पुण्यतिथि विशेष – केवल सचिन को ही “भारत रत्न'”क्यों ? हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को क्यों नहीं

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हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद की आज पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें नमन करा है। उनके जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन हर साल खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते है।
लगातार तीन ओलम्पिक स्वर्ण दिलाने वाले ध्यानचंद की उपलब्धियों का सफर भारतीय खेल इतिहास को भी गौरवान्वित करता है लेकिन देश ने केवल राष्ट्रीय खेल हॉकी बल्कि मेजर ध्यानचंद को भी भुला दिया है। भारतीय हॉकी की दयनीय हालत किसी से छुपी नहीं है और शायद यही कारण है की मेजर ध्यानचंद को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लिए नजर अंदाज किया जाता है।

2014 में मेजर ध्यानचंद के नाम की सिफ़ारिश को ठुकराते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार ने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को ‘भारत रत्न’ दे दिया था. 2013 में मेजर ध्यानचंद का बायोडेटा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय में कई महीने पहले ही पहुंच चुका था. उस पर पीएम की स्वीकृति भी मिल चुकी थी लेकिन बाद में अचानक सचिन के नाम पर मुहर लगा दी गई.

खिलाड़ियों के लिए भारत का शीर्ष सम्मान अर्जुन अवार्ड है. जबकि भारत रत्न साहित्य, कला, विज्ञान और जनसेवा के क्षेत्र में दिया जाता था,
लेकिन इन नियमो में बदलाव कर खेल को इसमें शामिल किया गया और मेजर ध्यानचंद को नजरअंदाज कर सचिन तेंदुलकर पहले खिलाडी बने जिन्हे यह सम्मान प्राप्त हुआ।

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सचिन ने क्रिकेट में जो मुकाम हासिल किया वो असंभव माना जाता था ऐसे खिलाडी भारत रत्न के हक़दार है। परन्तु दूसरे खेलो में भी भारत के लिए असाधारण उपलब्धि हासिल करने वाले इस सम्मान के दावेदार है। मेजर ध्यानचंद को यह सम्मान मरोणोपंत दिया जा सकता है क्योकि देश के लिए उन्होंने तीन ओलम्पिक गोल्ड मैडल तब जिताये जब क्रिकेट में भारत की स्थिति दयनीय थी। ध्यानचंद वे खिलाडी थे जिसकी तारीफ करने के लिए हिटलर को भी मजबूर होना पड़ा था।

उनकी जयंती को भारत सरकार राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाती है लेकिन सरकारों ने एक बार भी भारत रत्न के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया।

शतरंज की दुनिया में कभी गैरी कास्पोरोव को इस खेल का पर्याय माना जाता था लेकिन भारत के विश्वनाथ आनंद ने इसको बदला और आज वे दुनिया में इस खेल का प्रयाय बन चुके है। इस खेल में भारत को कभी मुकाबलों में नहीं माना जाता था लेकिन भारत में शतरंज की दुनिया में क्रांति लाने का श्रेय विश्वनाथ आनंद को ही जाता है जो तीन बार फिडे की विश्व चैम्पियनशिप जीत चुके है।
यही मुकाम बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण ने देश को दिलवाया ,एक समय था जब बैडमिंटन के क्षेत्र में भारत को कोई नहीं जानता था तब प्रकाश पादुकोण ने 1980 में इस खेल की विश्व चैम्पियनशिप मानी जाने वाली ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीती तो पुरे भारत का सर गर्व से ऊँचा हो गया।

ऐसे ही विभिन्न खेलो में कई खिलाड़ियों ने देश का नाम दुनिया में रोशन में रोशन किया है लेकिन उन्हें वो सम्मान और प्राथमिकता नहीं मिलती जो क्रिकेट और क्रिकेटरों को मिलती है।

यूपीए के बाद आई मोदी सरकार ने पंडित मदन मोहन मालवीय मरणोपरांत को भारत रत्न सम्मान दिया, लेकिन मेजर ध्यानचंद की ओर शायद उसका ध्यान नहीं गया. और ना ही अब ध्यान जा रहा है। एक बार फिर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग तेज होती जा रही है अब देखना यह है की सरकार इस और ध्यान देती है या एक बार फिर जादूगर को नजरअंदाज करती है।

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