बिहार के मोमिन जमात को आज भी इन्तजार है कय्यूम अंसारी जैसे नेता की

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फख्र-ए-कौम अब्दुल कय्यूम अंसारी उस अजीम शख्सियत का नाम है जिससे बिहार ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत के पिछड़े और दलित मुसलमानों को एक सियासी पहचान मिली। मुस्लिम लीग और जिन्ना के दो कौमी नजरिया के खिलाफ़ पसमांदा समाज में बेदारी पैदा करके अंसारी साहब ने यह पहचान कायम की थी। उनका जन्म शाहाबाद जिला (वर्तमान रोहतास) के डिहरी ऑन-सोन 1 जुलाई 1905 में हुआ था। उनके पिता क नाम मौलवी अबुल हक था।

1917 में अली ब्रदर्स जब सासाराम आए तो अंसारी साहब ने उनसे मुलाकात की और इस आंदोलन से जुड़ गये। 1919 के खिलाफत आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1920 में डिहरी ऑन-सोन खिलाफत कमिटी के जेनरल सेक्रेटरी बनाये गये और गांधी जी के आह्वान पर बिहार राज्य से असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया।

1938 में पटना सिटी क्षेत्र की सीट के लिए उपचुनाव होने वाला था। उन्होंने सोचा क्यों न इस सीट से अपनी आजमाई जाए। उम्मीदवार तय करने के लिए बाहर से कई मुस्लिम लीग के नेता आए थे। स्थानीय नेता तो पहले से थे ही। मुस्लिम लीग के चुनाव लड़ने के लिए पटना सिटी के नवाब हसन के घर पर प्रत्याशियों से इसके लिए दरखास्त ली जा रही थी। वह भी अपनी दरखास्त देने वहां गये। दरखास्त जमा करने के अभी दरवाजे तक लौटे ही थे कि अंदर से आवाज आई कि अब जोलाहे भी एम.एल.ए. बनने का ख्वाब देखने लगे। अंसारी साहब फौरन कमरे के अंदर गये और उन्होंने आवेदन लेकर वहीं उसे फाड़ दिया और वापस लौट आए।

उस छोटी सी घटना से मुस्लिम लीग का असली चेहरा कय्यूम अंसारी के सामने आ गया था। मुस्लिम लीग में जमींदार-जागीरदार, नवाब, रईस और अशराफ खानदानों के अमीर लोग ही ऊपर से नीचे तक नेता बने हुए हैं। आम मुसलमानों खासकर पसमांदा मुसलमानों का इस संगठन से भला होने वाला नहीं है। यही वह समय था जब अंसारी साहब ने मोमिन कान्फ्रेंस में शामिल होने और इसी के लिए अपनी पूरी जिन्दगी वक्फ करने का फैसला कर लिया।उन्होंने अपनी सूझ-बूझ और हौसले से मोमिन बिरादरी को वो राजनितिक पहचान दी, जिससे वह सदियों से महरूम थे।

1946 के चुनाव के समय बिहार में अब्दुल कय्यूम अंसारी जी के नेतृत्व में मोमिन कॉन्फ्रेंस एक ऐसी जमात थी जिसने जिन्ना के ‘टू नेशन थ्योरी’ के खिलाफ चुनावों में मुस्लिम लीग को सीधी टक्कर दी। मोमिन कॉन्फ्रेंस ने 40 सीटों में से 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। छह सीटों पर कामयाबी मिली। 1947 में उन्होंने भारत के बंटवारे का जमकर विरोध किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत वह बिहार सरकार में मंत्री बनाए गए।1953 उन्होंने आल इंडिया बैकवर्ड क्लासिस कमीशन का गठन करवाया जो वाकई एक बड़ा कदम था। उन्होंने हमेशा देश के कमज़ोर वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया।

18 जनवरी 1973 को इस महान् स्वतंत्रता सेनानी का निधन हो गया। स्व. अंसारी जी के निधन से बिहार के पिछड़े और दलित मुसलमानों का जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी। 2005 में भारतीय डाक सेवा द्वारा उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया।

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