इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू मुस्लिम कपल को सुरक्षा देने से किया इंकार, विवाह कानूनी रूप से मान्य नहींं

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उत्तरप्रदेश में आठ हिंदू मुस्लिम जोड़ो को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरक्षा देने से इंकार कर दिया है। दरअसल इन जोड़ों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि उन्हें अपने परिवार से जान का खतरा है और वह सुरक्षा चाहते हैं। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें सुरक्षा देने से इंकार कर दिया है और उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट का कहना है कि उन्होंने याचिका को इसलिए खारिज किया है क्योंकि मुस्लिम हिंदू जोड़ों ने विवाह उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत किया है। कोर्ट का यह भी कहना है कि अगर याचिकाकर्ता कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद विवाह करते हैं तो वे नए सिरे से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं। जानकारी के मुताबिक जस्टिस सरल श्रीवास्तव की सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने मुरादाबाद के साथ साथ दूसरे जिलों के कई  याचिकाओं को खारिज किया है।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट, इमेज क्रेडिट गूगल

विवाह कानूनी रुप से मान्य नहीं:

आपकों बता दें कि आठ मुस्लिम हिंदू जोड़ो ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से सुरक्षा की मांग की थीं। इन याचिकाओं में  उन्होंने यह मांग रखी थीं कि उनके वैवाहिक जीवन में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और इन हस्तक्षेप पर रोक लगनी चाहिए। जानकारी के मुताबिक कोर्ट का यह भी कहना है कि विवाह से पहले धर्म परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थीं। इसलिए यह विवाह कानूनी रुप से मान्य नहीं है। और इन विवाहों में धर्म परिवर्तन विरोधी कानून का पालन नहीं किया गया था।

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2021 में पारित धर्मातरण विरोधी कानून :

2021 में पारित धर्मातरण विरोधी कानून के तहत गलत बयान, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
जानकारी के अनुसार आठ हिंदु मुस्लिम जोड़ो में पांच मुस्लिम युवकों ने हिंदू महिलाओं से विवाह किया था। और तीन हिंदू युवकों ने बिना कानूनी रुप से धर्म परिवर्तन के मुस्लिम महिलाओँ से विवाह किया था।

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उत्तरप्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं। अभी इन पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला आना बाकी है।

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