पुलिस हिरासत में बेरहम पिटाई से 17 वर्षीय दलित युवक की मौत। सवाल- यूपी पुलिस रक्षक है या भक्षक ?

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यूपी में पुलिस हिरासत में मौत के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है जिसकी वजह से पुलिस की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठ रह है। जहा एक और योगी सरकार अपराधमुक्त प्रदेश का ढिंढोरा पीटती हैं वही दूसरी और आरोपी कोर्ट जाने पहले ही पुलिस हिरासत में मारे जा रहे है
यूपी में कस्टडियल डेथ के बढ़ते मामले यूपी पुलिस पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं की आखिर रक्षक ही भक्षक बन बैठे है।

ताजा मामला लखीमपुर खीरी के कमलापुरी का हैं जहा एक 17 वर्षीय दलित युवक को मोबाईल चोरी के शक में पुलिस ने हिरासत में लेकर बेरहमी से पिटाई कर दी जिसके चार दिन बाद युवक ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में अब तक तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है.

दरअसल, कमलापुरी गाँव के राहुल के ख़िलाफ़ उनके चाचा ने खजुरिया चौकी में 17 जनवरी को दो मोबाइल फ़ोन चुराने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करवाई थी.
इसके बाद पुलिस ने दो दिन बाद 19 जनवरी को राहुल को पूछताछ के लिए बुलाया. बेटे को थाने लेकर गई राहुल की माँ का कहना है कि पुलिस वालों ने उनसे कहा कि पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया जाएगा.
माँ सीता देवी कहती हैं, ”पुलिस ने बाद में मेरे बेटे को बेरहमी से पीटा. वो रोता-गिड़गिड़ाता रहा, पर पुलिस ने उसे बुरी तरह मारा.”।
ऐसे में पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि अगर 17 जनवरी को शिकायत के आधार पर राहुल को पुलिस ने बुलाया और 19 जनवरी तक कस्टडी में क्यों रखा और पुलिस ने जब उसे घरवालों को सौंपा तो क्या राहुल की हालत ठीक थी?

परिजनों ने सड़क पर शव रखकर किया प्रदर्शन –

इस घटना के बाद थाना पुलिस से नाराज सैकड़ों की संख्या जमा लोगों और परिजनों ने गांव वालों के साथ खजुरिया-संपूर्णानगर रोड पर शव रखकर जाम लगा दिया। इससे पुलिस के हाथपांव फूल गए। मौके पर भारी पुलिस फोर्स के साथ पहुंचे सीओ पलिया एसएन तिवारी और तहसीलदार पलिया आक्रोषित लोगों को समझा बुझाकर प्रदर्शन समाप्त कराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी और परिवार के लोग आरोपी पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग पर अड़े हैं।

 

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