बिहार का एक ऐसा गांव जहाँ सड़क जैसी सुविधा से भी महरूम हैं महादलित

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डिजिटल होते इंडिया में बिहार का एक हिस्सा ऐसा भी है जहाँ तक जाने वाली सड़क है ही नहीं। विदेशों में 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने का दम भरने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश में बच्चे अपने मां बाप के कंधों पर बैठकर स्कूल जाते हैं। इसलिए नहीं क्योंकि बच्चे नाज़ों से पाले जा रहे हैं बल्कि इसलिए क्योंकि गांव से स्कूल तक जाने वाली सड़क साल के 6 महीने पानी में डूबी रहती है। हम यहां बात अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि और खस्ता हालत के लिए हमेशा चर्चा में रहने वाले बिहार की कर रहें हैं।

बिहार का एक जिला है जमुई, जिसके जिला मुख्यालय से महज़ 5 किलोमीटर दूर बरी अट्टा गांव है। इस गांव का वार्ड नंबर 5 पूरी तरह से महादलितों की बस्ती है। इस बस्ती में 50 दलित परिवार रहते हैं। जिनकी जिंदगी आसान नहीं है। क्योंकि जिंदा रहने के लिए एक आम इंसान को जो मूलभूत सुविधाएं चाहिए होती है वो यहाँ है ही नहीं।

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घुटनों तक पानी में स्कूल कैसे जाएं ?

50 महादलित परिवारों की इस बस्ती का जीना दुश्वार है। जिसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि गांव से दलितों के घर तक जाने वाली सड़क ही नहीं है। महादलितों की यह बस्ती साल के 6 महिने घुटनों भर पानी में अपना गुजारा करती है। बरसात के दिनों में इस कच्चे रास्ते से आना-जाना करना जान जोखिम में डालना है। बरसात के दिनों में गांव के बीचो बीच मौजूद एकमात्र स्कूल तक इस बस्ती के बच्चे नहीं पहुंच पाते और जाते भी है तो मां-बाप अपने कंधो पर बैठाकर ले जाते हैं। news18 से बात करते हुए एक ग्रामीण शांतनु पांडे ने कहा, “ बस्ती तक सड़क ले जाने के लिए जिस जमीन की जरूरत है वो जमीन देने के लिए मैं तैयार हूं, लेकिन इस बस्ती तक सड़क बनाने के लिए यहाँ का प्रतिनिधि कभी पहल ही नहीं करता है। हम लोगों के कहने का भी उन पर कोई असर नहीं है। कई बार सांसद जी से कहने पर भी इस रोड को लेकर कोई सुनवाई नहीं हुई है।

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नौजवानों की शादी में अड़चन

इस देश में इंसानों में दलित वो प्रजाति है जिसे जन्म से ही समस्याओं का सामना और संघर्ष करना पड़ता है। यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस बस्ती में सिर्फ सड़क ना होने की वजह से पैदा होने वाले बच्चों तक को संघर्ष करना पड़ता है। दलित महिलाएं जिन्हें प्रसव होने वाला होता है उन्हें बरसात के मौसम में गांव से बाहर नहीं ले जाया जा सकता। बिना किसी अस्पताल की सुविधा के बस्ती में ही प्रसव करवाना पड़ता है। पैदा होने के बाद मूलभूत सुविधाएं और शिक्षा के लिए स्कूल तक जाने में संघर्ष करना पड़ता है। और जवान होने के बाद शादी तक के लिए संघर्ष। क्योंकि इस बस्ती में रोज़ के जीवन को जीने के लिए किए जाने वाले संघर्ष को देखते हुए यहाँ के लड़को के साथ कोई बाप अपनी बेटी नहीं बिहाना चाहता।

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पहले राजनीति करेंगे फिर बिहार देखेंगे नीतीश कुमार :

पिछले 24 सालों में 9 बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए नीतीश कुमार को बिहार के लोगों की जिंदगी खेल लगती है। जैसे वो बार-बार सत्ता के लिए कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में उछल कूद करते रहते हैं वैसे ही मूलभूत सुविधाओं के लिए बिहार की जनता तड़पती रहती है। हर चुनाव में अपने एक वोट से नीतीश कुमार पर भरोसा दिखाने वाली जनता को एक पक्की सड़क तक ना देने का काम नीतीश कुमार के बिहार में हो रहा है। लेकिन नीतीश कुमार की हालिया और मजाकिया स्थिति ये है कि वो तो पहले राजनीति करेंगे पिर बिहार को देखेंगे। चाहें फिर बिहार के  कोने-कोने में लाखों बरू अट्टा गांव क्यों ना बन जाए दलितों की स्थिति बद से बत्तर हो रही है।   

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