अंबेडकर पुण्यतिथि: बाबा साहेब के जीवन से ये बात सबको सीखनी चाहिए..

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बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि, “एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से अलग होता है क्योंकि एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हमेशा समाज की सेवा करने के लिए तत्पर रहता है जबकि महान व्यक्ति कुछ नया करने के लिए समाज को प्रेरित करता है” लेकिन बात जब भी बाबा साहेब अंबेडकर की जाएगी तो उन्हें महान और प्रतिष्ठित दोनों की श्रेणी में रखा जाएगा।

बाबा साहेब अंबेडकर ने सिर्फ उस वर्ग के अंदर चेनता नहीं जगाई जो जाति के जंजाल में सैकड़ों सालों से जकड़ा रहा बल्कि हर उस एक वर्ग और जाति के लिए काम किया जिसने उन्हें जाति और अछूत नाम के पलड़े में तोला। इस कड़ी में बाबा साहेब का पहला कदम “हिन्दू कोड बिल” को लिया जा सकता है।

File photo (dalit times)

साल था 1947 और भारत को आज़ाद होने में चार महीने बाकी थे इस बीच 11 अप्रैल 1947 को संविधान सभा के सामने बाबा साहेब अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल पेश किया था। बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा तैयार किया गया ये हिन्दू कोड बिल हिन्दू रीतियों या कहें कि कुरुतियों पर सीधा प्रहार कर रहा था। इसलिए सभा में मौजूद कट्टरपंथियों ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया। विरोध के सामने न तो अंबेडकर के तर्क काम आए और न ही बिल को लेकर नेहरु का समर्थन। इसके बाद 9 अप्रैल 1948 को इस बिल को सिलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया।

हिन्दू कोड बिल किसी विशेष जाति की महिलाओं के लिए नहीं बनाया गया था। इस बिल ने भारत की उस हर एक स्त्री के अधिकारों की बात की थी जिसने मनुस्मृति में खुद के लिए बताई गयीं बातों को ही अपना जीवन मान लिया था। एक और जहां मनुस्मृति में स्त्री को पहले पिता फिर पति और फिर बेटे पर आश्रित बताया, उन्हें चार दिवारी के भीतर रहने को बाध्य किया गया, पढ़ने लिखने के अधिकार से वंचित रखा, संपत्ति के अधिकार की बात तो दूर की है स्त्रियों को खुद पर अपना अधिकार भी नहीं था इसलिए तो पति के मरने के बाद उन्हें सती होने का फ़रमान सुना दिया जाता था। यहाँ तक कि स्त्री को सिर्फ प्रताड़ना का पात्र समझ गया।

File photo (dalit times)

वहीं हिंदू कोड बिल में बाबा साहेब ने महिलाओं को पिता की संपत्ति में बेटे के समान संम्पति का अधिकार दिया। पुरुषों को एक से अधिक शादी करने पर प्रतिबंध लगाया। महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया। बाबा साहेब हमेशा कहते थे कि वो एक देश की प्रगति इस बात से मापते हैं कि उस देश की महिलाओं की कितनी उन्नति हुई है। इसलिए बाबा साहेब हिन्दू कोड बिल को पारित करवाने के लिए बहुत चिंतित थे। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि, मुझे संविधान के निर्माण से ज़्यादा अधिक दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पास करने में होगी। हालांकि ऐसा न हो सका और बाबा साहेब ने सितंबर 1952 को कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद 1952 के पहले लोकसभा चुनावों से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिन्दू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया। जिसके बाद 1955 में पहले हिन्दू मैरिज एक्ट और 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू किए गए।

बाबा साहेब चाहते तो हिन्दू कोड बिल को पारित करने पर बवाल मचने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल देते और कानून मंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करते लेकिन बाबा साहेब अंबेडकर ने इस्तीफा देकर ये साबित किया कि उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के लिए और समाज को बेहतर बनाने के लिए समर्पित कर दिया।

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