चंद्रशेखर आज़ाद ने लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस भर्ती प्रक्रिया को चोर दरवाजे से नियुक्ति करार देते हुए पारदर्शिता और आरक्षण नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बिना विज्ञापन और आरक्षण का पालन किए भर्तियां संवैधानिक अधिकारों का हनन हैं। राज्यपाल, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, और यूजीसी से हस्तक्षेप की मांग करते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि यह मामला अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति में उठाया जाएगा। विश्वविद्यालय ने आवेदन प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन विवाद गहराता जा रहा है।
UP News: लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस पदों पर भर्ती प्रक्रिया को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। यह मामला तब तूल पकड़ा जब भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद ने इस प्रक्रिया को लेकर ट्विटर पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने इसे न केवल पारदर्शिता और निष्पक्षता के खिलाफ बताया, बल्कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन भी करार दिया। चंद्रशेखर ने ट्वीट करते हुए कहा कि इस प्रक्रिया में चोर दरवाजे से भर्तियां की जा रही हैं।
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चोर दरवाजे से नियुक्तियों का आरोप
चंद्रशेखर आज़ाद ने आरोप लगाया कि लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन तक जारी नहीं किया। पदों की संख्या, योग्यता और चयन प्रक्रिया जैसी बुनियादी जानकारियां सार्वजनिक नहीं की गईं। केवल ईमेल के माध्यम से आवेदन मांगे गए, जो नियमों और पारदर्शिता के मानकों के खिलाफ है। उन्होंने इस प्रक्रिया को “चहेतों” के लिए सृजित एक विशेष व्यवस्था बताया और कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (रोजगार में समान अवसर) का सीधा उल्लंघन है।
आरक्षण नियमों की अनदेखी
चंद्रशेखर का सबसे बड़ा आरोप इस प्रक्रिया में आरक्षण नियमों के पालन न होने को लेकर है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार किया जा रहा है। उनका कहना है कि यह न केवल संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि इन समुदायों के लिए एक बड़ी चोट है, जिनके लिए ये अधिकार समानता की ओर एक कदम हैं।
राज्यपाल, शिक्षा मंत्री और यूजीसी से कार्रवाई की मांग
अपने ट्वीट में चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने कहा कि बिना आरक्षण नियमों का पालन किए “चहेतों” के लिए बनाई गई इन भर्तियों पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।
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कुलपति को दी चेतावनी
चंद्रशेखर ने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि इन नियुक्तियों में आरक्षण नियमों का पालन नहीं हुआ, तो वह इस मुद्दे को अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण संबंधी संसदीय समिति में ले जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह इन समुदायों के संवैधानिक अधिकारों पर होने वाली “डकैती” को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विश्वविद्यालय की स्थिति और प्रक्रिया
लखनऊ विश्वविद्यालय ने इस विवाद पर अब तक कोई प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, विवि प्रशासन के अनुसार, यह भर्ती प्रक्रिया नौ अगस्त को हुई कार्यपरिषद की बैठक में स्वीकृत की गई थी। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 9 दिसंबर है और उम्मीदवार ईमेल के माध्यम से अपने आवेदन भेज सकते हैं। प्रक्रिया से संबंधित विस्तृत जानकारी विवि की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई गई है।
संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई या सत्ता संघर्ष?
यह मामला न केवल शिक्षा प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इसे संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के संघर्ष के रूप में भी देखा जा रहा है। चंद्रशेखर आज़ाद ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देते हुए स्पष्ट किया है कि वह इस लड़ाई को आगे तक ले जाएंगे। वहीं, विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी और प्रक्रिया की अस्पष्टता से यह विवाद और गहरा गया है।
क्या होगा अगला कदम?
इस विवाद का क्या समाधान निकलेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद के इस कड़े रुख और उनके द्वारा उठाए गए संवैधानिक सवालों ने न केवल लखनऊ विश्वविद्यालय बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है। अगर इस मामले में आरक्षण नियमों का पालन नहीं हुआ, तो यह न केवल एक संस्थान विशेष की गलती होगी, बल्कि देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक संरचना पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न होगा।
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