संविधान के निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर डॉक्टर भीमराव ने अपने जीवन में छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया था। वह चाहते थे सभी वर्गों में समानता हो। किसी के साथ जाति के आधार पर भेदभाव न हो। 1948 में आज का दिन 29 नवंबर संविधान निर्माण के इतिहास में एक महान दिन था। क्योंकि इस दिन संविधान सभा में अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त करने वाले अनुच्छेद 11 का मसौदा अपनाया गया था। आज हम अपने इस लेख में अस्पृश्यता को समाप्त करने वाले अनुच्छेद के बारे में जानेंगे।
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अस्पृश्यता (छुआछूत) एक प्रमुख बहस :
अस्पृश्यता (छुआछूत) पर संविधान सभा की बहस, भारत के सविधान सभा की सबसे प्रमुख बहसों में से एक थी। आपको बता दें छुआछूत को समाप्त करने वाला अनुच्छेद 11 वर्तमान में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 है। संविधान निर्माताओं का यह कहना था कि, किसी के साथ जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। और उनका उद्देश्य धर्म या जाति के आधार पर अस्पृश्यता को समाप्त करना था।
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अस्पृश्यता पर गहनता से विचार :
1935 के “भारत सरकार अधिनियम” के अनुसार जब “अछूत” शब्द का विश्लेषण किया गया तब पाया गया कि यह शब्द हिंदू जातियों के समूह तक सीमित था। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 17 में ऐसी कोई योग्यता नहीं थी। इसी कारण विधानसभा के कई सदस्य़ों ने मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया के कई चरणों में “अस्पृश्यता” शब्द का इस्तेमाल और इसके अर्थ पर गहनता से विचार किया। और उनका कहना था कि धर्म या जाति पर आधारित अस्पृश्यता को पूरी तरह से गैरकानूनी घोषित किया जाए। फिर संविधान सभा में 29 नवंबर 1948 को मसौदा अनुच्छेद 11 (अनुच्छेद 17) पर बहस शुरू हुई थी।
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अस्पृश्यता का कानूनी अर्थ नहीं :
संविधान सभा की इस बहस में श्री नज़ीरुद्दीन अहमद ने एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव में उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 11 के स्थान पर, “किसी को भी उसके धर्म या जाति के आधार पर “अछूत” नहीं माना जाएगा; और किसी भी रूप में इसका पालन कानून द्वारा दंडनीय बनाया जा सकता है।“
• उन्होंने यह संशोधन इसलिए पेश किया था क्योंकि “अस्पृश्यता” शब्द का कोई कानूनी अर्थ नहीं है।
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• उनका कहना था कि “अस्पृश्यता” शब्द का इस्तेमाल केवल मनुष्य के लिए ही नहीं, बल्कि कई प्रकार की चीजों के लिए किया जाता है।
• लेकिन उनके इस संशोधन को अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि निर्माता इन पहलुओं को प्रतिस्थापित नही करना चाहते।
• “श्री मुनिस्वामी पिल्लई” अस्पृश्यता को समाप्त करना चाहते थे। वे चाहते थे कि “अस्पृश्यता का उन्मूलन”को संविधान के अनुच्छेद 11 में शामिल होना चाहिए।
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अस्पृश्यता उन्मूलन एक मौलिक अधिकार :
• डॉ. “मोनो मोहन दास” के अनुसार “अस्पृश्यता उन्मूलन एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है”।
• मोनो मोहनदास का कहना था कि अल्पसंख्यक समुदायों को किसी भी प्रकार के विशेष अधिकार जैसे सुरक्षा उपाय लाभ नहीं देना चाहिए।
• उनका कहना था कि यह अनुच्छेद अधिकांश लोगों को अपमान और अपमान से बचाने के लिए था।
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• अन्य देशों के विपरीत, वह चाहते थे कि अस्पृश्यता की प्रथा को संविधान के तहत दंडनीय अपराध बनाया जाए।
• उन्होंने आगे कहा कि जब तक अस्पृश्यता समाप्त नहीं होगी तब तक “स्वराज” शब्द अर्थहीन हो जायेगा।
• मोनो मोहनदास ने महात्मा गांधी के शब्दों को याद करते हुए अस्पृश्यता पर कहा कि ”मैं पुनर्जन्म नहीं लेना चाहता,लेकिन अगर मेरा फिर से जन्म होता है। तो मैं चाहता हूं कि मैं एक हरिजन एक अछूत के रुप में जन्म ले संकू। निरंतर संघर्ष इन वर्गों के लोगों पर होने वाले अत्याचारों और अपमान के खिलाफ आजीवन संघर्ष।“
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• अस्पृश्यता पर उन्होंने आगे कहा था कि जब तक अस्पृश्यता को खत्म नहीं किया जाएगा तब तक “स्वराज” शब्द अर्थहीन हो जाएगा।
• श्री शांतनु कुमार दास ने सभा में कहा था कि सामाजिक असमानता को दूर करना चाहिए। और उनका कहना था कि इसके लिए कानून बनना चाहिए।
अस्पृश्यता की परिभाषा संविधान में नहीं :
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• प्रोफेसर केटी शाह ने सुझाव दिया कि अस्पृश्यता की परिभाषा संविधान में नहीं है।
• उनका कहना था कि इस प्रकार, एक सवाल उठता है कि अस्पृश्यता क्या है?
• उन्होंने कहा था कि ऐसे में भविष्य में अस्पृश्यता शब्द को समझने में परेशानी हो सकती हैं।
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• उनका कहना था कि इसमें सुधार हो और “अस्पृश्यता” शब्द के स्थान पर एक अलग शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए।
• लेकिन उनके मत को बाबा साहेब अंबेडकर ने स्वीकार नहीं किया था ।
• फिर अनुच्छेद 11 से संबंधित प्रस्ताव को अपनाया गया और इसे संविधान में जोड़ा गया।
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असमानता समाप्त हो:
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संविधान के निर्माता छुआछूत को समाप्त करना चाहते थे। इसके अलावा उन्होंने महात्मा गांधी, राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद जैसे समाजसुधारकों में अपना विश्वास बनाए रखा था। डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर ने भी अस्पृश्यता के उन्मूलन में अपना विश्वास दिखाया था। वह चाहते थे कि समाज में असमानता पूरी तरह से समाप्त हो। बाबा साहेब अंबेडकर यह भी चाहते थे कि अस्पृश्यता को कानून द्वारा दंडनीय बनाया जाए।
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