बहिनी दरबार अखबार के जरिए महिलाएं अपने साथ हो रहे अन्याय, घरेलू हिंसा के साथ-साथ आसपास हो रही गतिविधियों खे बारे में लोगों को अवगत कराती हैं। इसके अलावा इसमें समय-समय पर महिलाओं के अधिकारों से जुडे़ मुद्दों, बाल विवाह, दहेज जैसी कुरीतियों आदि की जानकारी भी दी जाती है। इस अखबार का उद्देश्य आदिवासी और अनुसूचित जाति की महिलाओं की मदद करना है जो आमतौर पर अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं।
MADHYAPRADESH DABHAURA : आज से लगभग 16 साल पहले साल 2008 में “बहिनी दरबार” नाम के अख़बार की शुरुआत हुई थीं। इस अख़बार को गांव की कुछ आदिवासी महिलाओं ने मिलकर शुरु किया था। इस अख़बार के ज़रिये महिलाओँ ने अपने जीवन को बेहतर बनाया और लोगों को जागरुक भी किया।
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हस्तलिखित अख़बार :
आपको बता दें कि बहिनी दरबार एक हस्तलिखित (हाथों से लिखा) अख़बार है। इस अख़बार की सम्पादिका एक उषा नाम की महिला है। इस अख़बार को रीवा जिले की जावा तहसील के डभौरा प्रखंड के गांवों की महिलाओें के एक समूह ने शुरु किया था। इस अख़बार को बघेली बोली में शुरु किया गया था। ये अख़बार आज समाज में बदलाव लाने में अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है। इसके जरिए आदिवासी महिलाएं जागरुकता के साथ साथ जरुरतमंदों की मदद भी कर रही हैं।
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महिलाओं तक सेनेटरी पैड पहुंचाया :
बहिनी दरबार से जुड़ी महिलाओं ने कोरोना महामारी के समय अपनी सेवा देकर समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बहिनी दरबार से जुड़ें 10 सदस्यों ने लॉकडाउन के दौरान महिलाओं तक सेनेटरी पैड पहुंचाने का जिम्मा उठाया था। 2008 में शुरू होने के बाद से ही बहिनी दरबार ने आदिवासी समुदाय के बीच अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। ये अख़बार महिने में एक बार निकलता है। इस अख़बार के जरिये लोगों को उनके अधिकारों के साथ साथ उनके आसपास हो रहे परिवर्तनों के बारे में भी शिक्षित करती हैं।
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बहिनी दरबार की शुरुआत क्यों हुई :
आंखन देखी, कानन सुनी, हाथन लिखी टैगलाइन के साथ “बहिनी दरबार” अख़बार की शुरुआत हुई थी। इस अख़बार की शुरुआत एक घटना के ज़रिये हुई थी। दरअसल साल 2008 में एक दलित महिला गांव के हैंडपंप पर पानी भरने गई थी और उस दौरान गांव के दबंग ने दलित आदिवासी महिला को पानी भरने से मना कर दिया था। इस घटना से गांव में हलचल मच गई थीं। इस घटना से आदिवासी महिलाओँ का एक समूह जिन्होंने तब तक अपने घर से कभी बाहर कदम तक नहीं रखा था , एक साथ आने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया।
उषा नाम की महिला है सम्पादिका :
गांव में रहने वाली उषा नाम की महिला और उनकी 6 साथियों ने फैसला किया कि वे अपने समुदाय को जागरूक करने के लिए एक छोटा अखबार शुरू करें जो कि सीमित संसाधनों में भी निकाला जा सके। इस प्रकार ‘बहिनी दरबार ‘ अस्तित्व में आया। इस अख़बार को देवनागरी लिपि में लिखा गया है लेकिन इस अख़बार में बघेली में विचारों की अभिव्यक्ति है ताकि लोग इस अख़बार से खुद का जुड़ाव महसूस कर सके।
फोटोकॉपी करके अख़बार का वितरण :
बघेली में बहिनी दरबार का आशय है- बहनों का दरबार,। इस अखबार की शुरुआत सिर्फ 15 सदस्यों के साथ हुई थी, लेकिन अब डभोरा ब्लॉक के कई गांवों में सैकड़ों लोग इससे जुड़ चुके हैं। इस समूह के सदस्य अख़बार की सामग्री के बारे में चर्चा करने के लिए हर महीने की 20 तारीख को बैठक करते हैं और 30 तारीख को इसे प्रकाशित किया जाता है। इस अख़बार को फोटोकॉपी करके वितरित किया जाता है। वह लोग जो पढ़े लिखे नहीं हैं उन्हें समूह में यह अख़बार पढ़कर बताया जाता है ताकि सभी को सामग्री और जानकारी के बारे में पता चल सके।
सोशल मीडिया पर प्रभावशाली उपस्थिति :
‘बहिनी दरबार ‘ सोशल मीडिया पर भी छाया हुआ है। भले इनस्टाग्राम हो या फेसबुक सभी पर बहिनी दरबार ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। इसमें जहां एक ओर ‘सबसे बड़ा आम अनुसंधान केंद्र रीवा मा‘ हैडिंग के जरिए रीवा जिले के कुठलिया गांव में प्रदेश के सबसे बड़े आम अनुसंधान केंद्र के बारे में जानकारी दी गई है। वहीं एक अन्य पोस्ट विश्व मधुमक्खी दिवस के महत्व के बारे में अवगत कराती है। इसके अलावा समय-समय पर अलग विषयों की जानकारी भी ब्लॉग पर साझा की जाती है।
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बहिनी दरबार का उद्देश्य :
इस अखबार के जरिए महिलाएं अपने साथ हो रहे अन्याय, घरेलू हिंसा के साथ-साथ आसपास हो रही गतिविधियों खे बारे में लोगों को अवगत कराती हैं। इसके अलावा इसमें समय-समय पर महिलाओं के अधिकारों से जुडे़ मुद्दों, बाल विवाह, दहेज जैसी कुरीतियों आदि की जानकारी भी दी जाती है। इस अखबार का उद्देश्य आदिवासी और अनुसूचित जाति की महिलाओं की मदद करना है जो आमतौर पर अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं। इसके अलावा यह समूह महिलाओं के नाम पर राशन कार्ड होने समेत जमीन और अन्य वित्तीय अधिकारों में उनकी सहभागिता बढ़ाने की दिशा में भी यह समूह कार्य कर रहा है।
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