एक कहानी: मैं इस जाति में पैदा क्यों हुआ..?

Share News:

आज भी बहुत से द्रोणाचार्य जीवित है जो कि वर्तमान में प्रतिभावान लोगो को यह बताते है कि उनकी जाति छोटी है इसलिए वो अन्य उच्च जातियों के बराबर प्रतिभवान नहीं है l दुर्भाग्य से आज वर्तमान समय में ऐसे ही लोग गुरुवर बन सभी विद्यालयों में आ गए है जिनके वजह से लगभग पच्चीस करोड़ की आबादी होने के बाद भी एक भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति कोई बड़ा व्यवसायी, फिल्म अभिनेता या फिर कोई प्रसिध्द मीडियाकर्मी नहीं बन पायाl

 

यह भी पढ़े: दलित दूल्हे के घोड़ी चढ़ने पर राजपूतों ने किया पथराव, बारातियों समेत 2 मासूम घायल

जिसकी वजह से लोगों को लगने लगा है कि सच में इनमे कोई प्रतिभा है ही नहीं। यदि भीम राव अम्बेडकर जी नहीं होते तो इनका बिना आरक्षण कुछ होता भी नहीं l कीड़ेमकोड़े कि जिंदगी जी रहे होते , लेकिन हकीकत कुछ और ही है जिसपर कभी किसी का ध्यान ही नहीं गया l  पच्चीस करोड़ लोगो का किसी भी क्षेत्र में कुछ अच्छा न कर पाना यह एक बहुत बड़ी साज़िश है l आज जो कोई भी आगे बढ़ पाया है तो सिर्फ आरक्षण की,  कुछ बन पाया है तो आरक्षण की वजह से और वही तक सिमित है l राजनीती में कुछ लोग आगे जरुर बढे है लेकिन वो भी सिर्फ आबादी और आरक्षण के वजह से नहीं तो सामान्य सीट से मुस्किल से कोई जीत पाया है आज वर्तमान सरकार खुद को बहुत सशक्त कहती है लेकिन उसके बहुत से विधायक और सांसद सिर्फ आरक्षण और बड़ी जातियों के घर जी हुजूरी करने के कारण सांसद और विधायक बने है , मजाल है कि किसी अपने वर्ग के व्यक्ति के मरने के बाद उसके घर चले जाये लेकिन वही किसी उच्च जाति के घर का कोई मर जाये तो पुरे लौ लस्कर के साथ घर पर जी हुजूरी करने पहुँच जाएंगे।  इनके साथ भी मज़बूरी है कि इनके समाज के लोगो कि आर्थिक स्थति ठीक नहीं है और इनके लोग सिर्फ पैसे और लालच के कारण अपना मतदान करते है l

 

यह भी पढ़े: यूपी: दलित पिता की हत्या के बाद बेटी से बलात्कार की कोशिश, जानिए पूरी खबर

 

यह समाज क्यों पिछड़ता जा रहा है इसके पीछे की एक कहानी मैं आपको बताता हूँ। आशीष का मन तो पढाई में बहुत लगता था और हमेशा कक्षा के अन्य बच्चों से बेहतर करना चाहता था लेकिन उसके साथ उसकी जाति की पूर्वाग्रह लगी हुई थी जो यह मानने को तैयार नहीं था कि वह भी बेहतर कर सकता है l छोटा बच्चा होने के कारण अन्य बच्चों के साथ खेलता रहता था और सभी खेलो में अन्य बच्चो से बेहतर खेलता था l लेकिन यह सब उसके गुरु जी को पसंद नहीं था। वह उसके उसके गुरु थे लेकिन हर वक्त मौका खोजते रहते थे उसको नीचा दिखाने के लिए इसलिए वह उनकी बातों को कभी बुरा नहीं मानता था।

 

यह भी पढ़े: अमेरिका को क्यों बनाना पड़ा जातिवाद के विरूध कानून..?

 

उसे यह उम्मीद था कि एक दिन जरुर उनका नजरिया बदलेगा और गुरु जी उसका भी अन्य बच्चों कि तरह सम्मान करने लगेंगे l एक दिन वह अन्य बच्चों के साथ खेल रहा था तभी उसके गुरु जी आये जिनका नाम चौथी राम यादव था उन्होंने उसे अन्य बच्चो के साथ खेलते देखते ही आग बबूला हो गए और सभी बच्चो को छोड़कर उसे दो थप्पड़ मारे और जातिसूचक गालियाँ देते हुए बोले साले पसिया बौरा गए हो माँ – बाप भेजते है पढ़ने के लिए लेकिन स्कूल आकर सिर्फ खेलते रहते हो l उसे दो थप्पड़ का उतना दर्द नहीं था जितना दर्द जाति सूचक गाली का था l उसके बाद उसका स्कूल आना कम हो गया l अक्सर घर पर रहकर ही पढाई करने लगा और घर वाले भी डाटकर स्कूल भेजते थे तो वही कभी स्टेशन तो कभी और कही चला जाता था लेकिन स्कूल जाने से आनाकानी करने लगा l  उसकी जाति को लेकर जो उसे फटकार मिलती थी वो हमेशा इस चीज़ से डरता था कि कही उसे उसके साथी घृणा कि नजर से न देखने लग जाए l

 

यह भी पढ़े: नशे में धुत बाबा धीरेंद्र शास्त्री के भाई ने किया दलित की शादी में हंगामा, वीडियो वायरल

 

उसके मन में एक चाह थी कोई उसे सिर्फ जाति के कारण नीच न समझे बल्कि उसके अच्छे कामों को लेकर उसे प्रोत्साहित करे l कक्षा आठ कि पढाई आर्यसमाज से पूरा करने के बाद उसने पब्लिक इंटर कॉलेज में कक्षा नौ में दाखिला लिया तो लेकिन उसका मन फिर भी पढाई में नहीं लगा उसके दोस्तों में उसके जाति के लोग थे जो सिर्फ जाति के कारण दोस्त बने थे l जिनसे वह दोस्ती करना चाहता था वह उससे सिर्फ उसकी जाति के कारण दोस्ती नहीं किये क्योंकि उनके घर वालो ने उनसे कह रखा था कि या तो अपने जाति में या फिर अपने से बड़ी जाति में दोस्ती करना , चमार पासी से दुरी बना कर रखना उनके साथ कहीं आना जाना नहीं l जिसके कारण उसे उसके हिसाब से दोस्त नहीं मिले l स्कूल में ज्ञान से ज्यादा जाति कि शिक्षा दी जा रही थी जिसके कारण से वह धीरे धीरे पढाई में पिछड़ता जा रहा था l

 

यह भी पढ़े: दलित की तरफदारी करने पर कांग्रेस नेता रुपेश यादव को मिली धमकी भरी खून से लिखी चिट्ठी

 

कक्षा में पिछड़ने के बाद भी कभी किसी अध्यापक ने यह कोशिश नहीं किया कि उसको पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे बल्कि उसे हमेशा से नीचा दिखाने कि कोशिश कि गई गया l जब कभी कक्षा में उससे कोई सवाल पूछा जाता था और वह उसका जवाब नहीं दे पाता था तो सबसे पहले उसका नाम पूछा जाता था। जब वह बताता कि उसका नाम आशीष हो तो अध्यापक कहते कि आशीष आगे पीछे भी तो कुछ होगा। हारकर उसे अपनी जाति “पासी” बतानी पड़ती औऱ फिर अध्यापक द्वारा उसे फिर से जाति के कारण नीचा दिखाया जाता। वह हंसी का पात्र बन रहा था लेकिन अपनी अज्ञानता के कारण नहीं बल्कि अपनी जाति के कारण।

 

यह भी पढ़े: Unnao dalit Murder Case: दलित महिला के साथ घर में घुसकर मारपीट, दुकान को किया आग के हवाले..

 

अध्यापक द्वारा  कक्षा के अन्य बच्चों से यह कहना कि “लिखकj रख लो आशीष जरुर सरकारी नौकरी करेगा लेकिन अपने पढाई के  दम पर नहीं बल्कि अपनी जाति के दम पर मिले आरक्षण के बदोलत, और फिर आशीष बन जाएंगे सरकारी दामाद। यह बात सुनने का बाद कक्षा में एक जोर से हंसी का ठहाका गूंज गया। औऱ इस ठहाके में दब कर रह गई आशीष की वो चीख जो उसके होंठो तक भी न आ पाई थी। जैसे जैसे वह बड़ा होता गया उसकी पढाई से मन हटने लगा और वह नहीं चाहता कि वह ऐसी जगह जाये जहाँ पर सिर्फ उसकी जाति के कारण उसको नीच समझा जाए औऱ लोग उसका मजाक बनाये l   जैसे तैसे बारहवी की पढ़ाई पूरी की। आगे पढ़ाई में मन ना होने की बजह से परिवार ने भी उसे सूरत, गुजरात कमाने के लिए भेज दिया l जहाँ जाकर उसने पहले वह सब्जी बेचा फिर कुछ दिन बाद हीरा कारखाने में काम करने लगा l आज लगभग उसे पंद्रह साल हो गए उसे स्कूल छोड़े हुए और सूरत में ही काम कर रहा है कमाता उतना ही है जितने में उसका महीने भर अपने परिवार का खर्चा चला सके। बचत के नाम पर आज उसके पास कुछ भी नहीं है l शादी हो गयी है बच्चे भी धीरे धीरे बड़े हो रहे है उनको भी वह प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेजता है l

 

यह भी पढ़े: सपा की दलितों को साधने की तैयारियों को झटका देने की कोशिश, मायावती ने सभी जिला अध्यक्षों को दिए निर्देश

 

पहले तो सरकारी नौकरिया आती भी थी लेकिन सरकार द्वारा सभी सरकरी संस्थाओ को प्राइवेट करने से नौकरी नहीं आ रही जिसके कारण से पहले जो पासी चमार सरकारी नौकरी करके अपनी स्थिति अच्छी बनाये हुए है उनके बच्चे बेरोजगार बने घूम रहे हैं l आज आशीष जैसे एक दो नहीं बल्कि लाखों करोड़ो लोग हैं जिनके साथ उनके द्रोणाचार्य सिर्फ जाति के कारण उनमे उभरती हुई प्रतिभा को रोक दे रहे है l  हम माँ बाप जो इन सब कष्टों को सहकर सरकारी नौकरी कर रहे है लेकिन कभी अपने बच्चो से नहीं पूंछ सके कि क्या उनके साथ भी ऐसा कही तो नहीं हो रहा कि उनकी जाति के कारण कहीं उन्हें भी तो कक्षा में हंसी का पात्र नहीं बनाया जा रहा है l जिसके कारण से हमारे बच्चों में अपनी ही जाति के प्रति हीन भावना और अवसाद उत्पन्न हो रहा है l हम तो सरकारी नौकरी करके खुश है लेकिन हमारे बच्चों के साथ आज भी भेदभाव किया जा रहा है।

 

यह भी पढ़े: दलित छात्र दर्शन सोलंकी की मौत का जिम्मेदार कौन..?

 

जिसके कारण से उनका विकाश सही से नहीं हो पा रहा है l यदि पच्चीस करोड़ लोग जो अनुसूचित जाति में से एक भी आदमी सफल व्यवसायी , फिल्म कलाकार , मीडियाकर्मी नहीं बन पाया तो इसका साफ मतलब है कि उनके साथ जातीय आधार पर भेदभाव किया जा रहा है जो उनको आगे बढ़ने से रोक रहा है l आज भी हमारे बीच ऐसे कई द्रोणाचार्य मौजूद हैं जो अंगूठा नहीं मांगते लेकिन आपके भीतर आपकी जाति को लेकर इतनी नफरत भर देते हैं कि आप ज़िंदगी भर इस बात का पछतावा करते रह जाते हैं कि “ मैं इस जाति में पैदा ही क्यों हुआ”

 

(यह कहानी हमें हमारे पाठक प्रमोद कुमार ने भेजी है। हमनें इसमें कुछ जगह पर संशोधन किया है। ) 

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *