‘याचिका सुनवाई योग्य नहीं’ को आधार बनाकर SC/ST Act में अग्रिम जमानत नहीं की जा सकती खारिज : पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

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कोर्ट ने कहा, “निस्संदेह अपीलकर्ताओं के खिलाफ जाति संबंधी शब्द बोलने के आरोप हैं, लेकिन पक्षों के बीच धन विवाद की पृष्ठभूमि है। इस स्तर पर इस बात से पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता कि 1989 अधिनियम से संबंधित आरोप प्रेरित या दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं।”

SC/ST Act : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक केस के सिलसिले में फैसला सुनाते हुए कहा कि, “एससी/ एसटी एक्ट में दर्ज मामले में गिरफ्तारी से पूर्व ज़मानत स्वीकार की जा सकती है।” पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट के जस्टिश सुमित गोयल ने कहा कि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC/ST Act) के तहत अग्रिम जमानत याचिका केवल इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती कि ऐसी याचिका अधिनियम की धारा 18/18(ए) (Sc/St Act में तुरंत गिरफ्तारी) में निहित वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।’

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किस केस में सुनाया फैसला :

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिश सुमित गोयल ने यह फैसला सितंबर 2023 के एक मामले में सुनाया। रिपोर्ट के मुताबिक 9 सितंबर को हुई एक घटना में 12 सितंबर को मामला दर्ज किया गया। आरोपियों पर कथित तौर पर ‘जातिवादी टिप्पणी करने, गाली देने, दुर्व्यवहार करने और SC/ST समुदाय की एक महिला को चोट पहुंचाने के लिए आईपीसी की धारा 148, 149, 323, 325, 354-बी, 506 और SC/ST Act की धारा 3(1)(एस)/3(2)वीए के तहत मामला दर्ज किया गया।’ केस विशेष अदालत सत्र न्यायालय [अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 14 के अनुसार विधिवत स्थापित] में गया जहां आरोपी पक्ष ने कोर्ट में गिरफ्तारी से पूर्व ज़मानत की अपील के साथ याचिका दायर की थी। विशेष अदालत द्वारा एससी एसटी एक्ट 1989 की धारा 18/18A के तहत याचिका खारिज करने के बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की और इसी मामले में सुनवाई करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिश सुमित गोयल ने 1 अप्रैल 2024 को यह फैसला सुनाया की एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में गिरफ्तारी से पूर्व ज़मानत की याचिका पर विशेष अदालत को अपने विवेक के आधार पर फैसला लेना चाहिए।

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जस्टिश सुमित गोयल ने विशेष अदालत को कहा, “अनन्य विशेष न्यायालय SC/ST Act, 1989 के तहत किए गए अपराध के संबंध में सीआरपीसी, 1973 की धारा 438 के तहत दायर अग्रिम जमानत की याचिका पर फैसला सुनाने के लिए सक्षम है। विशेष न्यायालय को ऐसी याचिका को केवल इस आधार पर खारिज नहीं करना चाहिए कि ऐसी याचिका अधिनियम की धारा 18/18(ए) (एससी एसटी में दर्ज मामले में तुरंत गिरफ्तारी ) में निहित वैधानिक प्रावधानों के अनुसार रखरखाव योग्य नहीं है, कानून के अनुसार इसके गुण-दोषों पर गहनता से विचार करें।”

पक्ष और विपक्ष के वकीलों ने क्या तर्क दिये :

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के दौरान गिरफ्तारी से पूर्व ज़मानत की याचिका दायर करने वाले अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि, ” दोनों पक्षों के बीच विवाद पैसे को लेकर था। अपीलकर्ताओं को गलत तरीके से फंसाया जा रहा है।
SC/ST Act से संबंधित आरोप दुर्भावनापूर्ण तरीके से लगाए गए, जिससे पक्षकारों के बीच विवाद को और अधिक गंभीर रंग दिया जा सके।

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वहीं दूसरी ओर शिकायतकर्ता के वकील ने यह तर्क देकर याचिका का विरोध किया कि SC/ST Act के अनुसार सीआरपीसी की धारा 438 SC/ST Act के तहत अपराध करने के आरोप में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़े किसी भी मामले पर लागू नहीं होती है। इसलिए अपीलकर्ताओं द्वारा अग्रिम जमानत दिए जाने की याचिका स्वीकार्य नहीं है।

हाईकोर्ट ने क्या कहा :

दोंनो पक्षो की बात को ध्यान से सुनने के बाद हाईकोर्ट ने सवाल किया कि क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) की धारा 18 और 18ए के तहत कथित रूप से किए गए अपराधों के संबंध में गिरफ्तारी-पूर्व जमानत की याचिका स्वीकार्य है ?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हाईकोर्ट के जस्टिश सुमित गोयल ने 2018 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उदाहरण लिया जो सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य में दिया था। और जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ” अगर मामले में यह पाया जाता है कि प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता या न्यायिक जांच में शिकायत प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण पाई जाती है तो अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध नहीं है।”

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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का ये केस वही केस है जिसके फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को देश भर में दलित संगठनों ने व्यापक स्तर पर Sc St आंदोलन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि सरकारी अधिकारी पर एससी एसटी एक्ट में दर्ज मामले में उसकी गिरफ्तारी नियुक्ति अधिकरी के आदेश के बाद या डीएसपी लेवल के अधिकारी की जांच के बाद कि जाएगी। हालांकि व्यापक आंदोलन के बाद सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना सुनाया हुआ फैसला वापस ले लिए था। इसके बाद विधायिका ने एससी एसटी एक्ट 1989 में धारा 18A को जोड़ लिया जिसके तहत Sc St एक्ट में मामला दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। साथ ही यह प्रावधान भी किया गया कि CRPC 1973 की धारा 438 का प्रावधान जो अग्रिम जमानत से संबंधित है वह न्यायालय के किसी भी आदेश, निर्णय या निर्देश के बावजूद एससी एसटी एक्ट 1989 पर लागू नहीं होगा।

एससी एसटी एक्ट में कब गिरफ्तारी नहीं हो सकती :

हाईकोर्ट ने कहा कि, “इस प्रावधान अर्थात 1989 अधिनियम की धारा 18-ए के अधिकार क्षेत्र को प्रथवी राज चौहान मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निर्णय के लिए लाया गया, जिसमें यह माना गया कि जहां तक ​​1989 अधिनियम के तहत अपराध के संबंध में अग्रिम जमानत के लिए याचिका की स्वीकार्यता का मुद्दा है, ऐसी याचिका स्वीकार्य होगी, बशर्ते आवेदक यह दर्शा सके कि अधिनियम के तहत कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है या ऐसी याचिका स्वीकार न करने से न्याय की विफलता या कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

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कोर्ट ने आगे कहा, “निस्संदेह अपीलकर्ताओं के खिलाफ जाति संबंधी शब्द बोलने के आरोप हैं, लेकिन पक्षों के बीच धन विवाद की पृष्ठभूमि है। इस स्तर पर इस बात से पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता कि 1989 अधिनियम से संबंधित आरोप प्रेरित या दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं।”

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के मुताबिक उनके संज्ञान में लाया गया यह मामला दोनों पक्षों के बीच पैसे से संबंधित है। साथ ही ऐसा कोई भी सबूत पेश नहीं किया गया है जिससे यह पता चले कि आरोपी पक्ष पीड़ित पक्ष की जाति पहले से जनता है। ” शिकायतकर्ता द्वारा चोट लगने के आरोपों पर न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ताओं को जो चोटें लगी हैं, उन्हें धारा 325 के अंतर्गत वर्णित किया गया है जो जमानती प्रकृति की है। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि एफआईआर में आरोपित प्रकृति के विवाद में धारा 354-बी के अपराध के संबंध में अपराध की मानसिकता का प्रश्न जांच और सुनवाई का विषय होगा। आख़िर में हाईकोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में अग्रिम जमानत की याचिका को स्वीकार कर लिया।

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