रमाबाई रानाडे का जन्म 1862 में आज ही के दिन 25 जनवरी को हुआ था। उनका जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले के छोटे से गांव देवराष्ट्रे में रहने वाले कुर्लेकर परिवार में यमुना कुर्लेकर के रुप में हुआ था। रमाबाई ने महिलाओं के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए थे। जीवन के संघर्षो का सामना करते हुए उन्होंने भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में अपनी पहचान बनाई थी। आज हम उनकी जयंती के अवसर पर उनके जीवन के संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में जानेंगे।
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ग्यारह साल की उम्र में विवाह:
रमाबाई के समय में लड़कियों को पढ़ाना मना था। जिसकी वजह से रमाबाई को उनके पिता ने पढ़ाया नहीं था। 1873 में केवल 11 साल की उम्र में रमाबाई का विवाह महादेव गोविंद रानाडे से हो गया था। महादेव गोविंद रानाडे उस समय विधुर थे और वह रमाबाई से 20 साल बड़े थे। महादेव गोविंद रानाडे सामाजिक सुधार आंदोलन में सक्रिय थे। महिला शिक्षा के विरोध के बाद भी उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने में अपना जीवन समर्पित किया। जिसकी वजह से उनका व्यक्तित्व सामाजिक और शैक्षिक सुधार के रुप में उभरा था।
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विवाह के बाद जीवन बदला:
गोविंद रानाडे से विवाह के बाद रमाबाई का जीवन पूरी तरह से बदल गया था। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित रमाबाई ने भी अपना पूरा जीवन महिलाओं को आत्मनिर्भर और आर्थिक रुप से स्वतंत्र करने में लगाया था। रमाबाई के पति ने गोविंद रानाडे समाजसुधारक होने के साथ अंग्रेजी और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रुप में भी काम किया है।
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पढ़ने के लिए प्रेरित किया:
गोविंद रानाडे ने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ काम किया था। उन्होंने रामाबाई को पढ़ने के लिए प्रेरित किया था। लेकिन उनके परिवार वाले इस बात के खिलाफ थे लेकिन इसके बावजूद भी रामाबाई रानाडे ने शिक्षा हासिल की थी। उनके पति गोविंद रानाडे ने उन्हें गणित, भूगोल और अन्य भाषाओं का ज्ञान दिया। इसके अलावा वह उन्हें समाचार पत्र पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे और वह रामाबाई के साथ समसामयिक मुद्दों पर चर्चा भी करते थे।
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अंग्रेजी भाषा सीखी:
रमाबाई ने खुद को शिक्षित करने का एक मिशन बना लिया, ताकि वह अपने पति के नेतृत्व वाले सक्रिय जीवन में बराबर की भागीदार बन सकें। जब पंडिता रमाबाई 1882 में पुणे आई थी तो गोविंद रानाडे ने उनकी काफी मदद की थी। रमाबाई और पंडिता रामाबाई दोनों ने रानाडे के आवास पर एक ईसाई मिशनरी महिला से अंग्रेजी भाषा की शिक्षा हासिल की थी।
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प्रार्थना समाज क्या था?
रमाबाई रानाडे ने अपना पूरा जीवन महिलाओं के कल्य़ाण के लिए काम किया था। रमाबाई के सामाजिक कार्यों की शुरुआत प्रार्थना समाज से हुई थी। पहले रमाबाई ने खुद सामाजिक सुधारों के बारे में जानकारी हासिल की थी। आपकों बता दें कि प्रार्थना समाज का स्थापना रमाबाई के पति महादेव गोविंद रानाडे ने की थी। पार्थना समाज एक समाज सुधारक आंदोलन था। जिसमें बहुत से सामाजिक मुद्दों पर बैठक होती थी और भाषण हुआ करते थे। रमाबाई इन बैठकों में शामिल होती थी और संदेशों को दूसरी महिलाओं तक पहुँचाया करती थीं। धार्मिक अनुष्ठानों भजन कीर्तन में जाकर महिलाओं को शिक्षित करती थीं। उन्हें पढ़ना लिखना सिखाती थीं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती थीं।
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हिंदू लेडीज सोशल एंड लिटररी क्लब:
रमाबाई एक कुशल वक्ता बन गई थीं। उन्होंने कई सभाओं को भी संबोधित किया था और भाषण दिए थें। रमाबई की अंग्रेजी और मराठी पर पकड़ बहुत मजबूत थी। उन्होंने आर्य महिला समाज की एक शाखा बॉम्बे (मुंबई) में स्थापित की थी। अपने काम से रमाबाई काफी लोकप्रिय हुई थीं। 1893 से लेकर 1901 यह एक ऐसा समय था जब रमाबाई रानाडे लोकप्रियता के शीर्ष पर थीं। रमाबाई ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बॉम्बे में “हिंदू लेडीज सोशल एंड लिटररी क्लब” की शुरुआत की। यह संस्था महिलाओं को भाषा, सामान्य ज्ञान, सिलाई और हस्तकला की ट्रेनिंग देती थी।
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सेवा सदन की स्थापना:
रमाबाई रानाडे के पति महादेव गोविंद रानाडे का निधन 1901 में हो गया था। अपने पति के निधन के बाद रमाबाई रानाडे पुणे में रहने लगी। फिर उन्होंने भारत में महिला परिषद का आयोजन किया। रमाबाई ने 1909 में सेवासदन की स्थापना की। उस समय सेवासदन से हजारों महिलाएं जुड़ी। 1915 में सेवा सदन का एक सोसायटी के तौर पर रजिस्ट्रेशन किया गया था। रमाबाई के मार्गदर्शन में इस तरह सेवा सदन, बॉम्बे में अस्तित्व में आया। सेवासदन में नर्सिंग और मेडिकल एसोसिएशन के तहत महिला नर्सों को ट्रेनिंग दी गई। जिसमें स्वास्थ्य, प्राथमिक चिकित्सा, सफाई और पब्लिक हेल्थ के बारे में जानकारी दी गई।
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महिलाओं की असहजता को दूर किया:
इस कदम से रमाबाई रानाडे ने नर्सिंग को लेकर समाज में जो पूर्व धारणा बनी थीं उसे हटाने का काम किया था। उन्होंने प्रशिक्षित नर्सो को पुरुष रोगियों के उपचार को लेकर जो असहजता महसूस होती है उसे दूर किया। सेवा सदन में हजारों महिलाओं को नर्सिंग की ट्रेनिंग देकर उन्हें सेवा में लगाया। इसके अलावा रमाबाई ने बाल विवाह की प्रथा को रोकने की दिशा में भी काम किया। 1913 में भीषण अकाल के दौरान गुजरात और काठियावाड में भी राहत कार्यों में योगदान दिया। रामाबाई ने 1921-22 में महिलाओं के लिए वोट के अधिकार के लिए बॉम्बे प्रेसीडेंसी में आंदोलन किया।
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लेखिका रमाबाई:
रमाबाई एक लेखिका भी थीं उन्होंने मराठी में अपनी आत्मकथा ‘अमाच्य आयुष्यतिल कही आठवानी’ लिखी। इसमें उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन की जानकारी दी। इसके अलावा उन्होंने जस्टिस रानाडे के व्याख्यानों का एक संग्रह प्रकाशित किया था।
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डाक टिकट जारी :
रमाबाई रानाडे के समाज सुधार में किए योगदान के लिए भारतीय डाक ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। 1924 में रमाबाई का निधन हो गया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। उनके योगदान को आज भी भुलाया नहीं जा सकता है। ऐसी महान शख्सियत को उनकी जयंती पर उन्हें नमन करते हैं।
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