By Election Result : करहल सीट से समाजवादी पार्टी के तेज प्रताप जीते, सपा को वोट ना देने पर दलित युवती की हत्या के बाद सुर्खियों में रही थी ये सीट

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करहल विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के तेज प्रताप यादव ने भाजपा के अनुजेश यादव को 14,704 मतों से हराकर जीत हासिल की। यह मुकाबला सपा के मुलायम सिंह यादव के दामाद अनुजेश और राजद नेता लालू यादव के बेटे तेज प्रताप के बीच था। भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी, लेकिन सपा ने अपनी पकड़ बरकरार रखते हुए करहल सीट पर विजय पाई, जो सपा का पारंपरिक गढ़ मानी जाती है।

मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट एक बार फिर से समाजवादी पार्टी (सपा) के हाथ में आ गई है। सपा के तेज प्रताप यादव ने भाजपा के उम्मीदवार अनुजेश यादव को 14,704 वोटों से हराकर यह सीट जीत ली। इस चुनाव को लेकर काफी चर्चाएँ हो रही थीं, क्योंकि यह मुकाबला केवल दो परिवारों के बीच नहीं, बल्कि एक राजनीतिक घमासान था। तेज प्रताप यादव, जो कि लालू यादव के बेटे हैं, ने मुलायम सिंह यादव के दामाद अनुजेश यादव को पराजित किया, और इस तरह से करहल की सीट एक बार फिर से सपा के किले के रूप में उभरी।

फूफा और भतीजे का मुकाबला

यह चुनाव और भी दिलचस्प इस वजह से था क्योंकि इसमें मुकाबला फूफा और भतीजे के बीच था। अनुजेश यादव, जो कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के दामाद हैं, ने भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरकर एक नए चेहरे के रूप में सपा के खिलाफ मोर्चा खोला था। वहीं, तेज प्रताप यादव ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी और फूफा को चुनावी मैदान में पछाड़ते हुए करहल की सीट को सपा के पक्ष में सुरक्षित किया।

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भाजपा की पूरी ताकत लगी थी

भाजपा. ने करहल सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंकी थी। भाजपा ने इस सीट पर डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को प्रभारी बनाया था और साथ ही पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, और राज्य मंत्री अजीत पाल सिंह को भी चुनावी प्रचार की जिम्मेदारी दी थी। भाजपा ने यादव चेहरा अनुजेश यादव को उतारकर सपा के मजबूत गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश की, लेकिन तेज प्रताप यादव की सपा ने उन्हें हराकर भाजपा के प्रयासों को नाकाम कर दिया।

करहल का इतिहास और सपा की पकड़

करहल सीट हमेशा से सपा का गढ़ रही है। इसे यादव लैंड भी कहा जाता है, जहां पर लोगों के वोट पार्टी के प्रत्याशियों के बजाय सपा के नाम पर पड़ते हैं। इस सीट पर सपा की स्थिति बेहद मजबूत रही है और यही कारण है कि भाजपा ने यहाँ अपने यादव उम्मीदवार अनुजेश यादव को उतारकर सपा के वोट बैंक को चुनौती देने की कोशिश की थी। लेकिन यह धरती नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के नाम से जानी जाती है, और यहाँ पर लोग सपा के साथ खड़े रहे।

करहल सीट का ऐतिहासिक संदर्भ

करहल विधानसभा सीट का इतिहास भी बहुत दिलचस्प है। यह सीट 1957 में अस्तित्व में आई थी, इससे पहले इसे शिकोहाबाद विधानसभा क्षेत्र के तहत रखा गया था। 1957 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार नत्थू सिंह ने यह सीट जीती थी। इसके बाद से करहल सीट लगातार समाजवादी पार्टी के प्रभाव में रही है। 2002 में भाजपा के टिकट पर सोबरन सिंह यादव ने चुनाव जीता, लेकिन बाद में वे सपा में शामिल हो गए। 2007, 2012 और 2017 के चुनावों में भी सपा ने यहाँ लगातार जीत हासिल की।

सपा और दलित वोट: एक नया मोड़

हाल ही में करहल सीट पर एक गंभीर घटना घटी, जिसे लेकर राजनीति में हलचल मची। कहा जा रहा था कि इस सीट पर सपा के नेताओं पर आरोप लगे थे कि उन्होंने एक लड़की को जान से मार दिया, क्योंकि वह भाजपा को वोट देने वाली थी। यह घटना दलित वोट को लेकर हुई बताई जा रही थी और इसने चुनावी माहौल को और भी गरम कर दिया था। हालांकि इस घटना पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कोई बयान नहीं आया, लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा था, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखता था। बावजूद इसके, दलित वोटों ने सपा की ओर रुख किया और तेज प्रताप यादव की जीत हुई।

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आखिरकार सपा का दबदबा कायम

करहल सीट पर सपा की जीत ने यह साबित कर दिया कि यहां यादव समुदाय के साथ-साथ दलित और अन्य समाज के लोग भी सपा के साथ हैं। भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद करहल में सपा का दबदबा कायम रहा। यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए एक प्रतीक है, जो बताता है कि पार्टी का जमीनी स्तर पर मजबूत आधार है और उसकी नीतियाँ जनता के बीच कितनी प्रभावी हैं।

बता दें, अखिलेश यादव “PDA वाला फॉर्मूला” अपनाते है, लेकिन इस मामले में उनका कोई बयान नहीं आया। फिर भी, करहल में सपा की जीत को पार्टी के लिए एक बड़ी सफलता माना जा रहा है, जो आने वाले चुनावों में उनकी राजनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकती है।

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