परभणी बंद और हिंसा: अंबेडकर प्रतिमाओं पर लगातार हमले, भारत भर में घटनाओं की श्रृंखला, पढ़ें पूरा लेख

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महाराष्ट्र के परभणी जिले में बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा के पास रखी संविधान की प्रतिकृति को क्षतिग्रस्त किया गया, जिससे दलित समुदाय में गहरा आक्रोश फैल गया। इस घटना ने पूरे देश में अंबेडकर प्रतिमाओं पर हमले की घटनाओं की श्रृंखला में एक नया अध्याय जोड़ा। महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु तक अंबेडकर की मूर्तियों पर हमले हो चुके हैं, जो जातिवाद और असमानता के खिलाफ दलितों के संघर्ष पर चोट करते हैं। 

महाराष्ट्र के परभणी जिले में 10 दिसंबर की शाम बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के पास रखी गई संविधान की प्रतिकृति को क्षतिग्रस्त किया गया। यह घटना न केवल संविधान का अपमान है, बल्कि दलित समुदाय की अस्मिता और उनकी पहचान पर हमला है। इस घटना से पूरे परभणी में आक्रोश फैल गया। 11 दिसंबर को बुलाए गए “परभणी बंद” ने हिंसक रूप ले लिया, जिसमें टायर जलाने, परभणी-नांदेड़ हाइवे को जाम करने और पथराव जैसी घटनाएं हुईं। हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रशासन ने जिले में धारा 144 लागू कर दी और लोगों से घरों के भीतर रहने की अपील की। सोशल मीडिया पर पुलिस के लाठीचार्ज के वीडियो वायरल होने से जातिगत एंगल और आरोपों ने इस घटना को और भड़काया।

संविधान का अपमान: घटना की पृष्ठभूमि

घटना 10 दिसंबर की शाम की है, जब एक व्यक्ति ने बाबा साहेब अंबेडकर की प्रतिमा के पास रखी संविधान की प्रतिकृति को क्षतिग्रस्त कर दिया। यह न केवल संविधान का अपमान था, बल्कि दलित समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कृत्य भी था। इस घटना ने दलित समुदाय के भीतर गहरे आक्रोश को जन्म दिया। संविधान, जो समानता, स्वतंत्रता और न्याय का प्रतीक है, को अपमानित करना, दलित समुदाय की गरिमा और पहचान पर हमला माना गया।

प्रदर्शन और विरोध: परभणी बंद और हिंसा

11 दिसंबर को परभणी बंद का आह्वान किया गया, लेकिन विरोध प्रदर्शन ने जल्द ही हिंसक रूप ले लिया। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया, लेकिन यह प्रयास असफल रहा। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक पुलिसकर्मी एक व्यक्ति के पीछे लाठी लेकर दौड़ता और उसे बेरहमी से पीटता नजर आया। इसे जातीय एंगल देकर कई दलित संगठनों और सोशल मीडिया यूजर्स ने साझा किया। हालांकि पुलिस ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि लाठीचार्ज केवल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए किया गया था, न कि किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाने के लिए।

संविधान का अपमान: घटना का गहरा अर्थ

संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि समानता, स्वतंत्रता और न्याय का प्रतीक है। बाबा साहब अंबेडकर द्वारा रचित यह दस्तावेज भारत के हर नागरिक को समान अधिकार प्रदान करता है। संविधान की प्रतिकृति को क्षतिग्रस्त करना दलित समुदाय की गरिमा और उनके अधिकारों पर चोट है। यह घटना उस सामाजिक असमानता को दर्शाती है जो आज भी भारतीय समाज में मौजूद है।

इतिहास की कड़ियां: दलित प्रतीकों पर हमले

दलित समाज की अस्मिता और अधिकारों के प्रतीकों पर हमले भारत के इतिहास में एक दुखद और निरंतर घटना रही है। महाराष्ट्र में बाबा साहब अंबेडकर की मूर्तियों, उनके विचारों और दलित प्रतीकों पर हमले अब कोई नई बात नहीं रह गए हैं। ये हमले केवल मूर्तियों पर नहीं होते, बल्कि यह उस संघर्ष और आंदोलन को भी नष्ट करने की कोशिश करते हैं, जो दलित समुदाय ने समानता, स्वतंत्रता और न्याय की प्राप्ति के लिए किया। इन हमलों के माध्यम से जातिवाद और असमानता की गहरी जड़ें समाज में उभारी जाती हैं, और यह दर्शाता है कि आज भी सामाजिक बदलाव और समानता की दिशा में विरोध की ताकतें सक्रिय हैं।

मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी नामकरण आंदोलन (1978)

1978 में मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी के नामकरण को लेकर एक बड़ा आंदोलन हुआ था, जिसमें बाबा साहब अंबेडकर के नाम पर यूनिवर्सिटी का नाम रखने की मांग की गई थी। यह आंदोलन इस बात का प्रतीक था कि दलित समाज अपने अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा था। हालांकि, यह आंदोलन हिंसक रूप ले गया और इसके दौरान दलित बस्तियों पर हमले हुए और आगजनी की घटनाएं घटित हुईं। इस आंदोलन ने जातिगत भेदभाव और असमानता की गहरी जड़ें समाज में उजागर की। यह घटना दिखाती है कि जब भी दलित समाज अपने अधिकारों की बात करता है, तो इसे एक खतरनाक चुनौती के रूप में देखा जाता है, और इसके खिलाफ जातिवादी ताकतें उठ खड़ी होती हैं।

रमाबाई नगर गोलीकांड (1997)

1997 में मुंबई के रमाबाई नगर में एक और दर्दनाक घटना घटी, जब दलित समुदाय ने अंबेडकर की प्रतिमा के अपमान का विरोध किया। इस विरोध के दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी, जिससे 10 लोग मारे गए। यह घटना महाराष्ट्र में जातिवाद के खिलाफ दलितों के संघर्ष का बड़ा उदाहरण बन गई। रमाबाई नगर गोलीकांड ने यह दिखाया कि जब दलित समाज अपने अधिकारों और सम्मान के लिए खड़ा होता है, तो राज्य और सत्ता द्वारा उन्हें क्रूरता से दमन किया जाता है। इस घटना ने जातिवाद के खिलाफ दलित समुदाय के संघर्ष को और भी अधिक मजबूती से प्रस्तुत किया और इसके परिणामस्वरूप पूरे देश में दलित समुदाय के अधिकारों के लिए जागरूकता बढ़ी।

भीमा-कोरेगांव संघर्ष (2018)

भीमा-कोरेगांव की ऐतिहासिक लड़ाई (1818) में दलित सैनिकों ने पेशवा शासन को हराया था, और यह जीत दलित समुदाय के लिए गौरव का प्रतीक बन गई थी। इस विजय की स्मृति में हर साल दलित समुदाय कोरेगांव में सभा आयोजित करता है। लेकिन 2018 में इस सभा पर हमला किया गया, जो एक बार फिर यह दर्शाता है कि दलित समाज के इतिहास और संघर्षों को मिटाने की कोशिशें कभी बंद नहीं होतीं। इस हमले में कई लोग घायल हुए और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए। यह घटना सिर्फ एक सामूहिक सभा पर हमला नहीं था, बल्कि यह दलित समुदाय की संस्कृति, इतिहास और उनके संघर्ष पर हमला था। इस हमले ने यह प्रमाणित किया कि दलितों की पहचान और उनके संघर्षों को मिटाने की लगातार कोशिशें जारी हैं।

अंबेडकर प्रतिमाओं पर हमले: भारत के विभिन्न राज्यों में घटनाएं

अंबेडकर की प्रतिमाओं पर हमले भारत के विभिन्न राज्यों में समय-समय पर होते रहे हैं, और यह घटनाएं केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं हैं। बाबा साहब अंबेडकर की मूर्तियाँ उनके विचारों और संघर्षों का प्रतीक हैं, जो समाज में समानता, स्वतंत्रता, और न्याय की बात करती हैं। जब इन मूर्तियों पर हमले होते हैं, तो यह केवल एक भौतिक नुकसान नहीं होता, बल्कि यह समाज में जातिवाद और असमानता के खिलाफ उनकी लड़ाई पर हमला होता है। इन हमलों के पीछे की मानसिकता और उद्देश्य दलित समुदाय की अस्मिता और उनकी पहचान को कमजोर करना है।

उत्तर प्रदेश: अंबेडकर की मूर्तियों पर हमला

उत्तर प्रदेश में अंबेडकर की प्रतिमाओं पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं, जो जातिगत तनाव और असमानता की गहरी जड़ को दर्शाती हैं। 2018 में आजमगढ़ में अंबेडकर की मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया गया, जिससे पूरे क्षेत्र में तनाव और हिंसा फैल गई। इस हमले ने यह स्पष्ट किया कि बाबा साहब की मूर्ति सिर्फ एक मूर्ति नहीं, बल्कि समाज में समानता और न्याय की प्रतीक है, जिसका तोड़ना एक बड़े संदेश को भेजता है। 2021 में बुलंदशहर में भी बाबा साहब की मूर्ति को तोड़ा गया, जिसके बाद वहां बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि अंबेडकर की प्रतिमा पर हमला करने से समाज में गहरी खाई और विद्वेष बढ़ता है, और यह समुदाय के बीच हिंसा और असहमति को बढ़ावा देता है।

तमिलनाडु: अंबेडकर की मूर्तियों पर हमले का विरोध

तमिलनाडु में भी अंबेडकर की प्रतिमाओं पर हमलों की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे राज्यभर में गुस्सा और विरोध प्रदर्शन हुए। 2023 में विल्लुपुरम में एक दलित बस्ती में अंबेडकर की प्रतिमा पर हमला किया गया, जिससे पूरे राज्य में गुस्सा फैल गया और लोग सड़कों पर उतर आए। इस हमले के बाद जातिगत तनाव बढ़ने की आशंका थी, और सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए कई कदम उठाए। मदुरै और तंजावुर में भी अंबेडकर की मूर्तियों को निशाना बनाया गया, जिससे यह साबित होता है कि इस प्रकार के हमले केवल मूर्तियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समाज में गहरे जातिवाद को और भी उकसाते हैं।

मध्य प्रदेश: ग्वालियर और विदिशा में अंबेडकर की प्रतिमाओं पर हमला

मध्य प्रदेश में भी अंबेडकर की प्रतिमाओं को तोड़े जाने की घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें ग्वालियर और विदिशा शामिल हैं। इन घटनाओं ने दलित समुदाय में गहरी नाराजगी और रोष पैदा किया, और यह स्पष्ट किया कि इस प्रकार के हमले समाज में समानता और न्याय की विचारधारा के खिलाफ हैं। इन हमलों के विरोध में कई प्रदर्शन हुए, और दलित संगठनों ने सख्त कार्रवाई की मांग की। यह घटनाएं यह दर्शाती हैं कि अंबेडकर की मूर्तियों पर हमले, केवल भौतिक रूप से नष्ट करने का प्रयास नहीं हैं, बल्कि ये उस सामाजिक और सांस्कृतिक धारा को चुनौती देने के लिए किए जाते हैं, जो अंबेडकर के विचारों और उनके संघर्षों के माध्यम से आगे बढ़ती है।

राजस्थान: जातिगत तनाव और अंबेडकर की मूर्तियों पर हमले

राजस्थान में भी अंबेडकर की मूर्तियों पर हमले हुए हैं। जयपुर और जोधपुर जैसे प्रमुख शहरों में जातिगत तनाव के दौरान बाबा साहब की मूर्तियों को तोड़ा गया। इन घटनाओं ने राज्य में दलित समुदाय के बीच गहरी नाराजगी और असंतोष को जन्म दिया। यह हमले इस तथ्य को उजागर करते हैं कि अंबेडकर की मूर्तियों पर हमला करने वाले लोग केवल एक मूर्ति को नुकसान नहीं पहुंचा रहे, बल्कि वे समाज में समानता और न्याय की जो आवाज है, उसे दबाने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रकार के हमले केवल सामाजिक असंतोष और वैमनस्य को बढ़ाते हैं और एकता की भावना को कमजोर करते हैं।

नेताओं और संगठनों की प्रतिक्रिया

सुप्रिया सुले (एनसीपी): संविधान और दलित समाज पर हमला नेताओं की प्रतिक्रियाएं इस घटना को लेकर तीव्र रही हैं। एनसीपी की वरिष्ठ नेता सुप्रिया सुले ने इस घटना को संविधान और दलित समाज पर हमला करार दिया। उनका कहना था कि अंबेडकर की प्रतिमा और संविधान का अपमान करना केवल एक मूर्तिभंजक कृत्य नहीं है, बल्कि यह पूरे दलित समुदाय की अस्मिता और अधिकारों पर सीधा आक्रमण है। उन्होंने आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की और कहा कि ऐसे कृत्य देश की लोकतांत्रिक संरचना और संविधान की मूल भावना का उल्लंघन हैं। सुप्रिया सुले ने यह भी कहा कि इस घटना ने समाज में दलितों के खिलाफ भेदभाव और असमानता की मौजूदगी को और स्पष्ट किया है, और यह सरकार का कर्तव्य है कि वह दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे ताकि ऐसी घटनाएं भविष्य में न घटित हों।

प्रकाश अंबेडकर (वंचित बहुजन अघाड़ी): जातिवादी ताकतों का हाथ

प्रकाश अंबेडकर, जो वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष हैं, ने इस घटना को जातिवादी ताकतों का काम बताया। उनका मानना था कि दलित प्रतीकों और विचारों पर हमले केवल एक व्यक्ति या एक समूह द्वारा नहीं किए जाते, बल्कि इसके पीछे बड़े सामाजिक और राजनीतिक उद्देश्य होते हैं। उन्होंने आरोपियों को शीघ्र सजा दिलाने की मांग करते हुए कहा कि यह हमला समाज में जातिवाद को और बढ़ावा देने के लिए किया गया है। उनके अनुसार, बाबा साहब अंबेडकर और उनके विचारों को निशाना बनाकर जातिवादियों की मानसिकता को समर्थन मिलता है, और यह समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देता है। प्रकाश अंबेडकर ने इस मामले में राजनीतिक पार्टियों और राज्य सरकार से सख्त कार्रवाई की अपील की।

दलित संगठनों की प्रतिक्रिया: अस्मिता और अधिकारों पर हमला

दलित संगठनों ने भी इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। इन संगठनों ने इसे दलित अस्मिता और उनके अधिकारों पर हमला बताया। उनका कहना था कि अंबेडकर की मूर्तियां और उनके विचार केवल एक व्यक्ति के नहीं, बल्कि पूरी दलित जाति के लिए सम्मान और पहचान का प्रतीक हैं। इन प्रतीकों पर हमला करने का मतलब केवल मूर्तियों का नष्ट करना नहीं है, बल्कि यह दलितों की पूरी संस्कृति और संघर्ष को नष्ट करने की कोशिश है। संगठनों ने सरकार से मांग की कि दोषियों को कठोर सजा दी जाए, ताकि समाज में इस तरह के हमलों को रोकने के लिए एक ठोस संदेश जाए। इन संगठनों ने आंदोलन की चेतावनी भी दी और कहा कि वे अंबेडकर की विचारधारा और अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।

मायावती और चंद्रशेखर की प्रतिक्रिया

बसपा अध्यक्ष मायावती ने भी इस घटना पर अपनी चिंता व्यक्त की और ट्वीट करके इसे दलित समाज पर हमला करार दिया। उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि इस तरह के हमले समाज में असमानता और जातिवाद को बढ़ावा देते हैं। मायावती ने यह भी कहा कि बाबा साहब अंबेडकर के विचारों और उनके संघर्षों की निंदा करने की यह घटना दलितों के लिए एक बड़ा धक्का है, और इसे सहन नहीं किया जाएगा।

वहीं, आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर ने भी इस घटना पर तीव्र प्रतिक्रिया दी और इसकी कड़ी निंदा की। चंद्रशेखर ने इसे जातिवादियों का कृत्य बताते हुए कहा कि अंबेडकर की मूर्तियां केवल मूर्तियां नहीं हैं, बल्कि ये हमारे अधिकारों और संघर्ष का प्रतीक हैं। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए और उन्हें कड़ी सजा दी जाए। चंद्रशेखर ने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाएं समाज को और अधिक विभाजित करती हैं, और हमें मिलकर ऐसे हमलों के खिलाफ खड़ा होना होगा।

इन सभी नेताओं और संगठनों की प्रतिक्रियाएं यह साबित करती हैं कि अंबेडकर की मूर्तियों और उनके विचारों पर हमले केवल एक राजनीतिक या सामाजिक मुद्दा नहीं हैं, बल्कि यह एक संवैधानिक और मानवाधिकार का भी मामला है। यह समय है कि समाज में समानता, न्याय और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए हर नागरिक को आगे आकर अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

बाबा साहब के सपनों का भारत

अंबेडकर की प्रतिमाओं पर हमले केवल एक भौतिक नुकसान नहीं हैं, बल्कि ये समाज में गहरे जातिगत भेदभाव, असमानता और संघर्षों को उकसाने का प्रयास हैं। इन हमलों का उद्देश्य दलित समुदाय की अस्मिता, उनके अधिकारों और उनके संघर्षों को कमजोर करना है। परभणी की घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि समाज के भीतर गहरे जातिगत भेदभाव की ओर संकेत है। यह समय है कि हम बाबा साहब अंबेडकर के समानता और न्याय के विचारों को आत्मसात करें। दलित समुदाय की अस्मिता और अधिकारों की रक्षा हर नागरिक की जिम्मेदारी है। ऐसी घटनाएं भारतीय लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना पर चोट हैं, और इन्हें रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। बाबा साहब के सपनों का भारत तभी संभव है, जब हर नागरिक को समान अधिकार और सम्मान मिले।

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