पहली दलित महिला आत्मकथाकार “शांताबाई कांबले” जिन्होंने जाति उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था

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शांताबाई कांबले मराठी साहित्य का वो सुनहरा नाम है जिन्हें पहली दलित महिला आत्मकथाकार का सम्मान प्राप्त है। इनका जन्म 1 मार्च 1923 में हुआ था। लेखिका के अलावा शांताबाई एक शिक्षिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। शांताबई ने अपनी आत्मकथा के जरियें दलितों की पीड़ा का वर्णन किया है और मराठी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

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गरीबी में बीता बचपन:

शांताबाई कांबले ने “माज्या जलमाची चित्रकथा” नाम से आत्मकथा लिखी थी। शांताबाई कांबले का जन्म सोलापुर जिले के महुद बुद्रुक गांव में हुआ था। शांताबाई कांबले गरीब परिवार से थीं। इनका बचपन गरीबी में बीता था लेकिन इसके बाद भी उनके माता पिता उन्हें पढ़ाना चाहते थे। क्योंकि शांताबाई कांबले प्रतिभा की धनी थीं उनकी लगन को देखते हुए उनके माता पिता ने उन्हें पढ़ाया।

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जातिगत भेदभाव का सामना किया:

शांताबाई कांबले को जातिगत भेदभाव से ग्रस्त समाज से कष्टों का सामना करना पड़ा था। जैसे शांताबाई कांबले महार जाति से थीं। उन्होंने शुरुआती दिनों में महारिका का काम भी किया था।  फसल को समय यदि खेत में बैल ज्वार को खा लेते थे तो उस ज्वार को धोना और साफ करना, गोबर लगे हुए ज्वार को खाना और यहां तक कि उन्होंने गांव से खाना इकट्ठा करके घर भी लेकर आय़ा करती थीं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शांताबाई का जीवन कितना कठिन था। एक दलित होने के कारण उन्हें समाज में जातिगत भेदभाव तक सहना पड़ा था।

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शांताबाई कांबले, इमेज क्रेडिट गूगल

बाबा साहेब के विचारों से प्रेरित:

शांताबाई कांबले ने स्कूली शिक्षा के लिए संघर्ष करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की थी। वह पुणे के महिला स्कूल में शिक्षिका भी थीं। शांताबाई कांबले बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों से भी काफी प्रेरित थीं। उन्होंने बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन से प्रेरित होकर लगभग 7 गांवों में धर्म परिवर्तन के कार्यक्रम आयोजित किए थें।

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पहली आत्मकथा:

शांताबाई कांबले द्वारा लिखी गई आत्मकथा पहली बार 1982 में ‘पूर्व’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि “माज्या जलमाची चित्रकथा” किसी दलित महिला द्वारा लिखी गई भारत की पहली आत्मकथा है। इस आत्मकथा का अनुवाद “कैलिडोस्कोप स्टोरी ऑफ माई लाइफ” के रुप में 1986 में एक संपूर्ण पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था। बाद में इसे दर्शकों के लिए मुंबई दूरदर्शन पर नजुका के रूप में टेली-सीरियल किया गया था।

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जाति उत्पीड़न:

शांताबाई द्वारा लिखित आत्मकथा का1990 में फ्रेंच और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था।
इस पुस्तक में मुख्य रुप से  दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर लिखा गया है। इसमें जाति उत्पीड़न और पुरुष साथियों द्वारा महिलाओं के प्रति लैंगिक भेदभाव का वर्णन किया गया है। इन मुद्दों के जरियें शांताबाई कांबले अपने जीवन के संघर्ष को बताती हैं।

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शांताबाई कांबले की आत्मकथा, इमेज क्रेडिट गूगल

बौद्ध धर्म की रीति से अंतिम संस्कार:

शांताबाई कांबले अपनी पुस्तक के समर्पण में लिखती हैं, “मेरे आये-अप्पा [माँ और पिता] के लिए, जिन्होंने पूरे दिन तेज़ धूप में, भूखे और बिना पानी के और कड़ी मेहनत के माध्यम से काम किया, जबकि भूख उनके पेट में चुभ रही थी, शिक्षित मुझे और मुझे अंधकार से प्रकाश में लाया।” 25 जनवरी को आज ही के दिन 2023 में शांताबाई का 100 साल की उम्र में पुणे में निधन हो गया था। नवी मुंबई के कोपरखैरणे में बौद्ध धर्म की रीति से उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

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