सुप्रीम कोर्ट से सहारा प्रमुख सुब्रत राय को बड़ी राहत

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सुप्रीम कोर्ट से सहारा प्रमुख सुब्रत राय को बड़ी राहत मिली है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने आज गुरुवार को अपने फैसले में पटना हाईकोर्ट की ओर से सहारा मामले में जारी नोटिस को रद्द कर दिया है।

साथ ही हाई कोर्ट को नसीहत भी दी कि कि जमानत के मामले में इस तरह के नोटिस जारी ना किया करें। असंबंधित मामलों पर फैसला लेने से बचे।

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि पटना हाईकोर्ट थर्ड पार्टी को भी नोटिस जारी नहीं सकता है। इस तरह से थर्ड पार्टी को नोटिस जारी करना सही नहीं है। उसने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा कर ऐसा किया है। हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत को लंबित रखते हुए थर्ड पार्टी को नोटिस जारी किया, इसके समर्थन नहीं किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघी: सुप्रीम कोर्ट
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कल बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा था कि सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने का निर्देश देकर पटना हाई कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अन्य लोगों की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान इस तरह का आदेश जारी करके हाई कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघी है। सुब्रत रॉय उस मामले में आरोपी नहीं थे, जो पटना हाई कोर्ट के समक्ष था।

जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा, “यह गलत चलन है, जो बढ़ रहा है. जमानत के लिए दायर याचिका में आप उन मामलों की जांच करते हैं जो जमानत पर विचार के लिए अप्रासंगिक हैं। जमानत के लिए यह कैसे प्रासंगिक हो सकता है? या तो आप जमानत खारिज करें या मंजूर करें।”

देश की शीर्ष अदालत ने इससे पहले हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उसने (अदालत ने) समूह की कुछ कंपनियों द्वारा निवेशकों का पैसा वापस नहीं करने को लेकर बिहार के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया था कि वह सहारा प्रमुख को अदालत के समक्ष निजी तौर पर पेश करें।

पीठ ने आज की सुनवाई के दौरान कहा कि हाई कोर्ट को अन्य मुकदमों में इस तरह के आदेश पारित करने चाहिए थे, न कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते वक्त। सीआरपीसी की धारा 438 गिरफ्तारी की आशंका से बचने के लिए जमानत के निर्देश से संबंधित है।

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आपके अधिकार क्षेत्र से बाहरः SC
जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा, “अपने 22 साल के अनुभव में मैंने एक चीज सीखी है कि यह आपके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।” पीठ ने यह भी कहा, “हम यह नहीं कह रहे हैं कि हाईकोर्ट ऐसा नहीं कर सकता। यह (अदालत) कर सकता है, लेकिन उचित प्रारूप और अधिकार क्षेत्र के तहत। (धारा) 438 में नहीं। ” बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि हाई कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने रॉय को अभियुक्त नहीं बनाया है, बल्कि इसने उन्हें योजना पेश करने को कहा है कि आखिरकार वह निवेशकों का पैसा कैसे लौटाएंगे।

पीठ ने कहा, “हम केवल यह कह रहे हैं कि ऐसा (धारा) 438 के तहत नहीं किया जाना चाहिए था।” कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत का अनुरोध किया था और अदालत को केवल इस मामले पर विचार करना चाहिए था कि क्या जमानत मंजूर करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।

शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा, “यदि इस तरह का आदेश सत्र अदालत की ओर से दिया जाता तो हाई कोर्ट उस सत्र न्यायाधीश को आड़े हाथों लेता और यहां तक कि उसे न्यायिक अकादमी में जाने की सलाह भी देता। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई आज गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी।

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