तेलंगा खड़िया का जन्म साल 1806 में आज ही के दिन 9 फरवरी को हुआ था। तेलंगा खड़िया एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर आदिवासी लोगों को ब्रिटिश शासन के अन्याय और अत्याचार से मुक्त करवाया था। आज इस लेख में हम तेलंगा खड़िया की जयंती के अवसर पर उनके संघर्ष और आदिवासियों के लिए उनके द्वारा किए बलिदान के बारे में जानेंगे।
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तेलंगा को तेड बलंगा कहते थे :
तेलंगा खड़िया का जन्म झारखंड के जिले गुमला के मुरगू गांव में हुआ था और वह मुरगू गांव के खड़िया जमींदार तथा पाहन परिवार से थें। इनके पिता का नाम ठुईया खड़िया तथा माता का नाम पेतो खड़िया था। गांव के लोग तेलंगा को तेड बलंगा कहते थे लेकिन बाद में वे तेड बलंगा से तेलंगा के नाम से पहचाने जाने लगे। एक वक्त था जब तेलंगा खड़िया ने अपने साहस से अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। ऐसा कहा जाता है कि बचपन से ही तेलंगा के माता पिता उन्हें अंग्रेजों के अत्याचारों की कहानी सुनाया करते थें। बचपन में ही उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की अग्नि जल उठी थीं।
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ब्रिटिश शासन की स्थापना :
1850 से 1860 को दौरान छोटानागपुर क्षेत्र में ब्रिटिश शासन स्थापित हो चुका था। काफी समय से आदिवासी “परहा प्रणाली” के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते आ रहे हैं। क्योंकि यह प्रणाली किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त होती है। लेकिन यह प्रणाली ब्रिटिश शासन द्वारा लगाए गए नियमों और कष्टों की वजह से नष्ट हो गई थीं।
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परहा प्रणाली क्या है?
परहा प्रणाली एक पारंपरिक स्वशासन की प्रणाली है। परहा का गठन कई समूहों को मिलाकर किया गया था। जिसके प्रमुख को राजा’ कहा जाता था। इस प्रणाली में प्रायः एक ही गोत्र (कुल) के सदस्य होते थे। परहा प्रणाली की एक पंचायत भी होती थी, जिसे परहा पंचायत कहा जाता था। इस पंचायत में पाँच कार्यकारी अधिकारी थे, जो राजा के अधीन कार्य करते थे।
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कर की समस्या :
ब्रिटिश शासन के आने पर आदिवासियों को अपनी जमीन पर राजस्व (कर) देना पड़ता था। यदि कोई राजस्व चुका नहीं पाता था तो उन्हें जमीदारों के हाथों अपनी ही भूमि से अलग कर दिया गया था। जिसकी वजह से आदिवासी खेतिहर मजदूर का तरह रहने को विवश थें। साहूकारों और जमींदारों जैसे बिचौलियों ने भी आम लोगों को लूटने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। इसके अलावा, गांव के लोगों के सामने कर की एक बड़ी समस्या मौजूद थी। गाँव के साहूकारों से लिए गए कर को चुकाने में असमर्थ होने पर गरीब लोगों को अपनी ज़मीन से हाथ धोना पड़ा। कर न चुका पाने के कारण यह समय बीतने के साथ बढ़ते गए और आम लोगों की हालत काफी दयनीय हो गई थीं।
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जूरी पंचायत का गठन :
इतना अत्याचार और अन्याय देखकर तेलंगा खड़िया में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की आग भड़क उठी और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत और उनके बिचौलियों के खिलाफ युद्ध शुरु कर दिया था। इस युद्ध के लिए तेलंगा खड़िया ने लोगों को इकट्ठा और जागरुक करना शुरु कर दिया। तेलंगा खड़िया ने जूरी पंचायत का गठन भी किया था। जूरी पंचायत ब्रिटिश शासन की तरह ही स्वशासन के रुप में काम करती थीं। तेलंगा खड़िया ने 13 पंचायतों का गठन किया था। यह पंचायतें सिसई, गुमला, बसिया, सिमडेगा, कुम्हारी, कोलेबिरा, चैनपुर, महाबुआंग और बानो क्षेत्र में फैली हुई थीं।
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लोगों को ट्रेन किया:
तेलंगा खड़िया ने युद्ध के लिए लोगों को ट्रेन करने के लिए अखाड़ा बनाया। वह लोगों को हथियार चलाना सिखाते थें और उनके मुख्य हथियार तलवार और धनुष बाण थे। उन्होंने तकरीबन 900 से 1500 प्रशिक्षित पुरुषों की एक सेना खड़ी कर दी थीं । वे गुरिल्ला युद्ध शैली का प्रयोग करते थे। तेलंगा और उनके साथियों ने मिलकर ब्रिटिश राज के हर दूसरे प्रतिष्ठानों पर हमला किया उन्होंने ब्रिटिश बैंकों और खजाने को भी लूट लिया।
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सभा को घेर लिया था :
तेलंगा के साहस को देखकर ब्रिटिश सरकार हक्की बक्की रह गई और वह किसी भी तरह इस विद्रोह को दबाना चाहती थीं। जब तेलंगा को इस बारे में पता लगा तो वह काफी सतर्क हो गए। लेकिन एक दिन जब तेलंगा गांव की एक पंचायत में बैठक का आयोजन कर रहे थे कि तभी उनकी उपस्थिति के बारे में ज़मीदार के एक एजेंट ने अंग्रेजों को बता दिया था। और अंग्रेजों ने जानकारी मिलते ही सभा को घेरकर तेलंगा को गिरफ्तार कर लिया था। पहले तेलंगा को लोहरदगा जेल और फिर कलकत्ता जेल भेजा गया, जहाँ उन्हें 18 साल की कैद हुई।
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तेलंगा टोपा टांड :
जेल से रिहा होने के बाद तेलंगा ने एक बार फिर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने का फैसला लिया। उन्होंने फिर से अपने लोगों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने की क्रांति पैदा करने लगे। लेकिन इल बारे में जब अंग्रेजों को पता लगा तो उन्होंने तेलंगा को मारने की योजना बनाई और 23 अप्रैल 1880 को बोधन सिंह नाम के एक ब्रिटिश एजेंट ने उन पर गोलियां चला दीं। तेलंगा खड़िया के शव को गुमला जिले के सोसो नीम टोली गांव में दफना दिया। अब इस कब्रगाह को ‘तेलंगा टोपा टांड’ के नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब है ‘तेलंगा का कब्रिस्तान’।
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