तमिलनाडु में जातिवाद की हद पार, दलितों की टंकी में मिलाया मानव मल

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बीते मंगलवार तमिलनाडु के इरायुर गांव में जातिवादी मानसिकता की हद पार हो गई। तमिलनाडु के इस गांव में दलितों के लिए अलग बनी पानी की टंकी में मानव मल मिलने से तनाव फैल गया। जानकारी के मुताबिक करीबन एक हफ्ते से दलित समुदाय उसी पानी की टंकी से पानी पी रहा था। जब कई बच्चे एक साथ बीमार पड़ गए तो इलाज कर रहे डॉक्टर ने बीमार पड़ने का कारण पीने के पानी में दिक्कत होना बताया। जिसके बाद कई दलित पानी की टंकी पर चढ़ गए और ढक्कन हटाकर देखा तो टंकी का पूरा पानी पीला था। पानी में भारी मात्रा में मानव मल था औऱ कई हफ्तों से दलित समुदाय इसी टंकी से पानी पी रहा था।

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जांच कर रही पुलिस ने की घटना की पुष्टि:

मामले की शिकायत के बाद पुडुकोट्टई की कलेक्टर कविता रामू और जिला पुलिस प्रमुख वंदिता पांडे  ने मंगलवार को गांव का दौरा किया। इस दौरान जांच करने पहुंची टीम तमिलनाडु के जातिवाद से रूबरू हुई। अधिकारियों के मुताबिक, तमिलनाडु के गांव इरायुर में जातिव्यवस्था आज भी जस की तस मौजूद है।

गांव वालों से बात करते हुए पुडुकोट्टई की कलेक्टर कविता रामू और जिला पुलिस प्रमुख वंदिता पांडे (image: dalittimes)

 

यहाँ दलितों की तीन पीढ़ियों ने कभी मंदिर नहीं देखा। वर्तमान में भी गांव के दलितों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है। गांव में जो सार्वजनिक चाय की दुकान है वहाँ टु गिलास सिस्टम है यानी अनुसूचित जाति के लिए अलग गिलास औऱ सवर्ण या तथाकथित ऊंची जाति वालों के लिए अलग गिलास की व्यवस्था है।

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गांव में दलितों के लिए है अलग पानी की टंकी:

तमिलनाडु की इस जातिवादी व्यवस्था के कारण इरायुर गांव में दलितों के लिए 10 हज़ार लीटर की अलग पानी की टंकी है। दलित सिर्फ इसी टंकी से पानी पीते हैं। बीते दिनों में कई बच्चों के बीमार पड़ने के बाद जब दलितों ने पानी की टंकी का निरिक्षण किया तो पाया की पानी की टंकी में भारी मात्रा में मानव मल है। टंकी का सारा पानी पीला पड़ चुका है।

 

प्रतिकात्मक तस्वीर

 

दलित एक हफ्ते से इस पानी को पी रहे थे. घटना पर राजनीतिक कार्यकर्ता मोक्ष गुनावलगन ने कहा कि बच्चों के बीमार पड़ने पर सच्चाई सामने आई। वहीं दूसरी तरफ कलेक्टर कविता रामू ने अपने बयान में कहा कि टंकी में पानी का निरिक्षण करने के लिए जब युवक टैंक पर चढ़े, तो उन्होंने ढक्कन को खुला पाया। हालांकि अभी तक इस बात का पता नहीं चला है कि टंकी में मावन मल किसने डाला था।

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तीन पीड़ियों के इंतज़ार के बाद टूटी जातिवाद की एक दीवार:

जानकारी के मुताबिक, जब दलितों ने जिला पुलिस प्रमख और कलेक्टर कविता को बताया की गांव में जातिवाद की जड़े इतनी गहरी है कि उनकी तीन पीड़ियों से किसी ने मंदिर में प्रवेश नहीं किया। आज भी उन्हें मंदिर में जाने की इजाज़त नहीं है। गांव में चाय की दुकान पर भी अनुसूचित जाति के लिए अलग बर्तन हैं। मामले की गंभीरता देखते हुए पुलिस चीफ़ औऱ कलेक्टर कविता ने खुद चाय की दुकान पर जाकर जांच की औऱ दुकानदार के खिलाफ़ मामला दर्ज किया।

दलितों को मंदिर में कराया प्रवेश:

पूरे अनुसूचित जाति समुदाय को लेकर दोनों अधिकारी गांव के मंदिर पहुंचे  और उन लोगों की पहचान करने को कहा, जिन्होंने उन्हें परिसर में प्रवेश करने से रोका था। इस दौरान मंदिर में एक सवर्ण महिला ने यह कहते हुए चिल्लाना शुरू कर दिया कि उस पर एक देवता का साया है जो मंदिर में निचली जाति के लोगों को आने देना नहीं चाहता है। इस घटना के बाद पुलिस ने उसके खिलाफ भी मामला दर्ज किया है। बहरहाल, गांव के अनुसूचित जाति के लोग इस बात से खुश हैं कि उन्हें तीन पीढ़ियों के बाद मंदिर में जाने का मौका मिला। गांव की एक निवासी लता का कहना है कि उसने पहली बार देखा कि इस मंदिर में भगवान कैसे दिखते हैं। वहीं एक निवासी शैलेजा ने कहा कि हम मंदिर गए हमें खुशी हैं लेकिन आज मिला यह अधिकार खत्म नहीं होना चाहिए।

 

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