शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर हाईकोर्ट के परिसर में लगी मनु की मूर्ति हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। रामजी लाल बैरवा द्वारा दायर इस जनहित याचिका में 34 साल पहले जयपुर हाईकोर्ट में लगी मनु की मूर्ति को हाईकोर्ट के परिसर से हटाने की मांग की गई है। जस्टिस संजीव खन्ना और एम.एम. सुंदरेश ने याचिका को खारिज़ करते हुए रामजी लाल बैरवा को उच्चन्यायालय का रुख करने को कहा। जस्टिस संजीव खन्ना और एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा वह इस याचिका में हस्तक्षेप करने में असमर्थ हैं क्योंकि ऐसी एक याचिका पहले ही उच्चन्यायालय में लंबित हैं। रामजी लाल बैरवा को भी उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए।
34 साल पहले लगी थी मनु की मूर्ति :
आज से 34 साल पहले 1989 के फरवरी महीने राजस्थान उच्चन्यायालय की जयपुर पीठ के परिसर में 11 फीट ऊंची मनु की मूर्ति लगाई गई थी। मूर्ति की स्थापना के बाद से ही इसे लेकर विवाद बना हुआ है। 1989 से ही दलितों और जाति-विरोधी नागरिक समाज संगठनों द्वारा इस मूर्ति को हटाने की मांग उठाई जाती रही है। बताते चलें कि मनु की मूर्ति जयपुर पीठ के परिसर में राज्य की उच्च न्यायपालिका के अधिकारियों के एक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष पदम कुमार जैन के कार्यकाल में लगाई गई थी। हालांकि मूर्ति के उद्घाटन के कुछ महीने के बाद ही उच्च न्यायालय द्वारा एक प्रशासनिक आदेश जारी किया गया था जिसमें मनु की मूर्ति को हटाने का निर्देश दिया गया था।

8 साल पहले हुई थी आखिरी सुनवाई :
मूर्ति हटाने वाले उच्चन्यायालय के आदेश के बाद
विश्व हिंदू परिषद के एक नेता द्वारा प्रतिमा की रक्षा के लिए उच्चन्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद उच्च न्यायालय ने अपने ही आदेश पर रोक लगा दी थी। मालूम हो कि साल 2015 में इस मामले में आख़िरी बार सुनवाई हुई थी। 2015 में सुनवाई के दौरान ब्राह्मण वकीलों के एक गुट द्वारा किए गए प्रदर्शनों के कारण कार्यवाही कथित रूप से बाधित हुई थी। जिसके बाद से लेकर अभी तक इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है। समाचार वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार यह जनहित याचिका कथित तौर पर उच्च न्यायालय में सबसे पुरानी लंबित रिट याचिका है।
मूर्ति हटाने के लिए लगातार उठी है मांग:
बताते चलें कि मनु की मूर्ति को जयपुर पीठ में लगाए जाने का बहुजन नेताओ ने कड़ा विरोध किया है और लगातार करते भी आ रहें हैं। जिनमें सबसे पहला नाम है बहुजन नेता और समाज सुधारक कांशी राम और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का हैं। मनु की मूर्ति का विरोध करने वाले
कार्यकर्ताओं के मुताबिक मनुस्मृति में निर्धारित सिद्धांत और मनु द्वारा दी गई कानून संहिता, दलितों, महिलाओं और अन्य हाशिए के समूहों के प्रति भेदभावपूर्ण है। उच्च न्यायालय परिसर में मनु की मूर्ति की स्थापना, जाति व्यवस्था और भारत में पितृसत्ता के लिए एक स्मारक के अलावा और कुछ नहीं है।
अंबेडकर ने जलाई मनुस्मृति :
25 दिसंबर 1927 को महाराष्ट्र के महाड़ में बाबा साहेब अंबेडकर ने अस्पृश्यता और भेदभाव को बढ़ावा देने वाले ग्रंथ मनुस्मृति को सार्वजनिक तौर पर जलाया था। मनुस्मृति मनु द्वारा लिखा गया ग्रंथ हैं जो वर्ण के आधार पर समाज को बंटता है और जन्म के आधार पर ब्राह्मण को ऊंचा और शूद्रों को नीचा बताता है। मनु की मूर्ति का अर्थ है समाज में मनुस्मृति की उपस्थिति और मनुस्मृति का अर्थ है जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देना। वहीं दूसरी ओर मूर्ति को हटाने का विरोध करने वाले लोग इस तर्क को खारिज कर रहें है कि मूर्ति का कोई जातिगत अर्थ है। इन लोगो का कहना है कि मनु की मूर्ति को न्यायालय में लगाने का अर्थ सिर्फ ये बताना है कि मनु हिंदू परंपरा में कानून देने वाला पहला व्यक्ति था।
*Help Dalit Times in its journalism focused on issues of marginalised *
Dalit Times through its journalism aims to be the voice of the oppressed.Its independent journalism focuses on representing the marginalized sections of the country at front and center. Help Dalit Times continue to work towards achieving its mission.
Your Donation will help in taking a step towards Dalits’ representation in the mainstream media.
दुनिया के सबसे निकृष्ट और अमानवीय व्यक्ति की प्रतिमा न्याय के परिसर में लगाना सहन करना पूरी मानव जाति पर कलंक है।इसे तुरंत हटाया जाए।