मध्यप्रदेश में आदिवासी महिलाओँ के खिलाफ बढ़ रहे दुष्कर्म के मामलों को देखते हुए मध्यप्रदेश की सरकार ने पुलिस जांच सख्त करने का आदेश दिया है। क्योंकि NCRB की रिपोर्ट के द्वारा जारी आंकड़ें इस बात को साबित करते हैं कि मध्यप्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध इसलिए बढ़ रहे हैं क्यांकि वहां कि पुलिस प्रशासन की जांच सख्त नहीं है। तो ऐसे में NCRB की रिपोर्ट ने पुलिस प्रशासन की जांच पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जिसकी वजह से वहां की पुलिस प्रशासन सवालिया निशाने पर हैं।
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पुलिस जांच सख्त नहीं:
अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में आदिवासी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपऱाध के मामलें में तकरीबन 83% आरोपी बरी हो जाते हैं। केवल 17% आरोपियों पर अपराध साबित हो पाता है। ऐसे में महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध की सजा दर 35% है। इसकी मुख्य वजह है कि राज्य में पुलिस जांच सख्त नहीं है।
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जांच के ठोस तथ्य नहीं:
अदालत में पेश होने वाली चार्जशीट में भी जांच के ठोस तथ्य नहीं होते जिसकी वजह से आरोपियों पर अपराध साबित नहीं हो पाता और वह आसानी से बरी हो जाते हैं। जिसकी वजह से आदिवासी महिलाओं के खिलाफ दुष्क्रम के अपराध बढ़ते हैं और सजा दर कमजोर हो जाती है।
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आदिवासी महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म के आंकड़ें:
NCRB की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 376 मामले आए और इनमें से केवल 70 लोगों को सजा हुई थी। महिलाओँ से बलात्कार के 361 मामले आए जिनमें तकरीबन 69 लोग दोषी पाए गए। इसमें सजा की दर 19% रही। 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 399 मामले आए। जिनमें 56 मामलों पर आरोप साबित हुआ। बलात्कार के 374 मामले आए। जिनमें 51 को सजा मिली और सजा की दर केवल 14% ऱही। 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 462 मामले आए। 104 को सजा मिली और बलात्कार के 438 मामले दर्ज हुए 74 को सजा मिली और सजा की दर 17% रही।
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सभी वर्ग की महिलाओँ के खिलाफ अपराध के आंकड़ें :
राज्य की सभी वर्ग की महिलाओं के खिलाफ अपराध की सजा दर की बात करें तो आदिवासी महिलाओँ की तुलना में ज्यादा हैं। लेकिन फिर सजा दर उतनी संतोषजनक नहीं है। क्योंकि सजा दर 35% है जिनमें से 65% आरोपी बरी हो जाते हैं। पूरे प्रदेश में महिला अपराध की बात करें तो 2015 में 24231 मामलों में 4233 को सजा हुई और सजा दर 26.5% रही। 2016 में 26604 मामलों में 3888 आरोपियों पर दोष साबित हुआ। सजा दर 27.8% हो गई।
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2017 में 29788 मामलें दर्ज हुए और 5797 आरेपियों को सजा हुई। सजा दर में 35% तक की बढ़ोतरी हुई।महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़ो को देखते हुए अब सवाल उठता है क्या अनूसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति के लिए बने अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 पर अमल हो रहा है? ऐसे में महिला अपराध के आकड़ों को देखते हुए संतोषजनक जवाब की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।DALIT
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अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 क्या है?
यह अधिनियम अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्यों के खिलाफ किए गए अपराधों के निवारण के लिए है,इस अधिनियम की तीन विशेषता है:-
• यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ़ अपराधों को दंडित करता है।
• यह पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है।
• यह अदालतों को स्थापित करता है, जिससे मामले तेज़ी से निपट सकें I
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मजबूत कार्रवाई:
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को देखते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (2015) के नए प्रावधानों को मजबूती से लागू करने और उल्लंघन करने वाले प्रमुख जाति के अपराधियों के खिलाफ जल्द और मजबूत कार्रवाई की जानी चाहिए।
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अदालतों को मजबूती से लागू करना:
दलितों और आदिवासियों के मानवाधिकार, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 के तहत एक खुली और पारदर्शी जांच करें। उन सरकारी और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी मुकदमा चलाना चाहिए जो अपराधियों को सहायता और बढ़ावा देते हैं। भारत सरकार को जल्द सुनवाई के लिए संशोधित अधिनियम में अनिवार्य विशेष अदालतों को मजबूती से लागू करना भी जरुरी है।
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