मध्यप्रदेश में दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक, पहले से किया जा रहा है जातिगत भेदभाव दलितों ने लगाया आरोप

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भेदभाव की वजह से ही उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पट्टे भी आवंटित नहीं किए जा रहे हैं। यहां की रहने वाली लीला बाई कहती हैं कि उनके घरों की ऐसी दुर्दशा हो गयी है कि अब गाँव में उनके बच्चों के लिए रिश्ते भी आने बंद हो गए हैं। उनका आरोप है कि उनकी बस्ती के लोगों के साथ हर क़दम पर भेद-भाव किया जा रहा है। इसी गाँव की रेशम बाई कहती हैं कि उन्होंने व्रत रखा था जिसकी समाप्ति पर उन्हें अपने यहाँ पूजा करनी थी. लेकिन वो कहती हैं कि मंदिर के पुजारी ने उनके यहां आने से मना कर दिया।

MADHYAPRADESH NEWS : मध्यप्रदेश में एक ऐसा गांव है जहां दलितों के मंदिर में प्रवेश करने पर मना है। ये भेदभाव इतना चरम पर है कि दलितों के घर में पुजारी तक नहीं आता है और दलित समुदाय के लोग केवल मंदिर के बाहर से दर्शन करने के लिए कहा जाता है। गांव के दलितों का ऐसा भी कहना है कि उनके साथ ये भेदभाव शुरु से चल रहा है।

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मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया जाता :

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के इच्छावर में खेरी गांव के मदनलाल कहते हैं कि ये दलित बस्ती है खेरी गांव की और ये 150 घरों की बस्ती है। वहीं गांव के एक ग्रामीण ने अपने बयान में बताया कि “हमें मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया जाता, हमारे घर पुजारी भी नहीं आता है, हम भगवान के दर्शन बाहर से करके आ जाता है। हमारे साथ शुरु से ही भेदभाव किया जा रहा है बस यही बताना चाहते हैं।“

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भेदभाव पर बस्ती की महिलाओं ने क्या कहा ?

BBC ने जब भेदभाव को लेकर महिलाओं से बात की तो महिलाओं ने अपने बयान में बताया कि भेदभाव की वजह से ही उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पट्टे भी आवंटित नहीं किए जा रहे हैं। यहां की रहने वाली लीला बाई कहती हैं कि उनके घरों की ऐसी दुर्दशा हो गयी है कि अब गाँव में उनके बच्चों के लिए रिश्ते भी आने बंद हो गए हैं। उनका आरोप है कि उनकी बस्ती के लोगों के साथ हर क़दम पर भेद-भाव किया जा रहा है। इसी गाँव की रेशम बाई कहती हैं कि उन्होंने व्रत रखा था जिसकी समाप्ति पर उन्हें अपने यहाँ पूजा करनी थी लेकिन वो कहती हैं कि मंदिर के पुजारी ने उनके यहां आने से मना कर दिया।

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बस्ती की रहने वाली रेशम बाई का बयान :

रेशम बाई ने बताया, “गाँव के एक मात्र राम मंदिर में नहीं जाने देते हैं हमें, सीढ़ी तक नहीं चढ़ने देते मंदिर की अंदर नहीं जाने देते हैं। जब हमारी बस्ती में शादी ब्याह होता है तो रस्म अदाइगी के लिए मंदिर में नारियल लेकर जाना पड़ता है.””मंदिर में पूजा होती है तो हम हल्दी और चावल को बाहर ही छिड़क कर चले आते हैं. और नारियल वहाँ दूसरे लड़के को देते हैं जो उनकी जाति के होते हैं. वो अंदर जाकर नारियल चढ़ाते हैं और हम बस बाहर से ही हाथ जोड़कर वापस आ जाते हैं.”

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रेशम बाई , इमेज क्रेडिट बीबीसी

मामले को पंचायत में उठाया गया :

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक दलित बस्ती के लोगों का आरोप है कि उन लोगों ने कई बार इस मामले को दूसरे समाज के लोगों के सामने भी उठाया है। पंचायत में भी उठाया है और सरपंच के सामने भी उठाया है, लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है। उनके दावे के मुताबिक गाँव के श्मशान में भी दलितों के लिए शव जलाने की अलग व्यवस्था की हुई है।

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बस्ती के बलदेव सिंह जांगड़ा का बयान :

BBC की रिपोर्ट के अनुसार बलदेव सिंह जांगड़ा इसी बस्ती में पैदा हुए और अब उनके बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। वो कहते हैं कि होश संभालने के बाद से ही उन्होंने ‘इस भेदभाव’ का सामना किया है और ‘अब भी’ कर रहे हैं। बलदेव सिंह जांगड़ा ने अपने बयान में बताया कि , “हमारा तो कोई मंदिर है ही नहीं. कभी नहीं रहा. उनका (दूसरे समाज) का ही मंदिर है. मंदिर जाते हैं कभी-कभी अगर काम पड़ता है तो. लेकिन बाहर से ही दर्शन कर के वापस आ जाते हैं। अंदर तो जाना मना है हमें. अन्दर जाते ही नहीं हैं. ये जातीय भेदभाव है अंदर जाने ही नहीं देते हैं।”

आगे बलदेव सिंह जांगड़ा ने बताया कि उनकी बस्ती का एक व्यक्ति मंदिर में चल रही कथा सुनने के लिए वहां चला गया था. वो कहते हैं, “वो प्रसाद लेने के लिए गया था और सीढ़ी चढ़ कर अंदर चला गया था. तो दूसरे समाज के एक भैया ने बाहर निकाल दिया। उन्होंने कहा कि आप यहां अंदर नहीं आओगे. बाहर से ही प्रसाद लिया करो.” बस्ती के लोगों ने अपने बयान में ये भी बताया कि पानी के लिए ये ‘हैंड पम्प’ ही एक मात्र सहारा है क्योंकि उनका आरोप है कि जो पानी का ‘कनेक्शन’ गाँव में आया है, उससे उनकी बस्ती को पानी नहीं मिलता है।

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सीहोर के ज़िला अधिकारी प्रवीण सिंह, इमेज क्रेडिट बीबीसी

 

पानी के कनेक्शन को लेकर भी दलितों के साथ भेदभाव :

BBC की रिपोर्ट में मदनलाल ने बताया कि पानी का ‘कनेक्शन’ देने के नाम पर उनसे पैसे भी लिए गए। मगर उनका आरोप है कि गाँव की जो पानी की टंकी है, उससे उनकी बस्ती को पानी नहीं मिलता है. उनका आरोप है कि ये भी ‘भेदभाव की वजह’ से ही है। उनका कहना था, “ना पानी मिलता है. न ज़मीन का पट्टा मिलता है. न मंदिर जा सकते हैं. पूजा पाठ करते हैं तो पंडित नहीं मिलता है. पंडित आते ही नहीं हैं हम लोगों के घर पर. दलित के यहाँ. अछूत मानते हैं ना हमें वो. भेदभाव रखते हैं. जाति का भेदभाव कि यह चमार है, वो बलई है, वो धोबी है. यह भंगी है, यह बसोड़ है ऐसा भेदभाव है।”

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चांदबढ़ के लोगों ने भेदभाव पर क्या कहा ?

BBC की रिपोर्ट में चांदबढ़ के लोगों ने बताया कि सीहोर जिले के ग्रामीण अंचलों में दलित परिवारों को अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। चांदबढ़, सीहोर ज़िला मुख्यालय से लगा हुआ इलाका है जहाँ दलितों की अच्छी ख़ासी आबादी है। यहाँ के लोगों का आरोप है कि भेदभाव की वजह से ही अब उन्होंने अपने समाज के लिए अलग मंदिर बना लिया है ताकि उन्हें कोई मंदिर जाने से ना रोके।
बसंत कुमार मालवीय अपने समाज में काफ़ी सक्रिय हैं और उन्होंने दलितों के लिए अलग से मंदिर बनाने के लिए जमीन भी उपलब्ध कराई है। बसंत कुमार ने अपने बयान में बताया कि 22 जनवरी को अयोध्या में श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद सब जगहों और ख़ास तौर पर मंदिरों में भंडारे लगाए गए। उनका आरोप है कि उनके समाज के लोग जब भंडारे में गए तो उन लोगों को अलग दूसरी जगह पर बैठाकर खिलाया गया, वो ये भी कहते हैं कि उनके समाज से स्थानीय मंदिर के लिए चन्दा भी नहीं लिया जाता है।

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चुनावों के नाम पर दलितों को ठगा जाता है :

बसंत कुमार मालवीय कहते हैं, “वोट के समय कहते हैं कि अपन भाई-भाई ही तो हैं. अपन बहन-बहन ही तो हैं. चुनाव आया तो बोलते हैं तू भाई है हमारा…आ जा… बिलकुल आलती पालती मार कर हमारे घर में ही बैठ जाएगा वो नेता, मगर जब चुनाव ख़त्म हो जाते हैं तो गाली देते हैं और बोलते हैं कि दलित हो, दूर रहो. नीचे बैठो. ऊपर कैसे चढ़ गए…?” BBC की रिपोर्ट में पता चला कि रतनलाल अहिरवाल चाँदबढ़ के दलितों के इस मंदिर की देख भाल करते हैं. उनका आरोप है कि उनके लोगों को इस मंदिर में निर्माण का ‘कोई नया काम’ करने नहीं दिया जाता है और उस पर ‘ऑब्जेक्शन’ उठाया जाता है. वो कहते हैं कई सालों के बाद भी उनके मंदिर की ज़मीन का पट्टा सरकार ने नहीं दिया है।

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बलदेव सिंह जांगड़ा, इमेज क्रेडिट बीबीसी

सार्वजनिक नल से पानी नहीं लेने दिया जाता :

सीहोर के ज़िला प्रशासन पर आरोप है कि वो समाज में भेदभाव की बात को अनदेखा करता रहा है. लेकिन मार्च की 19 तारीख़ को समाहरणालय यानी कलेक्टरेट में तब अफ़रा तफ़री मच गयी जब मुस्करा गाँव की महिलाओं ने वहाँ पहुँच कर हंगामा किया। इन महिलाओं का आरोप था कि उन्हें सार्वजनिक नल से पानी नहीं लेने दिया जा रहा है। इस शिकायत को उन्होंने एक ज्ञापन के रूप में ज़िला अधिकारी को भी सौंपा. इस ज्ञापन में उन्होंने अपने साथ हो रहे भेदभाव का आरोप भी लगाया।

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ज़िला अधिकारी प्रवीण सिंह ने क्या कहा ?

लेकिन सीहोर के ज़िला अधिकारी प्रवीण सिंह मुस्करा गाँव की घटना को ‘भेदभाव’ की घटना नहीं मानते हैं, हालांकि वो कहते हैं कि आरोपों की जांच की जा रही है लेकिन इसमें ‘छुआ-छूत जैसी कोई बात नहीं’ है। ज़िला अधिकारी का कहना था कि मुस्करा गाँव की ‘कुछ महिलाएं’ कलेक्टरेट आयी थीं और उन्होंने ‘जॉइंट कलेक्टर’ को ज्ञापन भी दिया था जिसमे गाँव में पानी की समस्या की बात कही गयी थी. वो बताते हैं, “वहां जाकर गाँव में चेक भी करवाया. पानी को लेकर कुछ ‘इश्यूज’ सामने आए. गाँव में नौ बोर हैं जिसमे से सात को अब ठीक करा दिया गया है. 7 बोर काम करने लगे हैं अब. उसमें दलित अत्याचार, छूआ-छूत या ऐसा कोई मामला वहाँ पर नहीं मिला है.”

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खेरी और चांदबढ़ की चर्चा करने पर ज़िला अधिकारी का कहना था कि उन्हें “इसकी जानकारी मीडिया से ही मिली है.”उन्होंने बताया कि वो इन दोनों जगहों पर अधिकारियों की टीम भेज रहे हैं. उनका कहना था, “टीम भेज रहा हूँ और आवश्यक जो भी होगा. उस टीम की जांच की रिपोर्ट से जो निष्कर्ष निकला या जो बातें सामने आयेंगी, उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी। समाज के इस भेदभाव को ख़त्म करने का प्रयास अपनी स्थापना के पहले दिन से कर रहा है।”

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संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, इमेज क्रेडिट बीबीसी

 

दत्तात्रेय होसबाले  ने हिंदू समाज पर क्या कहा?

संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के मुताबिक हाल ही में नागपुर में आयोजित संघ के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में इसको लेकर सघन चर्चा की गई। BBC के एक सवाल के जवाब में उन्होंने नागपुर में पत्रकार सम्मेलन के दौरान कहा था कि संघ अपनी स्थापना के पहले दिन से ही हिन्दू समाज के अंदर फैले ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसी बातों को लेकर गंभीर है और उसे ठीक करने की दिशा में काम कर रहा है।उन्होंने कहा, “हिन्दू समाज में क्या होता है कि मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता है. तालाब या कुओं से पानी लेने में परेशानियां होती हैं. श्मशान को लेकर भी मंदिर में प्रवेश को लेकर भी बातें सामने आती हैं कि समाज के एक तबक़े को घुसने नहीं दिया जाता है. ये दुर्भाग्य से कुछ छोटे स्थानों पर ही होता है यानी गावों में ज़्यादा है. नगरीय क्षेत्र में ये कम दिखता है या लगभग नहीं के बराबर है. लेकिन सच है कि दुर्भाग्य से ये प्रथा आज भी है. तो इसको दूर करने के हम प्रयास कर रहे हैं.”

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समाज में फैली असमानता  कब दूर होगी :

खेरी और मुस्करा गाँव विदिशा लोक सभा के क्षेत्र में आते हैं जिसका प्रतिनिधित्व अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज और शिवराज सिंह चौहान कर चुके हैं। सीहोर ज़िला मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक कर्म भूमि भी है। अब सवाल उठता है कि इस क्षेत्र से बड़े नामों के जुड़े होने के बावजूद यहाँ समाज में फैली असमानता अब तक क्यों नहीं दूर हो सकी है।

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