दलितों के उद्धार के लिए कांशीराम ने राष्ट्रपति बनने से किया था इंकार ?

Share News:

साल 1964 में जब कांशीराम की उम्र तीस साल थी। वह एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब में रिसर्च असिस्टेंट की नौकरी कर रहे थे। एक रात अचानक वह गौतम सिद्धार्थ की तरह कुछ प्रतिज्ञाएं लेते हैं साथ ही पूरी दुनिया के नाम 24 पृष्ठों का एक महा पत्र लिखते हैं। जिसके सात मुख्य बिंदु थे। इन सात बिंदुओं को लोगों को आज भी जानना चाहिए। खास कर नयी पीढ़ी को। ये बिंदु हैं…

  1. कभी घर नहीं जाऊंगा।
  2. अपना घर नहीं बनाऊंगा।
  3. गरीब दलितों के घर ही हमेशा रहूँगा।
  4.  रिश्तेदारों से मुक्त रहूँगा।
  5. शादी, श्राद्ध, बर्थडे जैसे समारोहों में शामिल नहीं होऊंगा।
  6. नौकरी नहीं करूँगा और
  7.  फुले-आंबेडकर के सपनों को पूरा होने तक चैन से नहीं बैठूंगा।

अपने संयास के दौरान  कांसीराम ने इन सात बिंदुओं को अपने जीवन मे आत्म सात  किया।

बामसेफ का गठन:

कांशीराम ने BAMCEF  नाम के एक संगठन का निर्माण किया था।

जिसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों के शिक्षित सदस्यों को अम्बेडकरवादी सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए तैयार करना और सामाजिक बुराइयों के ख़िलाफ़ मुखर होकर आवाज़ उठाना था। BAMCEF कोई राजनीतिक या धार्मिक संस्था नहीं थी और इसका अपने उद्देश्य के लिए आंदोलन करने का भी कोई उद्देश्य नहीं था।

बसपा की स्थापना:

कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना सन 1984 में की। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी ही नहीं बनाया बल्कि 4 बार उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार भी बनवायी।  BSP की तरफ़ से सुश्री मायावती जी को 1995 से अब तक चार बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला इसका सबसे ज़्यादा श्रेय बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक नेता साहब कांशीराम को ही जाता है।

क्या भटक गयी है बहुजन समाज पार्टी:

बहुजन समाज पार्टी के ऐसे समर्थक जो कांशीराम जी के समय से इससे जुड़े हैं उनका दावा है कि बहुजन समाज पार्टी अपने मिशन से भटक गयी है, मायावती के तेज तर्रार भाषण, लोगों को जोड़ने और उनसे मिलने का जुनून अब सिर्फ़ इतिहास रह गया है। बहुत से लोग मायावती को बसपा की हार का ज़िम्मेदार तक ठहरा रहे हैं। ये लोग आज भी सम्मान में कांशीराम का नाम नहीं लेते बल्कि उन्हें ‘मान्यवर’ या ‘साहब’ कहकर बुलाते हैं।

ये लोग बीएसपी और कांशीराम के नाम पर राजनीतिक संघर्ष करने आए थे। लेकिन आज न कांशीराम हैं और न ही मौजूदा बीएसपी है जो उनके समय पर हुआ करती थी। जब जब बसपा हार का मुँह देखती है लोग कांशीराम के मिशन को याद कर के दुखी हो जाते हैं। बसपा के समर्थक आज भी यही उम्मीद करते हैं की इस बार हम फिर से उठ खड़े होंगे अपने उसी पुराने अन्दाज़ में, फिर से सजाएँगे शासन का ताज बसपा के सिर पर।

किसको कहा था चमचा :

सन 1982 में, कांशीराम ने “द चमचा युग” (The Era of the Stooges) नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने दलित नेताओं के लिए चमचा (stooge) शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा कि ये दलित लीडर केवल अपने निजी फायदे के लिए अन्य दलों के साथ मिलकर राजनीति करते हैं। कांशीराम जी लिखते हैं “चमचा एक देशी शब्द है जो ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो अपने आप क्रियाशील नही हो पाता है बल्कि उसे सक्रिय करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की आवश्‍यकता पड़ती है। वह अन्य व्यक्ति चमचे को सदैव अपने व्यक्ति उपयोग और हित में अथवा अपनी जाति की भलाई में इस्तेमाल करता है जो स्वयं चमचे की जाति के लिए हमेशा नुकसानदेह होता है।” (पृष्ठ-80 चमचा युग)

ठुकरा दिया था राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव:

कहते हैं कि एक बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन कांशीराम ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा देने वाले कांशीराम सत्ता को दलित की चौखट तक लाना चाहते थे. वे राष्ट्रपति बनकर चुपचाप अलग बैठने के लिए तैयार नहीं हुए।

अपने देश, समाज और पिछड़ों को सम्मान की जिंदगी जीने के उद्देश्य से राजनीती में उतरे मान्यवर कांशीराम को आज बाबा साहब के बाद सबसे बड़े नेताओं में गिना जाना कोई बड़ी बात नहीं लगती है। ये साहब कांशीराम थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीती को हिला कर रख दिया और पैदल चलने वाले समाज के नेताओं को सत्ता पर बिठाने का काम किया था, नमन है ऐसे साहब को जिसने अपनी सारी जिंदगी अपने समाज और देश को अन्य लोगों को बराबर लाने और उनका हक़, सम्मान दिलाने के लिए न्वोछावर कर दी।

 

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *