मैनपुरी के करहल थाना क्षेत्र में जातिवादियों ने एक दलित परिवार की साढ़े आठ बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया। विरोध करने पर जातिसूचक गालियां और जान से मारने की धमकी दी। पीड़ित परिवार ने एससी-एसटी कोर्ट में शिकायत की, जिसके निर्देश पर पांच आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। मामले ने प्रशासन की निष्क्रियता और सामाजिक भेदभाव की गंभीर समस्या को उजागर किया।
मैनपुरी जिले के करहल थाना क्षेत्र के ग्राम गोकुलपुर में सामाजिक भेदभाव और दबंगई का एक और मामला सामने आया, जिसने समाज के पिछड़े वर्गों की समस्याओं को फिर उजागर कर दिया। यहां एक दलित परिवार की साढ़े आठ बीघा जमीन पर कुछ जातिवादियों ने जबरन कब्जा कर लिया। पीड़ित परिवार द्वारा विरोध करने पर न केवल उन्हें जातिसूचक गालियां दी गईं, बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी गई। यह जमीन रामरति नामक महिला के नाम पर दर्ज थी, जिसे उनके बेटे भूप सिंह ने खरीदा था।
दलित की साढ़े आठ बीघा जमीन पर कब्जा
भूप सिंह, जो बरनाहल थाना क्षेत्र के ग्राम आलमपुर देहा के निवासी हैं, ने बताया कि उन्होंने यह जमीन गोकुलपुर निवासी विद्याराम और बदन सिंह यादव से खरीदी थी। खरीदारी के बाद उन्होंने जमीन पर कब्जा लिया और कानूनी प्रक्रिया के तहत जमीन का दाखिल-खारिज भी अपनी मां रामरति के नाम करा लिया। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन गांव के दबंग अजीत, अंशुल, रमेश, महेंद्र और उपेंद्र ने साजिश रचकर इस जमीन पर कब्जा कर लिया। आरोपियों ने न केवल जमीन हड़पी, बल्कि परिवार के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को हथियार बनाते हुए जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया।
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दलित ने जातिवादियों के खिलाफ आवाज उठाई
भूप सिंह ने बताया कि जब उन्होंने अपनी मां के साथ मिलकर जातिवादियों के खिलाफ आवाज उठाई, तो उन्हें धमकी दी गई कि अगर वे जमीन पर अपना हक जताने की कोशिश करेंगे, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। जातिवादियों ने महिला रामरति को भी अपमानित करने से गुरेज नहीं किया। पीड़ित परिवार ने अपनी शिकायत कई बार स्थानीय पुलिस से की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः उन्होंने हिम्मत जुटाकर स्पेशल जज एससी-एसटी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के निर्देश पर करहल पुलिस ने मामले में पांच आरोपियों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया।
गांव में फैला तनाव, न्याय की उम्मीद में पीड़ित परिवार
घटना के बाद से गांव में तनाव का माहौल है। जातिवादियों के हौसले बुलंद हैं, और पीड़ित परिवार न्याय की आस में कोर्ट और पुलिस के चक्कर काट रहा है। इस घटना ने न केवल सामाजिक अन्याय और भेदभाव की तस्वीर पेश की है, बल्कि यह भी सवाल उठाया है कि आखिर कब तक कमजोर वर्गों को उनके हक और सम्मान के लिए इस तरह की लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
भूप सिंह का कहना है कि जमीन की खरीद-फरोख्त पूरी तरह कानूनी थी और उसके सभी दस्तावेज उनके पास हैं। इसके बावजूद जातिवादियों ने न केवल जमीन पर कब्जा किया, बल्कि उनके परिवार की गरिमा को भी चोट पहुंचाई। उन्होंने कहा, “हम कानून में विश्वास रखते हैं और हमें न्याय मिलने की उम्मीद है। लेकिन जातिवादियों का डर और सामाजिक भेदभाव हमारे संघर्ष को और कठिन बना रहा है।”
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प्रशासन पर उठ रहे सवाल
इस मामले ने स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता को भी उजागर किया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब जातिवादियों ने दलितों को उनके अधिकारों से वंचित करने की कोशिश की हो। पुलिस की ढिलाई और जातिवादियों का राजनीतिक प्रभाव अक्सर पीड़ितों को न्याय से दूर रखता है।
अब देखना यह है कि कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन किस हद तक कार्रवाई करता है और पीड़ित परिवार को न्याय दिला पाता है। यह घटना सिर्फ एक जमीन विवाद नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक बड़ी चुनौती है, जो आज भी हमारे समाज में गहराई से जड़ें जमाए हुए है।
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