5 फरवरी 1951, जब “हिन्दू कोड बिल” लेकर अम्बेडकर के खिलाफ खड़ा था भारतीय संसद

Share News:

भारत की स्वतंत्रता के बाद और उससे पहले एक दौर ऐसा था जंहा हिंदू धर्म में महिलाओं के पास न संपत्ति का अधिकार था और न ही तलाक का और विधवाओं के पास न तो कानूनी तौर पर फिर विवाह करने का अधिकार था और ना ही पति या पिता की संपत्ति पर दावा करने का हक़,आधी आबादी कहे जाने वाले तबके को हक़ और अधिकार दिलाने के लिए जो संघर्ष और विरोध बाबा साहब अंबेडकर ने झेला उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता हैं

स्वतंत्रत भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले कानून मंत्री बाबा साहब अम्बेडकर को हिंदू व्यक्तिगत कानून को समान नागरिक संहिता की दिशा में पहला कदम के रूप में संहिताबद्ध करने का कार्य सौंपा। जिसमे महिलाओं के अधिकार को क़ानूनी रूप देना था उनको वो हर अधिकार देना था जिससे वो सालो धर्म के नाम पर वंचित रही थी। डॉ. अम्बेडकर ने अध्यक्ष के रूप में एक समिति का गठन किया। जिसमे वाई भंडारकर , आर.राजगोपाल और बॉम्बे बार के एस.वी. गुप्ते थे।

हालाँकि वर्ष 1948 से लेकर 1951 के बीच देश में महिलाओं की स्थिति सुधारने वाले हिंदू कोड बिल के विरोध में लगातार जलसे, धरने और विरोध प्रदर्शन हुए थे। उस समय विरोधियो के निशाने पर बाबा साहेब अम्बेडकर और नेहरू थे। पूरे देश में हिंदू नेता और हिंदू संगठन का मानना था कि इस बिल के जरिए उनके धर्म को निशाना बनाया जा रहा है। 1948 में ये बिल संविधान सभा में पहली बार पेश किया गया। अंबेडकर कई सालों से हिंदू बिल कोड में संशोधन पर काम कर ऱहे थे। इस बिल को नेहरू का समर्थन हासिल था लेकिन विरोध करने वाले इसका जमकर विरोध तो कर ही रहे थे।

समिति ने स्वतंत्रता से पहले 1947 में संविधान सभा में प्रस्तुत किए गए मसौदे में केवल मामूली संशोधन किए। लेकिन इससे पहले कि विधेयक को संविधान सभा में रखा जा सके, हिंदू जनमत के कुछ मुखर वर्गों ने ‘हिंदू धर्म खतरे में’ का खड़ाग बीच में खड़ा कर दिया। डॉ. अम्बेडकर और उनकी समिति के सदस्य , हालांकि, निडर थे और पूरी गंभीरता के साथ अपने प्रयासों को जारी रखा और नेहरू के मंत्रिमंडल के सामने विधेयक पेश किया, जिसने सर्वसम्मति से इसे मंजूरी दे दी और इसके बाद बाबा साहेब अम्बेडकर ने 5 फरवरी 1951 को संसद में हिन्दू कोड बिल विधेयक पेश किया।

हिन्दू कोड बिल का विरोध

बाबा साहब को आश्चर्य तब हुआ जब कई हिंदू सदस्यों ने, जिनमें से कुछ ने इसे पहले कैबिनेट में मंजूरी दे दी थी, अब इसका विरोध कर रहे थे। विरोध का झंडा उठाने वालों में सबसे आगे वही संगठन थे, जो खुद को हिंदू धर्म का पैरोकार कहते थे। गृह मंत्री सरदार पटेल और उद्योग मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित मदन मोहन मालवीय सहित कांग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया ने भी इसका विरोध किया।

बिल के विरोध में जंहा करपात्री महाराज देशभर में घूम-धूमकर हिंदू कोड बिल के खिलाफ भाषण दे रहे थे साथ ही अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नाम का संगठन भी बनाया। स्वामी करपात्री के अनुसार हिंदू कोड बिल हिंदू रीति-रिवाजों, परंपराओं और धर्मशास्त्रों के विरुद्ध था।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अनुसार यह बिल ‘हिंदू संस्कृति की शानदार संरचना को चकनाचूर कर देगा और जीवन के एक गतिशील और कैथोलिक तरीके को नष्ट कर देगा, जिसने खुद को सदियों से परिवर्तनों के लिए आश्चर्यजनक रूप से अनुकूलित किया था’। यहां तक ​​कि हिंदू महासभा की महिलाएं भी बिल का विरोध करने के लिए सबसे आगे आईं। अखिल भारतीय हिंदू महिला सम्मेलन की अध्यक्ष, जानकीबाई जोशी, जो हिंदू महासभा से संबंधित थी उन्होंने एक साल पहले, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को एक लंबे पत्र में, 4 फरवरी 1950 को लिखा था कि हिंदू विवाह की अवधारणा को बदलने के लिए उठाया गया कोई भी कदम संस्कार को संविदात्मक बनाकर हिंदुओं की संपूर्ण परिवार व्यवस्था को नष्ट कर देगा।

उनका कहना था कि ‘हिंदू परिवार को एक इकाई के रूप में लिया जाना चाहिए और संपत्ति के विखंडन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ताकि बेटी के माध्यम से दूसरे परिवार में जा सके’। मालवीय ने घोषणा की कि ‘हमारे शास्त्रों में निहित हिंदू व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने’ के लिए कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए। कांग्रेसी मुकुल बेहरीलाल भार्गव ने इस आधार पर बिल का विरोध किया कि इसमें ईसाई और मुस्लिम कानूनों के प्रावधान शामिल हैं।

इसके अलावा, राष्ट्र के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने सामने से बिल का विरोध तो नहीं किया लेकिन निजी तौर पर यह तर्क देकर कि ‘नई अवधारणाएं और नए विचार न केवल हिंदू कानून के लिए विदेशी हैं बल्कि हर परिवार को विभाजित करने के लिए अतिसंवेदनशील हैं’। बिल के खिलाफ आवाज़ उठाई। हालाँकि इस विरोध में नेहरू और अंबेडकर दोनों ही निशाने पर थे।

यद्यपि इस बिल का प्रमुख विरोध हिंदू परंपरावादियों ने किया था, जिनमें सबसे आगे आरएसएस और हिंदू विरोधी संहिता समिति थी, यह केवल उन्हीं तक सीमित नहीं था। सिख समुदाय के कुछ वर्गों ने भी इसका विरोध किया क्योंकि हिंदू कानून में वह समुदाय भी शामिल था। 3 दिसंबर 1950 को अमृतसर में एक सभा को संबोधित करते हुए मास्टर तारा सिंह ने कांग्रेस पर हिंदुओं और सिखों के बीच दरार पैदा करने का आरोप लगाया।

बाबा साहब का इस्तीफा

17 सितंबर 1951 को चर्चा के लिए इस बिल को फिर संसद के पटल पर रखा. संसद में विरोध और बहस को देखते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में बांटने का ऐलान किया. डॉक्टर अंबेडकर नेहरू के इस प्रस्ताव के खिलाफ थे. उन्हें ऐसा लगा कि नेहरू भी हालात से समझौता कर रहे हैं या फिर इसे टालना चाहते हैं. आहत अंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.

17 सितंबर 1951 में चर्चा के लिए इस बिल को एक बार फिर संसद में पेश किया गया लेकिन संसद में फिर विरोध देखते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने हिंदू कोड बिल को चार हिस्सों में बांटने का फैसला किया। और इस फैसले के विरोध में डॉ. अम्बेडकर ने 27 सितंबर 1951 को कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्हें लगा नेहरू भी हालात से समझौता कर रहे हैं। डॉ. अम्बेडकर ने कहा ‘मैंने प्रधान सचेतक का प्रधान मंत्री और प्रधान मंत्री के प्रति इतना निष्ठावान होने का मामला कभी नहीं देखा।’ उन्होंने अफसोस जताया कि हिंदू अपनी पुरातन व्यवस्था में सुधार लाने में असमर्थ थे। उन्होंने उन पर ऐसा माहौल बनाने का आरोप लगाया कि अन्य समुदायों को भी खुद को सुधारने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा।

वसुधा धगमवार लिखती हैं”
‘समान नागरिक संहिता के लिए पहला दौर पहले ही संविधान सभा में खो गया था, हालांकि, हालांकि अनुच्छेद 35 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कोई संशोधन की अनुमति नहीं थी, लेकिन असंतुष्ट सदस्यों द्वारा मांगे जाने वाले मौखिक आश्वासन डॉ द्वारा दिया गया था। । अम्बेडकर उनके इस्तीफे के साथ दूसरा दौर हार गया, क्योंकि कानूनी और संवैधानिक मामलों में स्पष्ट दृष्टि रखने वाला व्यक्ति घटनास्थल से चला गया था।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *