अभी तक कायस ये लगाए जा रहे थे कि साल 2023 के शुरूआती 6 महिनों के भीतर यूपी में नगर निकाय चुनाव होंगे। लेकिन मंगलवार यानी 27 दिसंबर को इलाहबाद उच्च न्यायलय की लखनऊ बैंच ने चुनावों को लेकर बड़ा फैसला सुना दिया। हाईकोर्ट ने यूपी में त्तकाल निकाय चुनाव करवाने का निर्देश दिया है। वहीं चुनावों के लिए अदालत ने सबसे अहम फैसला ये लिया है कि यूपी नगर निकाय चुनावों में OBC आरक्षण लागू नहीं होगा। पहले से जो सीटें OBC के लिए आरक्षित है वह सभी सीटें अब सामान्य मानी जाएगी।
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अदालत ने अपने 70 पेजो के फैसले में OBC आरक्षण को खत्म करने का फैसला ट्रिपल टेस्ट के आधार पर लिया है। अदालत ने कहा है कि जब तक ट्रिपल टेस्ट नहीं हो जाता तब तक OBC आरक्षण चुनाव में लागू नहीं होगा और सरकार और इलेक्शन कमिशन बिना OBC आरक्षण के चुनाव करवा सकते हैं। अब सवाल ये है कि ये ट्रिपल टेस्ट क्या है। इस पर भी बात करेंगे लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि हाईकोर्ट के फैसले पर किस नेता ने क्या टिप्पणी की और किसने इसका विरोध किया।
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अदात के फैसले पर किसने क्या कहा:
मामले पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि, भाजपा OBC आरक्षण को खत्म करना चाहती है, आने वाले समय में भाजपा बाबा साहेब द्वारा दलितों को दिए गए आरक्षण को भी खत्म कर देगी। तो वहीं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इसे भाजपा की आरक्षण विरोधी सोच और मानसिकता कहा।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल को कांग्रेस शासन की याद आई। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि, “जब कांग्रेस सत्ता में थी तो OBC आरक्षण सुरक्षित था, कांग्रेस शासन में ही मंडल कमीशन लागू हुआ, शिक्षा का कोटा अर्जुन सिंह ने दिया, बीजेपी के आने के बाद OBC आरक्षण खत्म हो रहा है, ये देश की आधी आबादी के साथ अन्याय है।“
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वहीं ट्राईबल आर्मी के संस्थापक हंसराज मीणा ने इसे अनैतिक और असंविधानिक बताते हुए इसका विरोध किया। तो स्वामी प्रासाद मौर्या ने इसे नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना में अनियमितता बताया। तो यूपी निकाय चुनावों में OBC आरक्षण को खत्म करने के फैसले को भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद ने भाजपा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा बताया..
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मामले पर अपना दल ने ट्वीट करते हुए कहा कि , OBC आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हम इस संदर्भ में माननीय लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो अपना दल ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा। तो वहीं मामले पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पहले यूपी सरकार एक आयोग गठित करके ट्रिपल टेस्ट के आधार पर OBC आरक्षण लागू करेगी उसके बाद ही नगर निकाय चुनाव करवाए जाएंगे।
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सवाल फिर से वही कि आखिर ये ट्रिपल टेस्ट है क्या ?
दरअसल, ट्रिपल टेस्ट एक फार्मूला है जिसके अनुसार ओबीसी आरक्षण देने के लिए राज्य को एक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना होगा. जो अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक सामाजिक स्थिति की रिपोर्ट पेश करगा, ये आयोग यह भी बताएगा कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की आवयशक्ता है या नहीं.
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अगर आऱक्षण देना है तो कितना देना है. इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर आनुपातिक आधार पर आऱक्षण नगर निगम और नगरपालिका चुनाव में निर्धारित किया जाए. वहीं इसकी शर्त ये है कि एससी एसटी या ओबीसी को मिलाकर कुल आरक्षण 50 फीसदी की सीमा के बाहर नहीं जाना चाहिए।
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ट्रिपल टेस्ट को लेकर अदालत में याचिका:
बता दें कि 5 दिसंबर को सरकार की ओर से जारी एक नोटिफिकेशन को आधार बनाकार वैभव पांडेय और अन्य ने अदालत में एक याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में चार सीटें जो मेयर की सीट हैं उन्हें OBC के लिए आऱक्षित किया गया है। इसमें ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता को पूरा नहीं किया गया है। हालांकि अदालत में जवाब देते हुए सरकार ने कहा था कि, नगरपालिका अधिनियम 1916 और नगर निगम अधिनियम 1959 के प्रावधानों के तहत सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को अपनाया गया है. निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर वर्ष 2017 में एक पद्धति बनाई गई थी. इसको लेकर एक एसओपी तैयार की गई थी और उसे ही अपनाया गया है. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए ट्रिपल टेस्ट के बिना निकाय चुनावों में OBC आरक्षण को खत्म कर दिया।
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