धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण की सूची से हटाया जाए: जनजाति सुरक्षा मंच

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शुक्रवार को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जनजाति सुरक्षा मंच की तरफ से आयोजित महारैली में भोपाल के 40 जिलों से आदिवासी समाज के लोग इक्ट्ठा हुए। मंच द्वारा यह मांग उठाई गई कि उन लोगो को आदिवासियों की सूची से हटाया जाए जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर या तो इस्लाम कुबूल कर लिया है या इसाई बन गए है लेकिन फिर भी आदिवासी कोटे से नौकरी ले रहे हैं। बता दें कि इस रैली में भोपाल के 40 जिलों के आदिवासियों ने शिरकत की।

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डी-लिस्टिंग की जाए:

रैली के दौरान मंच से मांग की गई कि उन लोगो को जिन्होंने आदिवासी परंपराओं-पूजा पद्धतियों को छोड़ दिया है, उन्हें आदिवासियों की लिस्ट से हटा कर डी-लिस्टिंग किया जाए। इस मौके पर जनजातीय सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संगठन मंत्री कालू सिंह मुजाल्दा न कहा कि भोपाल में यह बड़ा आयोजन इस लिए किया गया है, ताकि यह मांग पुरज़ोर तरीके से उठाई जा सके कि उन लोगो को जनजाति के अधिकार नहीं मिलने चाहिए जो धर्मांतरित हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस सिलसिले में हमनें गांव गांव जाकर पंचायतों, सांसदो और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर मामले में समर्थन की मांग की है।

 

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क्यों हो रही है डीलिस्टिंग की मांग:

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, आदिवासी समाज द्वारा डिलिस्टिंग की मांग उठाने के पीछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि वह लोग जो आदिवासी समाज की मूल पहचान, प्रकृति  औऱ संस्कृति को छोड़कर चले गए हैं। वह आज भी आदिवासियों को मिलने वाले लाभ का फायदा उठा रहे हैं। यह लोग अब जनजातीय समाज की रुढ़ी परंपराओं को नहीं मानते हैं और आदिवासी अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहे है। जिसके कारण असल आदिवासी समाज पीछे छूट रहा है।

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संसद में बिल क्यों है पैडिंग

अपनी रैली के दौरान जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक कैलाश निनामा ने कहा धर्मांतरित आदिवासियों को डिलिस्टिंग करना एक मार्मिक विषय है क्योंकि आरक्षण का विषय नहीं है बल्कि जनजातिय समाज के लिए उसके स्वाभिमान का विषय है। उन्होंने आगे सवाल पूछते हुए कहा, कि साल 1967 में जब बाबूजी कार्तिक उरांव कांग्रेस सरकार में सांसद थे तब उन्होंने इस विषय पर चिंता जाहिर की थी।

वह आगे कहते है कि आज जनजातीय समाज और देश यह जानना चाहता है कि आखिर ऐसे क्या कारण है कि जो सांसद देश की 85 प्रतिशत जनसंख्‍या का प्रतिनिधित्‍व कर रहे थे उनके समर्थन के बाद भी यह बिल संसद में आज तक पेंडिंग  पड़ा है।

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इस पर संसद को पुन: विचार करना चाहिए :

निनामा आगे कहा कि, यह विषय जनजातीय संस्‍कृति के संरक्षण और अस्तित्‍व की चिंता से जुड़ा है, न केवल जनजाति से बल्कि यह सनातन की अग्रिम पंक्ति में रहने वाले समाज का भी विषय है। शहरों में रहने वाले प्रबुद्धजन नहीं जानते कि संकट कितना बड़ा है। उन्होंने आगे संसद से यह मांग की कि संसद को इस बिल पर एक बार फिर विचार कर इस विधेयक को लागू करना चाहिए। मालूम हो कि बाबूजी कार्तिक उरांव के जिस बिल की बात संयोजक कैलाश निनामा ने की उसके मुताबिक बाबा कार्तिक उरांव धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण नहीं देने के पक्षधर थे।

 

 

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