शैक्षणिक संस्थानों में जातिवाद का शिकार हो रहे है दलित छात्र, शिक्षा मंत्रालय ने की पुष्टि

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वर्तमान समय में यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हमारे शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में आय दिन युवा छात्र किसी न किसी तनाव या अपराध के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में युवा छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण जातिगत भेदभाव है।

छात्रों द्वारा लगातार आत्महत्या करने के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं, परंतु सबसे ज्या़दा   चिंता का विषय यह है कि, क्यों हर साल हमारे शीर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में युवा मृत्युदर बढ़ती जा रही है, जिसका सबसे बड़ा कारण तनाव और जातिगत भेदभाव है। बहुत से कुशल विद्यार्थी रैगिंग का शिकार हो रहे हैं, जिसका नाकारात्मक प्रभाव यह हो रहा है कि हर साल कई प्रतिभावान छात्रों की जान चली जाती है।

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आपको बता दें कि साल 2018 के बाद से IIT, IIMS, NIT में आत्महत्या से लगभग 61 मौतें हुईं थीं, जिसको लेकर सरकार ने अपनी चिंता भी व्यक्त की और लगातार शिक्षण संस्थानों में बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण नीतियों का भी संचालन सरकार द्वारा निरंतर किया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स से मुताबिक, शिक्षा मंत्रालय द्वारा बीते सोमवार को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2018 के बाद से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में 33 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं, जिनमें से लगभग आधे एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों से हैं।

 

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इसी अवधि में, देश भर में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएमएस) ने छात्रों की आत्महत्या से 28 मौतें दर्ज कीं, जिनमें से आधे एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के थे। वहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रतिक्रिया में कहा गया है कि इस तरह की आत्महत्याओं में अकादमिक तनाव, पारिवारिक कारण, व्यक्तिगत कारण, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे आदि शामिल हैं।

मंत्रालय की यह प्रतिक्रिया देश के प्रमुख संस्थानों में कथित तौर पर 2014 और 2021 में शुरू हुई है। आत्महत्या से मानसिक स्वास्थ्य और जाति आधारित भेदभाव की स्थिति पर एक उग्र बहस सी छिड़ गई है। जातिगत भेदभाव का शिकार हुए आईआईटी बॉम्बे में केमिकल इंजीनियरिंग के छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या पहला बडा मुद्दा बनकर सामने आईं है जिसने जातिगत भेदभाव के विरुद्ध लड़ाई आरंभ की है। जबकि IIT बॉम्बे ने सोलंकी की मौत के संभावित कारण के रूप में जाति-आधारित भेदभाव से इनकार किया है, उनके परिवार ने यह सुनिश्चित किया है कि हो सकता है कि इसने छात्र को अपनी जान लेने के लिए प्रेरित किया हो।

 

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अन्य संस्थानों में भी स्थिति यही है, जहां जातिगत भेदभाव बढ़ रह रहा है। इसका दूसरा उदाहरण है आईआईटी मद्रास के कैंपस जहां बीते दिनों दो होनहार छात्रों ने तनाव के कारण आत्महत्या की है और आत्महत्या का मूल कारण है जातिगत भेदभाव।

सरकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में ऐसे मामलों को लगातार बढ़ता देख काफी सचेत हुई है। जातिगत भेदभाव को रोकने व सभी सभी शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग जैसे मुद्दों को लेकर भी सरकार ने साल 2020 की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सभी संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए संस्थानों में तनाव और भावनात्मक समायोजन से निपटने के लिए परामर्श प्रणाली के प्रावधान पारित किए हैं। साथ ही सरकार ने एंटी रैगिंग सेल की भी व्यवस्था की है, जिससे शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते अपराधों को रोका जा सके।

नई शिक्षा प्रणाली की आचार संहिता के तहत यदि किसी भी शिक्षण संस्थान में कोई भी व्यक्ति विशेष, अध्यापक या छात्र किसी भी प्रकार के जातिगत भेदभाव को, रैगिंग व अन्य किसी अपराध बोध को बढ़ावा देता है, जिससे किसी भी व्यक्ति विशेष या छात्र की निजता भंग हो या कोई अन्य नुकसान होता है तो इसके लिए सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत कड़े दंड के प्रावधान की प्रणाली भी पारित की है।

युवा पत्रकार रूखसाना,
दलित टाइम्स, मीडिया संस्थान 

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