मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल तेज़ है और यहां BSP सुप्रीमों मायावती 6 नवंबर से चुनावी रैली की शुरु करेंगी। BSP की तरफ से जारी सूचना के मुताबिक BSP सुप्रीमों मायावती मध्यप्रदेश में 6,7,8,10 और 14 नवंबर को रैलियां करेंगी। मायावती BSP उम्मीदवारों के समर्थन में 9 जनसभाओं को सम्बोधित करेंगी। कहा जा रहा है इन चुनावी रैलियों में मायावती दलित और आदिवासी अत्याचार की घटनाओं पर मध्यप्रदेश की सरकार (BJP) विपक्षी पार्टी कांग्रेस को घेर सकती हैं।
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BSP सुप्रीमों मायावती 6 नवंबर को मुगांवली, निवाड़ी और 7 नवंबर को छतरपुर और दमोह, 8 नवंबर को रीवा और सतना, 10 को दतिया, सेवड़ा और 14 नवंबर को भिण्ड में चुनाव करेंगी। BSP प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल ने बताया कि बहन जी एक दिन में 2 जनसभाएं करेंगी। 6 नवंबर से शुरु होने वाली अपनी इन रैलियों में मायावती दलित, आदिवासियों की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और उनके साथ जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव जैसे मुद्दों को उठा सकती हैं ।
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6 नवंबर को अशोकनगर में होंगी रैली :
BSP सुप्रीमों मायावती 6 नवंबर को मध्यप्रदेश के अशोकनगर में चुनावी रैली करेंगी। इस दौरान वह दलित आदिवासी अत्याचार के इन घटनाओं पर सरकार से सवाल कर सकती हैं। कि आखिर क्यों सरकार के आश्वासनों के बाद भी दलित समाज पर अत्याचार क्यों बढ़ रहा है?
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आपको बता दें कि साल 2019 में अशोकनगर के मुंगावली में एक दलित महिला के साथ बलात्कार कर दिया गया था। आरोपी ने महिला को मजदूरी के बहाने बुलाकर उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला। 2022 में भी एक 24 वर्षीय विवाहिता का अपहरण कर दो लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म कर दिया था। महिला उत्पीड़न की यह घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं। ऐसे में BSP सुप्रीमों मायावती 6 नवंबर को होने वाली रैली में महिला उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठा सकती हैं। BJP सरकार को भी वह अपनी रैलियों के दौरान घेर सकती हैं।
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दमोह सागर में उठ सकते हैं यह मुद्दें:
मध्यप्रदेश में चुनावों का दौर है ऐसे में BSP सुप्रीमों जनसभा को संबोधित करने के लिए रैलियां कर रहीं हैं। मध्यप्रदेश में लगातार दलितों के प्रति उत्पीड़न बढ़ता रहता है। आए दिन बलात्कार, पेशाब कांड जैसी घटनाएं इंसानियत को शर्मसार कर देती हैं। 2022 में दमोह में तीन दलित लोगों की हत्या और 2023 में सागर में भी एक दलित युवक की पीट पीटकर हत्या कर दी गई थीं ।
इसके अलावा छतरपुर में फरवरी 2023 में बागेश्वर बाबा के भाई ने दलित परिवार की शादी में बंदूक नोक पर हंगामा किया था। BSP सुप्रीमों 7 नवंबर को होने वाली रैली में शिवराज सिंह चौहान की सरकार को इन मुद्दों पर घेर सकती हैं।
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सतना, रीवा के क्या है मुद्दें ?
चुनावी राज्य मध्यप्रदेश के सतना और रीवा में भी दलित उत्पीड़न चरम पर है। सरकारें हर चुनाव में बड़े बड़े दावें करती दिखती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद उनके दावें ऐसे गायब होते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। चूंकी मायावती दलित समुदाय से आती हैं और देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। इसलिए दलित समाज से उनकी अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं। ऐसे में रीवा और सतना के दलित और आदिवासी भी यह उम्मीद करते हैं कि जब वह रैली के लिए यहां आएं तो उनके मुद्दों को भी उठाएं।
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बताते चलें कि जून 2023 में रीवा में दलित युवक को पीटा गया और उसे जूतों की माला भी पहनाई गई। 2019 में सतना में एक दलित महिला को पीटकर जिंदा जला दिया गया था। दरअसल गांव के गुंडें महिला के खेत की बाड़ उखाड़ रहे थे महिला के विरोध करने पर इस घटना को अंजाम दिया गया था।
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दतिया और सेवड़ा में होंगे यह मुद्दें :
बताते चलें साल 2020 में मध्यप्रदेश के दतिया में गुंडों ने खेत जोतने के विवाद पर दलित युवक का सिर फोड़ दिया था और कुल्हाड़ी से हाथ की उंगली काट दी थी। जब उस युवक की माँ उसे बचाने आई तो उसे भी पीट दिया गया था। 2021 में भी दतिया में दलित परिवार को गुंडों ने पीटा था।
इस तरह की घटनाएं आए दिन मध्यप्रदेश की सरकार पर सवाल खड़े करती है। कानून प्रशासन के होते हुए भी क्यों दलितों के प्रति इतनी क्रूरता है? 10 नवंबर की इस रैली में मायावती दलितों के सुरक्षा के संदर्भ में जनसभा को संबोधित कर सकती हैं।
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भिण्ड, मुरैना के हो सकते हैं यह मुद्दें :
अगस्त 2023 में भिण्ड में भी गुंडों ने दलित युवक को बांधकर कटीली झाड़ियों में ले जाकर जमकर मारपीट की थी। दबंगों ने इस युवक से जबरन धार्मिक नारे भी लगवाए थे इससे क्षेत्र में जातिगत तनाव भी बढ़ गया था। 2022 में भी भिंड के दबोहा गांव में भी गुंडों ने दलित परिवार के दो भाइयों का मुंडन किया और फिर उन्हें जूतों की माला पहनाकर पूरे गांव में घुमाया था। इस तरह की घटनाएं मध्यप्रदेश की सरकार, कानून व्यवस्था और प्रशासन पर भी सवाल खड़े करती हैं।
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अपनी इन रैलियों के माध्यम से मायावती कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों की कार्यशेली और दलितों के प्रति उनकी सोच को उजागर कर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज को सिर्फ एक वोट बैंक बनने से बचा सकती हैं।
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