UP News: 27 साल पुराने मामले में दलित महिला से दुष्कर्म के दोषी को 10 साल की सजा

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उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने 27 साल पुराने दुष्कर्म के मामले में आरोपी अवधेश शुक्ला को 10 साल की सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम) शिरीन जैदी ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाते हुए आरोपी पर 6,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह मामला 1997 का है, जब पीड़िता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उसे खेत में ले जाकर दुष्कर्म किया और जान से मारने की धमकी दी थी।

उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने 27 साल पुराने दुष्कर्म के मामले में आरोपी को दोषी करार देते हुए 10 साल की कठोर सजा सुनाई है। यह फैसला विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम) शिरीन जैदी ने सुनाया। आरोपी अवधेश शुक्ला को न केवल जेल की सजा मिली, बल्कि उस पर 6,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

मामले का इतिहास

यह घटना 11 मार्च 1997 की है। पीड़िता, जो दलित समुदाय से है, ने अपनी शिकायत में बताया था कि आरोपी ने उसे खेत में खींचकर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी।

घटना के तुरंत बाद पीड़िता ने हिम्मत दिखाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की। हालांकि, कानूनी प्रक्रिया में देरी के कारण इस मामले को न्याय मिलने में 27 साल का समय लग गया।

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अदालती प्रक्रिया और सजा

अदालत ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं और एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराया। विशेष न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे अपराध न केवल पीड़िता के लिए दर्दनाक होते हैं, बल्कि समाज के लिए भी शर्मनाक हैं।

सरकारी वकील का बयान

अतिरिक्त जिला सरकारी वकील पंकज सोनकर ने बताया कि अभियोजन पक्ष ने मजबूत साक्ष्य और गवाहों के माध्यम से आरोपी के खिलाफ मामला साबित किया। उन्होंने यह भी कहा कि पीड़िता और उसके परिवार को इस फैसले से न्याय मिलने की उम्मीद जगी है।

लंबा इंतजार और संघर्ष

इस मामले में 27 साल का लंबा समय लगने के कारण पीड़िता और उसके परिवार को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने न्याय व्यवस्था पर भरोसा बनाए रखा।

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समाज को संदेश

इस फैसले ने यह संदेश दिया है कि न्याय में देरी हो सकती है, लेकिन दोषियों को उनके किए की सजा जरूर मिलती है। साथ ही यह भी दर्शाता है कि समाज के कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने के लिए कानून और न्यायपालिका प्रतिबद्ध है।

न्याय की उम्मीद

हालांकि इस मामले में देरी ने कई सवाल उठाए हैं, लेकिन पीड़िता को न्याय मिलने से यह स्पष्ट हो गया है कि अपराधियों को कानून से बचने का कोई मौका नहीं मिलता। अब यह देखना होगा कि इस फैसले के बाद पीड़िता और उसके परिवार को सामाजिक और मानसिक राहत मिल पाती है या नहीं।

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