भारत में शीर्ष पदों पर ब्राह्मण फिर दलितों का आरक्षण के बाद भी प्रतिनिधित्व कहाँ है ?

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आपने अनगिनत लोगों से यह सुना होगा कि वर्तमान भारत की स्थिति किससे छुपी हैं लेकिन यकीन मानिए सच्चाई इसके बिल्कुल अलग है।

आज कल सवर्णो से यह सुनने के लिए ज़रूर मिलता है कि दलितों की स्थिति वर्तमान मे अच्छी है और इस वजह से उनका आरक्षण खत्म कर दिया जाना चाहिए। लेकिन क्या उन्हें यह नहीं पता कि गाँव देहात में दलितों के साथ भेदभाव छुआछूत घोर अपराध जैसी मानसिकता बरकरार है। हाल ही में कमजोर आर्थिक स्थिति वालों (सवर्णों ) का आरक्षण सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने हवाला दिया की बाबा सहाब अंबेडकर ने दलितों को 10 वर्षो का आरक्षण दिया। लेकिन यह सरासर झूठ और अफवाह है क्योंकि भारत में आरक्षण तीन प्रकार के है। पहला सेवाओं में आरक्षण, दूसरा शिक्षण संस्थानों में आरक्षण और तीसरा राजनैतिक आरक्षण। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि सिर्फ राजनीतिक आरक्षण 10 वर्षो के लिए था जिसे केन्द्र की सरकारों ने अपने फायदे के लिये समीक्षा करते हुए इसे बढ़ाया है। तो फिर इसमें दलितो का क्या कसूर है?

हालांकि शिक्षण संस्थानों तथा सेवाओं में दलितों के लिए आरक्षण को 10 वर्षो के लिए बताया जा रहा है और माननीय उच्चतम न्यायालय के जस्टिस पारदीवाला ने इस आरक्षण को 10 वर्ष के लिए बता दिया ये झूठ और अफवाह है जिससे न केवल न्याय व्यवस्था बल्कि जस्टिस पारदीवाला वाला पर भी प्रश्न उठता है!
आज भारत मे शीर्ष पदों पर ब्राह्मणों का कब्जा है। सरकार और संविधान दोनों कहते है कि जब तक दलित ,पिछड़े आदिवासी वर्ग मुख्य धारा में नहीं आ जाते तब तक आरक्षण को नहीं छोड़ा जा सकता लेकिन उसके बाद भी दलितों का भारतीय सेवाओं या राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व कहाँ है ? सरकार क्यों नहीं सोचती कि क्या कारण है कि दलितों के शीर्ष पदों पर भी सवर्णों का कब्जा है और जो इसके हकदार हैं वो कहाँ हैं।

इसे एक अच्छे उदहारण से ऐसे समझा जा सकता है कि भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश उत्तर प्रदेश में दलितों और ओबीसी की जनसंख्या सबसे अधिक है लेकिन इसके बावजूद यूपी में कोई ओबीसी सीएम नहीं हैं।

एक डिप्टी सीएम है जो भी दिखावा मात्र है जबकि ठाकुर समुदाय और ब्राह्मणों की कम जनसंख्या के बाद भी उनका एक सीएम और एक डिप्टी सीएम है। उसके बाद भी दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं है वहीं आजकल यूपीएससी की भर्तियों में धांधली के आरोप लगते रहते है सरकार को मुखर होकर ध्यान देना चाहिए।

लेखक: रवि कुमार भास्कर

 

 

 

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One thought on “भारत में शीर्ष पदों पर ब्राह्मण फिर दलितों का आरक्षण के बाद भी प्रतिनिधित्व कहाँ है ?

  1. मुख्यमंत्री बनने के लिये दूसरी जातियों का समर्थन होना चाहिये,एक भी मुख्यमंत्री बतायें जो दिन-रात अपने जाति का गाना गाता रहा हो?दलित मुख्यमंत्री बनने लायक तो बनें!

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