राजस्थान में 23 वर्षीय दलित युवक आशीष ने घोड़ी पर चढ़कर अपनी बारात निकालने का फैसला किया, जो उस गांव की परंपराओं के खिलाफ था। पुलिस प्रशासन ने मामले की गंभीरता को समझते हुए दो थानों के पुलिस बल और सीआईडी की टीम को तैनात किया। दलित समुदाय के लिए यह कदम केवल शादी की रस्म नहीं, बल्कि सामाजिक समानता के लिए एक नई उम्मीद की किरण थी।
राजस्थान के खैरथल-भिवाड़ी क्षेत्र के लाहडोद गांव में एक ऐसा ऐतिहासिक पल देखने को मिला, जिसने सामाजिक भेदभाव की गहरी जड़ों को हिलाने का साहसिक प्रयास किया। 23 वर्षीय दलित युवक आशीष ने घोड़ी पर चढ़कर अपनी बारात निकालने का फैसला किया, जो उस गांव की परंपराओं के खिलाफ था। दलित समुदाय के लिए यह कदम केवल शादी की रस्म नहीं, बल्कि सामाजिक समानता के लिए एक नई उम्मीद की किरण थी।
डर और विरोध का माहौल: परिवार का संघर्ष
आशीष और उसके परिवार के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं था। लाहडोद गांव में जातिगत भेदभाव और ऊंच-नीच की परंपरा इतनी गहरी थी कि दलित दूल्हे की घोड़ी पर निकासी को गांव का विशेष समुदाय अपनी “मर्यादा” के खिलाफ मानता था। परिवार ने जब आशीष के इस निर्णय को सार्वजनिक किया, तो डर और विरोध का माहौल बन गया। उन्हें अंदेशा था कि बारात के दौरान हिंसा या कोई अप्रिय घटना हो सकती है।
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पुलिस और सीआईडी का साथ: न्याय के लिए सुरक्षा का कवच
गांव में संभावित तनाव को भांपते हुए आशीष के परिवार ने कोटकासिम थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस प्रशासन ने मामले की गंभीरता को समझते हुए दो थानों के पुलिस बल और सीआईडी की टीम को तैनात किया। कोटकासिम और किशनगढ़बास थानों के अधिकारियों ने शादी के दिन गांव में मोर्चा संभाला। पुलिस की मौजूदगी में पूरा गांव एक किले में तब्दील हो गया था। पुलिस और सीआईडी की सतर्कता के चलते बारात शांतिपूर्ण ढंग से निकली, और आशीष ने घोड़ी पर बैठकर गांव की गलियों से गुजरते हुए सामाजिक समानता का संदेश दिया।
दूल्हे का परिवार: समानता के लिए उठाया गया ऐतिहासिक कदम
आशीष के पिता ने कहा कि यह कदम केवल उनके बेटे के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के दलित समुदाय के सम्मान और समानता के लिए उठाया गया है। यह निकासी केवल एक शादी की रस्म नहीं थी, बल्कि सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ एक ऐतिहासिक प्रदर्शन था।
गांव में बदलाव की शुरुआत: नई लहर का संकेत
यह घटना केवल लाहडोद गांव तक सीमित नहीं रही। यह राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों के लिए भी प्रेरणा बन गई, जहां जातिगत भेदभाव अब भी लोगों के सम्मान और अधिकारों को दबाता है। आशीष की घोड़ी पर निकासी ने समाज में नई लहर पैदा कर दी, जो बताती है कि समानता के लिए संघर्ष चाहे कितना भी कठिन हो, बदलाव संभव है।
पुलिस का बयान: कानून और न्याय की जीत
कोटकासिम थाने के अधिकारी नंदलाल जांगिड़ ने बताया कि घटना की शिकायत मिलने के बाद तुरंत कार्रवाई की गई। उन्होंने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना पुलिस की प्राथमिकता है, और इस निकासी को शांतिपूर्ण बनाने में पुलिस का सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।
सामाजिक बदलाव की ओर एक कदम
आशीष की शादी केवल व्यक्तिगत खुशी का अवसर नहीं था, बल्कि यह उस सामाजिक ढांचे को चुनौती देने की एक पहल थी, जो अभी भी असमानता और भेदभाव से ग्रस्त है। पुलिस की मदद और आशीष के परिवार के साहसिक फैसले ने यह साबित कर दिया कि बदलाव संभव है, अगर इसके लिए इरादे मजबूत हों। लाहडोद गांव की यह घटना आने वाली पीढ़ियों को जातिगत भेदभाव के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देती रहेगी।
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