दलित समाज से आने वाले “कुकूराम” ने कैसे जीता वर्ल्ड बॉडीबिल्डिंग में गोल्ड मेडल …जानिए

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कुकूराम पंजाब के पटियाला शहर के रहने वाले हैं। कुकूराम दलित समाज से आते हैं और एक वक्त था जब वह सफाई कर्मी थें। अब उन्होंने वर्ल्ड बॉडीबिल्डिंग में गोल्ड मेडल जीत लिया है। कुकूराम ने 53 साल की उम्र में थाईलैंड में आयोजित 2022 वर्ल्ड बॉडीबिल्डिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक देश के नाम किया था। उनकी कामयाबी की मिसाल आज भी कायम हैं। कुकूराम के लिए सफाई कर्मी से लेकर बॉडी बिल्डर चैंपियन तक का सफ़र आसान नहीं था। इसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया था। आर्थिक तंगी से लड़ते हुए उन्होंने ये मुकाम हासिल किया है।

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आर्थिक तंगी का सामना किया:

शुरुआती दिनों में कुकूराम ने बंधुआ मज़दूरी की और इसके बाद सफाई कर्मी से पहले कुकूराम जी रिक्शा भी चलाते थें। आर्थिक तंगी की वजह से वह शिक्षा से भी वंचित रहे थे। लेकिन पहलवानी के प्रति कुकूराम के जुनून के सामने जीवन के तमाम संघर्ष हार गए। मिस्टर पंजाब में भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। फिर इसके बाद वह निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते  रहें। 1996 में कुकूराम के पिता का देहांत हो गया था। पिता के चले जाने के बाद उनके जीवन में संघर्ष और भी बढ़ गया था।

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सफ़ाई कर्मी रहें :

कुकूराम 1988 से पहलवानी करते थें और घर परिवार को चलाने के लिए वह पटियाला के कोर्ट कॉमलेक्स में सफ़ाई कर्मी का काम करते थें। उन्हें केवल 9000 रुपए तनख्वाह मिलती थीं और इतने पैसे में घर खर्च चलाना उनके लिए मुश्किल था। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें पहलवानी के लिए डाइट से लेकर कसरत के दूसरे संसाधनों में परेशानी का सामना करना पड़ता था।

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पहलवान कुकूराम, इमेज क्रेडिट गूगल

सीमेंट से बने डंबल का इस्तेमाल:

कुकूराम की आर्थिक स्थिति इतनी कमज़ोर थीं कि उनके पास जिम तक ज्वॉइन करने के लिए पैसे नहीं थें। इसलिए घर पर ही खुद से उन्होंने जिम बना लिया था। खुद से जिम में इस्तेमाल होने वाले संसाधन बना लेते थें। कसरत करने के लिए सीमेंट के बने डंबल का इस्तेमाल करते थें। दूसरे फ़ूड सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल करने के बजाय घर के भोजन और देसी कसरत की डाइट लेकर ही अपनी बॉडी मेंटेन करते थें।

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जातिगत भेदभाव का सामना :

कुकूराम को घर की आर्थिक समस्या  की वजह से वर्ल्ड चैम्पियनशिप में एंट्री के लिए अपने मित्रों की सहायता लेनी पड़ती थीं। अक्सर उनके पास कॉम्पिटिशन के लिए बाहर जाने के लिए व्यवस्था नहीं होती थीं। वर्ल्ड चेम्पियनशिप के लिए थाईलैंड जाने के लिए मित्रों ने उनकी सहायता की थीं। दलित समुदाय से हेने के काऱण उन्होंने जातिगत भेदभाव का भी सामना किया था। आर्थिक तंगी और जातिगत भेदभाव के बाद भी वह आगे बढ़ते चले गए।

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नशे से दूर रहें:

युवाओं के लिए कुकूराम कहते हैं कि अगर शरीर को स्वस्थ रखना है तो नशे से दूर रहना ज़रुरी है। नशा स्वास्थ्य को खराब कर देता है। उन्होंने बताया कि वह हमेशा से नशे से दूर रहें हैं और यही वजह है कि 53 साल की उम्र में उन्होंने वर्ल्ड बॉडीबिल्डिंग में गोल्ड मेडल जीता था और आज भी वह फिट और स्वस्थ हैं।

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