दलितों के हितैषी बाबा साहब अंबेड़कर समता, समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक भाईचारा के पक्षधर थे। मानवता को सर्वोपरी मानने वाले बाबा साहब बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। डॉ. आंबेडकर ने 12 मई 1956 को कहा था कि जब मैं बौद्ध धर्म को अपनाने की बात करता हूं तो मुझसे दो सवाल पूछे जाते हैं कि मैं बौद्ध धर्म को क्यों पसंद करता हूं? दूसरा सवाल यह है कि मौजूदा विश्व में यह धर्म किस तरह से प्रासंगिक है?
इसका जवाब देते हुए बाबा साहब अंबेड़कर ने कहा था कि, मैं बौद्ध धर्म को इसलिए चुन रहा हूं क्योंकि यह तीन सिद्धातों को एक साथ प्रस्तुत करता है जिसे कोई और धर्म नहीं प्रदान करता। साथ ही बाबा साहब ने बौद्ध धर्म की विशेषता बताते हुए कहा था कि मैं बौद्ध धर्म को इसलिए पसंद करता हूं क्योंकि यह ज्ञान, करुणा समानता की बात करता है। बौद्ध धर्म प्रज्ञा प्रदान करता है, करुणा प्रदान करता है और समता का संदेश देता है। वहीं, प्रज्ञा का अर्थ है अंधविश्वास और परालौकिक शक्तियों के विरुद्ध समझदारी, करुणा का अर्थ है प्रेम और पीड़ित के लिए संवेदना है और समता जाति, धर्म, नस्ल और लिंग के आधार पर बने नकली विभाजन से अलग मानवीय बराबरी में विश्वास करने का सिद्धांत है। उनका कहना था कि, दुनिया में अच्छे और सुखी जीवन के लिए यह तीनों चीजें जरूरी हैं।
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वहीं बाबासाहेब आंबेडकर ने बीबीसी के एक इंटरव्यू में बताया था कि क्यों बौद्ध धर्म को अपनाना चाहिए? बौद्ध धर्म के दार्शनिक पक्ष और उसके महत्व की बात करते हुए बताया था कि, क्यों मुझे बौद्ध धर्म पसंद है और यह दुनिया के लिए कैसे उपयोगी है? इस पर बाबा साहब ने कहा, “मैं बौद्ध धर्म को पसंद करता हूं क्योंकि यह तीन सिद्धांत देता है- ज्ञान, करुणा और समानता।
आपको बता दें कि, बाबा साहब अंबेडकर ने दलितों के हित के लिए हरसंभव रास्ता खोजा, जिससे उन्हें समाज में सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्राप्त हो और साथ ही बाबा साहब का मानना था कि यदि भारत देश ‘हिंदू राष्ट्र’ बन जाएगा तो यह देश के सभी लोगों के लिए खतरा उत्पन्न करेगा। डॉ अम्बेडकर ने आगे कहा, “बौद्ध धर्म के ये तीन सिद्धांत मुझे आकर्षित करते हैं। इन तीन सिद्धांतों को भी दुनिया के लिए अपील करनी चाहिए। न तो ‘ईश्वर’ और न ही ‘आत्मा’ समाज की सेवा कर सकते हैं।
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यह लेख – रुखसाना द्वारा लिखा गया है। (जर्नलिस्ट दलित टाइम्स)
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