छत्रपति शाहू जी महाराज: दलितों के मसीहा और आरक्षण के अग्रदूत

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छत्रपति शाहू जी महाराज को भारत में एक समाज सुधारक और प्रजातंत्रवादी के रूप में जाना जाता था। छत्रपति शाहू महाराज ऐसे राजा थे जिन्होंने हमेशा दलित और शोषित वर्ग को समझा और हमेशा उनके करीब रहे। उनका जन्म 26 जून 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंतराव था। बाल्यावस्था में ही शाहू महाराज को कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी पर बैठा दिया गया था।

वह शूद्र जाती से थे। इन्हें आरक्षण का जनक भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहू महाराज ने अपने शासन काल में दरबार में से सारे ब्राह्मणों को हटवा दिया था। शाहू जी ने दरबार से सारे ब्राह्मणों को हटवा कर बहुजन समाज को मुक्ति दिलाने का क्रांतिकारी कदम उठाया था।

दलित और पिछड़े वर्ग की शिक्षा पर जोर

शाहू जी महाराज ने दलितों के लिए शिक्षा का द्वार खोला और उन्हें आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। इससे पहले बहुजन समाज के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद थे। उन्हें तिरस्कार की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता था। इन्होंने दलित वर्ग के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रबंध किया। इसके अलावा शाहू जी महाराज ने साल 1912 में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया ।गरीब छात्रों के लिए छात्रवास बनवाया और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिये। शाहू जी महाराज ने 1908 में अस्पृश्य मिल, क्लार्क हॉस्टल, साल 1906 में मॉमेडन हॉस्टल, साल 1904 में जैन होस्टल और 18 अप्रैल 1901 में मराठाज स्टूडेंटस इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्था की स्थापना की।

बलूतदारी और वतनदारी प्रथा का अंत

अंग्रेजी शिक्षक और अंग्रेजी शिक्षा दोनों ही शाहू जी महाराज के दिलों दिमाग पर हावी थी। वह वैज्ञानिक सोच को न सर्फ मानते थे बल्कि इसे बढ़ावा भी देते थे। वह पुरानी प्रथा, परंपरा और काल्पनिक बातों को महत्व नहीं दिया करते थे।

दलितों की दशा में बदलाव लाने के लिए उन्होंने बलूतदारी और वतनदारी प्रथाओं का अंत किया जो युगान्तकारी साबित हुई। पहले उन्होंने 1917 में ‘बलूतदारी प्रथा’ को नष्ट किया। जिसके तहत अछूत को थोड़ी सी ज़मीन देकर बदले में उससे पूरे गांव के लिए मुफ्त सेवाएँ ली जाती थी।

इसी तरह उन्होंने 1918 में ‘वतनदारी’ प्रथा का अंत किया तथा भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का अधिकार दिलाया। इस आदेश से महारों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हुई।

आरक्षण के अग्रदूत

छत्रपति शाहू जी महाराज ने समाज में फैली छुआ छूत को मिटाने, बहुजनों को बराबरी का दर्जा दिलाने और बहुजनों का समाज में बराबर योगदान के लिए देश में आरक्षण का कानून बनाया। जिससे दलित और पिछड़े वर्ग की स्तिथि में सुधार आ सके। साल 1902 में शाहू जी महाराज ने इस क्रांतिकारी कानून के तहत समाज में बहुजनों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी।

इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछड़ी एवं निम्न जाति के लोगों को 50 फीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला लिया गया, शाहू जी के इस ऐतिहासिक निर्णय ने आगे चलकर आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था करने की नई राह दिखाई।

बाल विवाह पर रोक

प्रणेता शाहू जी महाराज ने अपने राज्य में बाल विवाह से होने वाले दुष्परिणामों को देखते हुए इस पर रोक लगा दी थी। साथ ही ब्राह्मणों की जाती व्यवस्था पर रोक लगाने के लिये अंतरजातिय विवाह एवं विधवा पुनर्विवाह कराए। वहीं साल 1917 में पुनर्विवाह का कानून भी पास करवाया।

छत्रपति शाहू जी महाराज पर समाज सेवी ज्योतिबा फुले का काफी असर पड़ा था। वह काफी समय तक सत्य शोधक समाज के संगरक्षक भी रहे और जगह जगह इसकी शाखा भी स्थापित की।

छत्रपति शाहू जी महाराज ने भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को उच्च शिक्षा हासिल करवाने के लिए विदेश भेजने में भी अपनी मुख्य भूमिका निभाई थी और भीमराव अंबेडकर के मूकनायक समाचार पत्र के प्रकाशन में भी काफी मदद की थी।

जब उन्हें पता चला कि बाबा साहेब अपनी पढ़ाई पूरी करके वापिस आ चुके हैं तब वह उनसे मिलने सीमेंट चाल (मुम्बई) पहुँचे। उन्होंने बाबा साहेब को गले लगा लिया और कहा कि डॉक्टर तुम्हारे रूप में दलित समाज को एक सही नेता मिल गया है।

6 मई 1922 में बहुजन समाज के दक्ष राजा छत्रपति शाहू जी महाराज का निधन हो गया। समाज में उनके योगदान, क्रांतिकारी बदलावों, दलितों की शिक्षा और आरक्षण की शुरआत करने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा।

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