आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जिसकी बुनियाद ही हिंदुत्व के आधार पर रखी गयी थी। आरएसएस की स्थापना से ही इस संगठन का एकमात्र उद्देश्य दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का है । लेकिन कही न कही इस बीच इस देश का संविधान और लोकत्रंत्र आड़े आ जाता है।
आरएसएस बाबा साहब का नाम जरूर जरूर लेता है लेकिन उनकी सम्पूर्ण सोच को अब भी सम्पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं कर पाया है क्योकि आरएसएस की अपनी विचारधारा है और आंबेडकर की अपनी विचारधारा थी।
बाबा साहब को मानने वाले एक बड़े तबके को आरएसएस अपने साथ करना चाहता है इसलिए आरएसएस अब बाबा साहब आंबेडकर पर झूठ भी फैलाने लगा है।
जानिए कैसे बाबा साहब आंबेडकर पर झूठ फैला रहा है आरएसएस –
RSS का पहला झूठ – 1952 के पहले आम चुनाव में बाबा साहब की पार्टी शेड्यूल कास्ट फेडरेशन और भारतीय जनसंघ ने एमपी में प्री-पोल एलायंस किया और साथ में चुनाव लड़ा
सबूत –
बाबा साहब ने 1941 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन की स्थापना की। दलितों को सत्ता में पहुंचाने के मकसद से बनाई गई इस पार्टी का संविधान बाबा साहब ने खुद बनाया। 1952 में होने वाले आम चुनाव के मद्देनज़र अक्टूबर 1951 में ही बाबा साहब ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का मैनिफेस्टो यानी चुनावी घोषणा-पत्र जारी कर दिया था…. जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने 3 अक्टूबर 1951 को ‘Scheduled Castes’ Emancipation : Draft Manifesto’ शिर्षक के तहत प्रकाशित भी किया था। इस मैनिफेस्टों में बाबा साहब ‘शेड्यूल कास्ट फेडरेशन और अन्य पार्टियों में सहयोग’ सेक्शन में साफ-साफ लिखते हैं…. ‘अन्य राजनीतिक दलों के संबंध में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के रवैये को आसानी से परिभाषित किया जा सकता है। शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन कभी भी हिंदू महासभा और आरएसएस जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेगी’ (Dr Baba Saheb Ambedkar : Writing and Speeches, Vol.17 Part 1 के पेज नंबर 402 पर भी जाकर पढ़ सकते हैं)
यानी जब बाबा साहब ने मैनिफेस्टो में साफ-साफ लिखा था कि हम आरएसएस और हिंदू जैसी पार्टियों के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे तो फिर 1952 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन और भारतीय जनसंघ साथ मिलकर कैसे चुनाव लड़ सकते हैं ? यानी आरएसएस का ये दावा झूठ के सिवा कुछ नहीं है।
आरएसएस का दूसरा झूठ – बाबा साहब की पार्टी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भारतीय जनसंघ काफी करीब थे
सबूत – हिंदू धर्म की बुराइयों को खत्म करने और महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने के लिए 17 नवंबर 1947 को बाबा साहब ने बतौर लॉ मिनिस्टर संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया। लेकिन बिल को 17 Nov 1947 से 9th April 1949 तक बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया गया… 10th सितंबर 1951 को जब हिंदू कोड बिल दोबारा सदन में डिस्कशन के लिए लाया गया तो उस समय नेहरू कैबिनेट में कॉमर्स एंड इंडस्ट्रियल मिनिस्टर रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिल का कड़ा विरोध किया… इंडियन एक्सप्रेस में 1 मई 2009 को प्रकाशित लेख में इंद्र मल्होत्रा लिखते हैं ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि हिंदू कोड बिल हिंदू संस्कृति की शानदार बनावट को चकनाचूर कर देगा’ … श्यामा प्रसाद मुखर्जी, आरएसएस और हिंदू महासभा ने हिंदू कोड बिल का ज़बरदस्त विरोध किया था… आरएसएस ने तो संसद में घुसकर कार्रवाई रोकने तक की कोशिश की थी…4 जनवरी 1949 को संविधान सभा की कार्रवाई शुरू होने से पहले संविधान सभा के उपाध्यक्ष डॉ एच सी मुखर्जी ने कहा था…
इससे पहले की हम सदन की कार्यवाही शुरू करें, मैं सदस्यों को बताना चाहता हूं कि कल आरएसएस के लोग परेशान करने के लिए सुरक्षा को तोड़ते हुए लॉबी और गैलरी तक आ गए थे। मैं प्रार्थना करता हूं कि आगंतुकों के लिए पास जारी किए जाएं ताकि हम बिना रूकावट के अपना काम कर सकें। (कंस्टीट्यूशनल एसेंबली डिबेट्स CAD7/1233)
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यानी आरएसएस खुलकर बाबा साहब के हिंदू कोड बिल के खिलाफ था। तो क्या अरुण आनंद ये बता सकतें है कि अगर बाबा साहब आरएसएस को पसंद कर रहे थे तो आरएसएस उनका इस तरह से ज़बरदस्त विरोध क्यों कर रहा था ? श्यामा प्रसाद मुखर्जी और बाबा साहब अगर एक विचारधारा के थे तो फिर मुखर्जी हिंदू कोड बिल का विरोध क्यों कर रहे थे ?
हिंदू कोड बिल के विरोध में इस्तीफा देने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 भारतीय जनसंघ बनाया जो आगे चलकर बीजेपी बना… श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राजेंद्र प्रसाद, हिंदू महासभा और आरएसएस जैसे हिंदूवादी लोगों और संगठनों के कारण ही हिंदू कोड बिल पास नहीं हो पाया और बाबा साहब ने दुखी होकर 27 सितंबर को लॉ मिनिस्टर के पद से इस्तीफा दे दिया… ऐसे में क्या बाबा साहब अगले ही साल होने वाले आम चुनाव में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पार्टी के साथ गठबंधन कर सकते थे ? यानी आरएसएस का दूसरा दावा भी बेबुनियाद है।
आरएसएस का तीसरा झूठ – आरएसएस के प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी को बाबा साहब ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का सचिव बनाया था
सबूत – Dr Babasaheb Ambedkar Writings & Speeches Vol. 17 Part 2 के पेज नंबर 459 पर शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के संविधान में बाबा साहब लिखते हैं… ‘अनुसूचित जाति का कोई भी व्यक्ति जो किसी अन्य राजनीतिक पार्टी या सामाजिक-धार्मिक संगठन का हिस्सा नहीं है, जिसका उद्देश्य फेडरेशन की सेंट्रल एग्जिक्यूटिव कमेटी से मान्य नहीं है, जिस व्यक्ति ने सदस्य बनने के लिए इनकार नहीं किया है और जो फेडरेशन का संविधान मानने के लिए तैयार है, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का सदस्य बन सकता है।’
यानी शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के संविधान के मुताबिक सदस्य बनने के लिए अनुसूचित जाति का होना ज़रूरी था और साथ ही आप किसी और सगंठन के सदस्य भी नहीं हो सकते थे… लेकिन दत्तोपंत ठेंगड़ी जाति से ब्राह्मण थे और साथ ही वो भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच के संस्थापक भी थे.. ऐसे में भला पार्टी के संविधान के खिलाफ बाबा साहब उन्हें शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का सचिव कैसे बना सकते थे ?
यानी ठेंगड़ी को शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का सचिव बनाने का संघ का दावा भी झूठ के सिवा कुछ नहीं है। इसी तरह दत्तोपंत ठेंगड़ी के 1954 के भंडारा उपचुनाव में बाबा साहब का इलेक्शन एजेंट होने का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता… आरएसएस बिना किसी सबूत या रेफरेंस के सिर्फ झूठ फैला रहा है।
आरएसएस का चौथा झूठ – 1953 में बाबा साहब ने कहा कि आरएसएस को अपने काम में तेज़ी लानी चाहिए क्योंकि आरएसएस जैसे संगठन ही ऊंची और नीची जातियों को साथ ला सकते हैं ?
सबूत – बाबा साहब की लिखी किसी भी किताब या भाषण में आरएसएस की तारीफ में एक भी शब्द नहीं मिलता…. इसके उलट संविधान सभा की बहस में वो आरएसएस को खतरनाक संगठन कहते हैं। Dr Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches,Vol.15, Page.560 पर छपी जानकारी के मुताबिक 9 मई 1951 को REPRESENTATION OF THE PEOPLE एक्ट पर बहस के दौरान बाबा साहब सरदार हुकुम सिंह के सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं।
– ‘ क्या मैं आर.एस.एस. और अकाली दल का ज़िक्र करूं? उनमें से कुछ संगठन बहुत खतरनाक हैं। हो सकता है कि एक सरकार इन्हें मान्यता दे दे और दूसरी ना दे। ऐसी संभावनाए हैं।’
आरएसएस का पांचवा झूठ – 1949 में आरएसएस के दूसरे चीफ एम एस गोलवलकर दिल्ली में बाबा साहब से मिले और आरएसएस पर लगे बैन को हटाने पर बात की
सबूत – अरुण आनंद ने ये तो बता दिया कि बाबा साहब और गोलवलकर की मुलाकात हुई लेकिन जिस मुद्दे पर दोनों की चर्चा हुई उसे वो गोल कर गए… सोहनलाल शास्त्री, ने बाबा साहब के साथ 25 साल बिताए और फिर ‘बाबा साहब डॉ आंबेडकर के संपर्क में 25 वर्ष’ नाम से अपने अनुभवों पर किताब प्रकाशित की… सोहनलाल उस मुलाकात के बारे में पेज नंबर 55 पर लिखते हैं – उन्हीं दिनों गुरु गोलवलकर भी बाबा साहब के पास आए थे। उनकी दसों उंगलियों में नाना प्रकार की पाषाणजड़ित सुनहरी अंगूठियां मैंने अपनी आंखों से देखी थी। बाबा साहब ने कहा कि यह कोई धनी व्यक्ति नहीं है लेकिन सोने की हीरे जड़ित अंगूठियां इसे राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के गुरुदक्षिणा पूजा के अवसर पर दक्षिणा में मिली हैं। देखिए इस देश के पोप एक नहीं, दो नहीं बल्कि दसों उंगलियों में दसियों प्रकार की अंगूठियां पहने हुए हैं। ऐसे गुरु जिस देश में होंगे उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता।
सदाशिव गुरु गोलवलकर बाबा साहब से मराठी में बातें करते रहे जिन्हें मैं बहुत कम ही समझ पाया था क्योंकि मैं मराठी नहीं जानता था लेकिन बातचीत का भावार्थ यही था कि मराठों का मुकाबला करने के लिए बाकि जातियों का संगठन भी होना चाहिए नहीं तो इन्होंने आज ब्राह्मणों पर अत्याचार ढहाया है और कल अछूतों पर भी अत्याचार करेंगे। मराठों की बहुसंख्या गिनती और भूस्वामित्व बल सब नॉन मराठों को समाप्त कर देगा। मैं इसका उपाय करने के लिए आपके पास आया हूं। बाबा साहब ने आरएसएस के उस नेता को कहा कि तुम चितपावन ब्राह्मण हो, तुम्हारे पुरुखा पेशवा जिनके हाथ में देश के प्रशासन की बागडोर रही उनका सलूक हम अछूतों के साथ कैसा था? तुम्हारे पेशवा महाराजाओं ने भी तो पूना में अछूतों के गले में मिट्टी का हंडिया बांधने और कमर पर झाड़ू बांध कर सड़कों पर चलने का आदेश दे रखा था ताकि अछूत थूकें तो उस मिट्टी की हंडिया में ही थूकें कदाचित उनके थूक से मार्ग भ्रष्ट न हो जाए, और कमर में झाड़ू बांधने के आदेश इस कारण दिए ताकि अछूतों के पैरों के निशान मिटते चले जाएं और उनके पदचिन्हों पर चलकर कोई सवर्ण हिंदू विशेषत: ब्राह्मण भ्रष्ट न हो जाए। तुम्हारा ये राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ भी तो ब्राह्मणों का ही एक संगठन है, इसमें न तो महार अछूत हैं और न ही मराठे। अभी तो अपने पुरखों के पहले बोए विषवृक्ष का फल चख रहे हो, अब तुमने एक और सांप्रदायिक विष वृक्ष बोना आरंभ कर दिया है।
इसका भी बहुत बुरा प्रभाव निकलेगा। तुम संघ बनाते हो तो बनाओ किंतु जात-पात मिटाने, वर्ण-व्यवस्था का नाश करने के लिए संगठन बनाओ। अब पिछली भूल को सुधारो। ऐसे में संघठन पुन: ब्राह्मण चितपावन राज कायम नहीं कर सकेंगे। ये सब बातें बाबा साहब ने हमें गोलवलकर के चले जाने के बाद हिंदुस्तानी में बताई थीं।
अब आप खुद ही अनुमान लगा लीजिए कि कैसे आरएसएस ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने में माहिर है। यानी आरएसएस का पांचवां दावा भी निराधार है।
आरएसएस का झठा झूठ – 1935 में बाबा साहब ने पुणे में आरएसएस की शाखा का दौरा किया और आरएसएस के काम को सराहा, साथ ही 1939 में बाबा साहब ने पाया कि संघ में कोई छुआछूत नहीं है?
सबूत – अगर आरएसएस में सभी जातियों का सम्मान होता है तो क्या संघ ये बता सकता है आज तक कोई दलित संघ प्रमुख क्यों नहीं बन पाया? क्यों सिर्फ ब्राह्मण जाति का व्यक्ति ही आजतक संघ प्रमुख की गद्दी पर बैठता आया है? संघ में दलितों के साथ क्या-क्या होता है वो भंवर मेघवंशी ने अपनी किताब ‘मैं एक कारसेवक था’ में विस्तार से बताया है…भंवर बताते हैं ‘आरएसएस का ये कहना कि वो अस्पृश्यता को नहीं मानता, सरारस झूठ है। आरएसएस सिर्फ और सिर्फ उच्च वर्णीय हिंदू लोगों का संगठन है जहां हर निर्णायक पोस्ट पर सिर्फ उच्च वर्णीय हिंदू लोग ही बैठे हैं, संघ में जातिवाद होता है, ये मैंने खुद देखा है। ‘
यानी आरएसएस का झठा दावा भी एकदम खोखला है ।
आरएसएस का सातवां झूठ – डॉ आंबेडकर के विचारों पर ही आरएसएस काम कर रही है
सबूत – ये किसी से छुपा नहीं है कि आरएसएस का एजेंडा सिर्फ और सिर्फ हिंदू राष्ट्र को स्थापित करना है जबकि बाबा साहब हिंदू राष्ट्र के सबसे बड़े विरोधी थे… अपनी किताब Pakistan or The Partition of India के पेज नंबर 358 पर बाबा साहब लिखते हैं। ‘यदि हिंदू राज एक हकीकत बन जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू क्या कहते हैं, हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए एक खतरा है। यह लोकतंत्र के लिए असंगत है। हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए’
यानी बाबा साहब हिंदू राष्ट्र को रोकने की बात करते हैं और आरएसएस उसे स्थापित करने के एजेंडे पर चल रहा है…तो ये किस तरह का संबंध है? बाबा साहब के विचारों से ये कैसा रिश्ता है? यानी आरएसएस का सातवां दावा भी झूठा है।
आरएसएस का आठवां झूठ – बाबा साहब के समता सैनिक दल की तर्ज़ पर हेडगेवार ने आरएसएस बनाया ?
सबूत – समता सैनिक दल की स्थापना बाबा साहब ने 24 सितंबर 1924 को की थी जबकि आरएसएस की स्थापना के बी हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को की थी… अगर आरएसएस बाबा साहब के विचारों से इतना ज्यादा प्रेरित था तो फिर हेडगेवार खुद समता सैनिक दल में शामिल क्यों नहीं हो गए? उन्हें अलग से आरएसएस बनाने की क्या ज़रूरत थी ? झूठ का कारोबार करने वाले आरएसएस का ये दावा भी फेक न्यूज़ से ज्यादा कुछ नहीं है।
आरएसएस का नौवां झूठ – बाबा साहब के मिशन के लिए काम करता है आरएसएस
सबूत – 4 अप्रैल 1938 को बंबई विधानमंडल में भारतीयता पर बोलते हुए कहा था…
मुझे पसंद नहीं है कि कुछ लोग क्या कहते हैं, कि हम पहले भारतीय हैं और हिंदू बाद में या मुसलमान। मैं इससे संतुष्ट नहीं हूं, मैं खुलकर कहता हूं कि मैं इससे संतुष्ट नहीं हूं। मैं नहीं चाहता कि भारतीयों के रूप में हमारी वफादारी किसी भी प्रतिस्पर्धी वफादारी से प्रभावित होनी चाहिए, चाहे वह वफादारी हमारे धर्म से हो, हमारी संस्कृति से हो या हमारी भाषा से। मैं चाहता हूं कि सभी लोग पहले भारतीय हों, अंत में भी भारतीय हों और भारतीय के अलावा कुछ न हों।
बाबा साहब जहां भारतीयता को सबसे ऊंचा मानते हैं, वहीं आरएसएस ना ही भारत के संविधान को मानती है और ना ही धर्म निरपेक्ष भारत के विचार को… आरएसएस तो 2002 से पहले भारत के तिरंगा झंडे की जगह अपने दफ्तर में भगवा ध्वज़ फहराता था… 26 जनवरी 2001 को नागपुर के रेशमीबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में घुसकर बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी ने गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराने की कोशिश की थी… मामला कोर्ट तक पहुंचा… और जब आरएसएस को लगा कि अब तिरंगे के बहाने उसकी देशभक्ति पर सवाल उठेगा तो 2002 में पहली बार तिरंगे को सलामी ठोकी गई… आरएसएस ने ही सबसे पहले 27 जनवरी 1950 को भारत के संविधान को सार्वजनिक तौर पर जलाया था।
बाबा साहब जाति के उन्मूलन की बात करते थे लेकिन आरएसएस जातियां बनाए रखना चाहता है ताकि उसका वर्चस्व बना रहे… बाबा साहब कहते थे कि हिंदुओं को अपने धार्मिक ग्रंथ डायनामाइट लगाकर उड़ा देने चाहिए लेकिन आरएसएस मनुस्मृति लागू करना चाहता है। बाबा साहब सामाजिक न्याय की बात करते थे लेकिन आरएसएस एससी-एसटी और पिछड़ों को मिले आरक्षण को खत्म करने की वकालत करता है। मोहन भागवत कई बार आरक्षण की समीक्षा की बात कर चुके हैं। यही नहीं… गोलवलकर भी कुछ इसी तरह के विचार अपनी किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में देते हैं।
तो फिर भला ये बाबा साहब के किन विचारों पर काम कर रही है आरएसएस? आरएसएस सिर्फ झूठ फैला रही है।
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