लेखक व उद्यमी देश में दलित विषयों पर बेबाक लेखन व टिप्पणी के लिए चंद्रभान प्रसाद एक जाना पहचाना नाम है। वे हिन्दी, अंग्रेजी अखबारों में लेखन व अक्सर टी.वी. पर शोषित वर्ग के हितों पर अकाट्य बहस करते नजर आते है। कई नामी पुस्तकों के रचियता भी है आप भारत में डायवर्सिटी के कर्णधार, सलाहकार व सूत्रधार है। बाबासाहेब के दर्शन “नौकरी मांगने वाले नहीं, नौकरी देने वाले बनो” पर चलते हुए इस संदेश को हकीकत में बदल दिया।
आज डिक्की के प्लेटफॉर्म पर देश के कोने कोने से दलित उद्यमी एक मंच पर आकर बिजनेस में आगे बढ़ने तथा उभरते उद्यमियों को प्रोत्साहित करने का मिशन चला रहे है। चंद्रभान प्रसाद व मिलिंद कांबले के प्रयासों से देश के टाटा, गोदरेज व अन्य कई बड़े बिजनेस ग्रुप दलित दद्यमियों को सहारा दे रहे है। केन्द्र सरकार ने वेंचर केपिटल फंड का प्रावधान किया है। प्राइवेट क्षेत्र में दलितों की भागीदारी की इनकी मांग का असर दिख रहा है। आप कई हिन्दी, अंग्रेजी अखबारों के एडिटोरियल पेज पर छपते है और टी.वी. पर बहुजनों के विभिन्न मुद्दों पर आए दिन चर्चा में नजर आते है।
अब तो आप ने अंग्रेजी में बहुजनों को बिजनेस में मार्गदर्शन हेतु मैग्जीन भी शुरू कर दी है। महान विचारक चंद्रभान प्रसाद का यह भी कहना है कि दलितों को आज़ादी तो अंग्रेजी ही दिलाएगी इसलिए हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी अच्छी होना बहुत जरूरी है। यदि अंबेडकर विदेशों से अंग्रेजी नहीं पढ़ते तो संविधान नहीं लिख पाते और न ही दलितों को मानवीय अधिकार मिल पाते। पूंजी से जाति के बंधन भी ढीले पड़ जाते है इसलिए विचारक चंद्रभान प्रसाद दलितों को पूंजीपति बन कर बुद्ध के मार्ग पर चलते हुए धन को मानव कल्याण हेतु खर्च करने के लिए भी याद दिलाते है।
ये अंबेडकर मिशन के बाकई सच्चे सिपाही है। देश में डायवर्सिटी यानी हर क्षेत्र में दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों की भागीदारी का इनका मिशन अब धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा है। देश के दलित बुद्धिजीवी वर्ग में चंद्रमान प्रसाद एक सशक्त हस्ताक्षर है जो जातिवादी मानसिकता के कथित बुद्धिजीवियों को तर्क के साथ जवाब देने का हौसला रखते है। अब तो इनकी एक ही धुन है बस दलित लोग छोटे बड़े बिजनेस कर पूंजीपति बनें और आर्थिक आजादी से खुशहाल जीवन जीयें।
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चंद्रभानजी – शोषित समाज की वैचारिक पूंजी चंद्रभान प्रसाद की सृजनात्मक प्रतिभा, लेखकीय ईमानदारी और वैचारिक प्रतिबद्धता के हम सभी कायल है। ज्ञान व जानकारियों से लबालब लेकिन बहुत ही सहज व सरल । निजी और बौद्धिक जीवन में वे बेहद लोकतांत्रिक व्यक्तित्व के धनी है आप उनसे असहमत होइए, लड़िए झगडिए, उनका विरोध कीजिए, वैचारिक मतभेद जाहिर करिए, वे कतई इसका बुरा नहीं मानते बल्कि सामने वाले को और प्रोत्साहित करते है और उसे पूरा स्पेस देते है। चाहे इंग्लिश की वकालात के लिए अंग्रेजी देवी के मंदिर का मुद्दा हो या दलित वर्ग में आर्थिक समृद्धि की दिशा में पूंजीपति तैयार करने के लिए बनाया मंच डिक्की हो।
कुछ लोगों ने शुरू में इनकी आलोचना की लेकिन सामने मोर्चा संभालने की बजाय ये सहज ही रहे। आज डिक्की की बढ़ती लोकप्रियता से उनके वैचारिक विरोधियों को भी अब चंद्रभानजी के मित्र मिलिंद के साथ साथ खड़े होने की इच्छा हो रही है। सबके चहेते “चंद्रभानजी” से मिलना हमेशा ऊर्जा और साहस देता रहा है। यदि चंद्रभानजी चार व्यक्तियों के बीच बैठे हो तो खुद के गुणगान की बजाय साथियों का बखान करते नहीं थकते है। डिक्की के एक्सपो में सारे दिन हर स्टॉल पर घूमते और उनके बारे मे बताते रहते है, वीआईपी लोगों को हर दलित उद्यमी के उद्यम का ऐसे बखान करते है मानो खुद का कारोबार हो।
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दलितों की आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास से जुड़े मुद्दों के कार्यक्रमों में ऐसे सक्रिय रहते है मानो खुद के घर का बड़ा आयोजन हो। इर्ष्या,अहंकार व लेखकीय घमंड इनसे कोसों दूर है। कुछ दलित लेखकों के विपरीत वे कभी भी आत्ममुग्ध, दूसरों की टांग खिंचाई करने वाले और दभी प्रवृत्ति के नहीं है। यदि वे अमेरिका, पूंजीवाद, लॉर्ड मैकाले और अंग्रेजी के समर्थक है तो अपने तर्कों के साथ हमेशा इस पर कायम है। वे रातोंरात अपना पाला नहीं बदलते है। तर्कों के साथ हमेशा इस पर कायम है। वे रातोंरात अपना पाला नहीं बदलते है।
अपनी धुन के पक्के चंद्रभानजी तमाम तरह की आलोचनाओं को झेलते हुए डिक्की जैसे प्रतिष्ठित मंच को खड़ा करने के अपने काम में लगे रहे और यह संस्था आज राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत पहचान के साथ खड़ी है। समाज व सरकार के साथ कोर्पोरेट जगत में भी डिक्की का डंका बजता है। चंद्रभानजी की आजीविका का साधन केवल उनका लेखन और टीवी वार्ताओं में उनकी भागीदारी है जो कोई खास नहीं होती है क्योंकि ये अधिकतर समय अब डिक्की व अन्य सामाजिक गतिविधियों में ही व्यस्त रहते है। कई बाधाओं व आर्थिक मुश्किलों के बावजूद यह शख्स शोषित वर्ग के लिए हर वक्त लिखता, बोलता व विचार करता रहता है।
चंद्रभानजी अन्य लेखकों से बिल्कुल अलग है। ये लेखक के साथ एक प्रभावशाली एक्टिविस्ट भी है। अपने सीमित दड़बे में न रहकर आम शोषित व्यक्ति से लेकर रतन टाटा, आदि गोदरेज जैसे बड़े उद्योगपतियों व आर्थिक मुद्दों पर बड़े राजनेताओं से आए दिन गंभीर विचार विमर्श करते नजर आते है। ये अपने लेखन को एक्शन में बदलने तक पूरी ताकत से पीछा करते रहते है। शोषित वंचित वर्ग के लिए बड़ी बड़ी, आदर्शवादी व आन्दोलनकारी बाते लिखकर यह नहीं कहते है कि मेरा काम सिर्फ लिखना है, आगे का काम कार्यकर्ता या समाज करें।
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यदि यह कहा जाये कि ये एक विद्वान लेखक, बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट, मीडियाकर्मी और पूरी तरह से प्रेक्टिकल पर्सन है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मजेदार बात यह है कि चंद्रभानजी से सबसे ज्यादा उनके अपने समुदाय के बौद्धिक लोग ही चिढ़ते है लेकिन बाबासाहब की मेहरबानी से सरकारी नौकरी में मोटी तनख्वाह लेने वाले इन बौद्धिक महानुभावों से यदि यह पूछा जाए कि आप अपनी कमाई का कितना हिस्सा अपने समाज के लिए खर्च करते है ऐसे लोग अपने धन, समय, हुनर का कितना भाग समाज को लौटाते है उल्टा दूसरों को पानी पी पीकर कोसते रहते है।
चंद्रभानजी समाज को सिर्फ लौटा ही लौटा रहे है। अब आप सिर्फ लेखक ही नही बल्कि बिजनेसमैन भी बन चुके है। आपका प्रोडक्ट “दलित फूड” खूब चर्चा में है तथा इसके बाद “जीरो प्लस शर्ट” भी गारमेन्ट के मार्केट में खूब धूम मचा रहा है। बहरहाल हम उम्मीद करते है कि चंद्रभानजी इसी तरह पोजेटिव सोच की एनर्जी के साथ मिशन में डटे रहेंगे। वे दलित थिंक टैंक के गौरव है और भविष्य में भी इनके विचार, चिंतन व लेखन की धार यू ही बनी रहेगी।
यह लेख – रुखसाना द्वारा लिखा गया है। (जर्नलिस्ट, दलित टाइम्स)
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