जोहार के साथ CM पद की शपथ लेने वाले आदिवासी चंपई सोरेन, जानिये झारखंड टाइगर की दिलचस्प कहानी

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झारखंड के नये मुख्यमंत्री चंपई सोरेन कहते हैं, हमारा प्रयास रहेगा कि भगवान बिरसा मुंडा, सिदो- कान्हू एवं बाबा तिलका मांझी समेत सभी शहीदों के आदर्शों को धरातल पर उतारकर, राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, दलितों एवं आम नागरिकों के जीवन स्तर में बदलाव लाया जाये…

Jharkhand Tiger Champai Soren new CM of Jharkhand : ईडी के जांच के दौरान हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उनकी गिरफ्तारी हो चुकी है और झारखंड मुक्ति मोर्चा के आदिवासी नेता चंपई सोरेन झारखंड के नये मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। हेमंत सोरेन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे चंपई सोरेन शिबू सोरेन परिवार के बहुत खास और करीबी हैं। उनके पास परिवहन, आदिवासी कल्याण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने की जिम्मेदारी है और इसका कारण है उनकी बेदाग छवि। चंपई सोरेन की गिनती बेहद ईमानदार नेताओं में की जाती है। अपने क्षेत्र में घूमते हुए चंपई साधारण कपड़ों में हमेशा कंधे पर एक झोला टांगे नजर आते थे।

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद चंपई सोरेन ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर एक पोस्ट शेयर की है जिसमें लिखा है, जोहार! आज झारखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण किया। दिशोम गुरु आदरणीय शिबू सोरेन जी के मार्गदर्शन में हमारी सरकार राज्य की आम जनता के हित में काम करती रहेगी। हमारे गठबंधन की सरकार ने माननीय हेमंत सोरेन जी के नेतृत्व में जो बुनियादी शुरुआत किया है, यहां के आदिवासियों, मूलवासियों एवं आम झारखंडियों का के सर्वांगीण विकास के लिए जो योजनाएं शुरू की गई हैं, हम उसे गति देने का काम करेंगे।’

चंपई आगे ​कहते हैं, ‘झारखण्ड प्रदेश में विपक्ष की ओर से झूठे प्रचार के दम पर, जिस प्रकार अस्थिरता का माहौल बनाया जा रहा है, उसे हमारे गठबंधन की एकता ने विफल कर दिया। पूरे देश ने देखा कि किस प्रकार एक आदिवासी सीएम हेमंत बाबू के खिलाफ साजिश करके, उन्हें अपस्थ किया गया। इन साजिशों को बेनकाब करके, हम प्रदेश को विकास की राह में ले जाने का प्रयास करेंगे। ये लड़ाई बरसों से है, इसका लंबा इतिहास है, जल-जंगल-जमीन के लिए हमारे पूर्वजों ने भी संघर्ष किया है। बाबा तिलका मांझी, सिदो- कान्हू, चांद- भैरव, फूलो- झानो, भगवान बिरसा मुंडा, टाना भगत जैसे बहुत से आंदोलनकारी रहे हैं, जिन्होंने अस्तित्व की लड़ाई में अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं किया।’

बकौल चंपई सोरेन, ‘हमारा प्रयास रहेगा कि भगवान बिरसा मुंडा, सिदो- कान्हू एवं बाबा तिलका मांझी समेत सभी शहीदों के आदर्शों को धरातल पर उतारकर, राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, दलितों एवं आम नागरिकों के जीवन स्तर में बदलाव लाया जाये।’

कौन हैं चंपई सोरेन
झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने शिबू सोरेन के साथ मिलकर अलग झारखंड राज्य आंदोलन के लिए बहुत संघर्षपूर्ण लड़ाई लड़ी। पृथक झारखंड की लड़ाई में दिवंगत सांसद सुनील महतो और शहीद रतिलाल महतो के लिए उनके अविस्मरणीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनके बारे में कहा जाता है कि राज्य आंदोलन की लड़ाई के दौरान वह घर न आकर जंगलों और पहाड़ों में छुपते थे। कई बार तो बिना भोजन के सिर्फ पानी से गुजारा भी करना पड़ता था, मगर फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अलग झारखंड लेकर ही दम लिया। कई बार तो ग्रामीण उन्हें पुलिस से बचाते थे। उनके संघर्ष और अदम्य साहस को देखते हुए उन्हें झारखंड टाइगर कहा जाता है।

झामुमो के महत्वपूर्ण सहयोगी
झारखंड मुक्ति मोर्चा का कई बार बिखराव हो चुका है, मगर चंपई सोरेन हमेशा दिशोम गुरु कहे जाने वाले शिबू सोरेन के साथ डटे रहे। 2005 में वो पहली बार विधायक बने और फिर लगातार जीत हासिल करते गये। चंपई सोरेन पहली बार बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन सरकार में मंत्री बने थे। हेमंत सोरेन के पहले कार्यकाल में भी मंत्री रहे और साल 2019 के चुनाव में कोल्हान क्षेत्र में झामुमो को मिली प्रचंड जीत में भी उनका बड़ा योगदान रहा।

कोरोनाकाल में बने आदिवासियों के हीरो

पृथक झारखंड की लड़ाई के अलावा कोरोना संकट में भी चंपई सोरेन ने अपने राज्य की जनता के लिए बहुत काम किया और उनके काम की खूब चर्चा भी हुई। सोशल मीडिया माध्यम से ही उन्होंने राज्य से बाहर फंसे झारखंडी मजदूरों की खूब मदद की। उनकी छवि आम जनता के बीच ऐसी बन चुकी थी कि कोई भी समस्या हो, लोग समाधान के लिए चंपई सोरेन के पास फरियाद लेकर पहुंच जाते थे। हेमंत सोरेन कैबिनेट में भी उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता रहा है और एक बार फिर से हेमंत सोरेन ने उन पर अपना विश्वास जताकर उनकी ईमानदारी को सर्टिफिकेट देने का काम किया है।

चंपई सोरेन संथाल आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। झारखंड में संथाल आदिवासियों की आबादी सर्वाधिक है और शिबू सोरेन भी संथाल आदिवासी हैं। इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों ने कयास लगाना शुरू कर दिया है कि चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाकर झामुमो अपने आधार वोट बैंक को बचाने की जुगत में लग गया है।

6 बार विधायक रहते हुए चंपई ने क्षेत्र की जनता के बीच न सिर्फ अपनी मजबूत और दमदार छवि बनाने का काम किया है, बल्कि आदिवासी जनता उनकी ईमानदारी पर आंखें मूंदकर विश्वास करती है। दसवीं तक 69 वर्षीय चंपई बहुत कम उम्र में झारखंड राज्य आंदोलन से जुड़ चुके थे। बात उनके पारिवारिक जीवन की करें तो वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। पिता सिमल सोरेन के साथ खेती-किसानी संभालते हुए बहुत कम उम्र में ही उनकी शादी हो गयी थी। उनके सात बच्चे हैं, जिनमें चार बेटे और 3 बेटियां हैं।

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