पर ब्राह्मणों को ऊंचा औऱ शूद्रों को नीचा बताती है। मनुस्मृति कहती है कि ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य काम है। मनुस्मृति में ये भी कहा गया है कि जिस देश का राजा यानी मुखिया शूद्र होगा तो उस देश में ब्राह्मण निवास नहीं कर सकते। शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नहीं है। यह मनुस्मृति में ही कहा गया है कि निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए। ब्राह्मण की गली से गुज़रने के लिए शूद्रों को गले में हांडी औऱ कमर पर झाडू बांधकर चलने के लिए भी मनुस्मृति ही  कहती है।

 

मनुस्मृति में वर्णित इस भेदभाव, जात पात औऱ ऊंच नीच की आलोचना करते हुए ही 25 दिसंबर 1927 में संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. बीआर अम्बेडकर ने महाराष्ट्र के महाड में मनुस्मृति जलाई थी। उस समय उन्होने एक संकल्प लेते हुए कहा कि,”मनुस्मृति और ऐसी अन्य पुस्तकों में की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए, जो सबसे अधिक अश्लील हैं और जो सबसे अधिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं, यह बैठक उनकी कड़ी निंदा करती है और उस निंदा की अभिव्यक्ति के रूप में उन्हें जलाने का संकल्प लेती है।”

आखिर में सवाल ये है कि देश की बड़ी यूनिवर्सिटी मनुस्मृति का सपोर्ट क्यों कर रही  है..?

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