हिंसा से कभी किसी का भला हुआ है ? तो इसका जवाब है हां , जातीय दंगे हो या सांप्रदायिक दंगे…..नेताओ और राजनितिक दलों का भला होना स्वाभाविक है। इन जातीय और साम्प्रादायिक दंगो में हमेशा गरीब और बेकसूर ही बलि का बकरा बनता है। आपने कभी देखा या सुना की किसी जातीय या साम्प्रादायिक दंगो में कोई नेता या उसका परिवार या उसके बेटे उतरे हो ? जबकि यही नेता जाति और धर्म के नाम पर भड़काते है। आजादी के बाद जाति और धर्म के नाम पर कई दंगे हुए जिनमे शायद लाखो बेकसूर लोग बिना वजह के मारे गए। आखिर इसका फायदा किसे होता है ? नेताओं और राजनितिक दलों को क्योंकि इनकी दंगो की आग में वे अपनी राजनितिक स्वार्थ की रोटियां जो सेंकते है।
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1984 सिख दंगा, 1989 का भागलपुर दंगा, 1992 का मुंबई दंगा, 2002 का गुजरात दंगा, 2013 का मुज़फ़्फ़रनगर या 2020 का दिल्ली दंगा हो इन दंगो की आग नेताओं ने भड़काई और इसमें जानें गयी मासूम और निर्दोष लोगो की। और इन दंगो का बखूबी सियासी फायदा भी नेताओं और उनके दलों को मिला। दरअसल नेता लगातार इस जवलंत मुद्दे पर भड़काऊ बयानबाजी कर इस मुद्दे को लगातार हिन्दू-मुस्लिम बनाने की कोशिस करते है और उनकी ये कोशिश कामयाब भी होती है लेकिन इन दंगो की भेट हजारों बेकसूर लोग चढ़ते है।
कभी शरजील इमाम जैसे लोग असम को भारत से अलग करने की बात करते दिखे तो कभी भाजपा नेता कपिल मिश्रा दिल्ली चुनाव को भारत-पाकिस्तान का चुनाव बताकर लगातार भड़काऊ बयानबाजी करते रहे है। जिससे सांप्रदायिक माहौल पैदा कर उसका सियासी फायदा उठाया जा सके।
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इसके बाद जब जब शांति की बात होती है तो वारिस पठान, गिरिराज सिंह, साध्वी प्राची, अनुराग ठाकुर जैसे लोग इसे फिर अपने भड़काऊ बयानों से जवलंत बना देते है। हालाँकि हिन्दू मुस्लिम करने वाले नेता कभी अपने बच्चो को दंगो में नहीं उतारते और न कभी धर्म बचाने की लड़ाई में उन्हें देखा है उनके बच्चो को वे विदेशो में पढ़ाते है,उच्च शिक्षा दिलवाते है और दुसरों के बच्चो को हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लड़ाते है।
ये बात समर्थक और विरोधी दोनों विचारो वाले आम नागरिक को समझने की जरूरत है। हिन्दू-मुस्लिम धर्म के बड़े बड़े नेताओ की आपस में रिश्तेदारी है ये बात आम है लेकिन यही लोग आम जनता को हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर भड़काते रहते है जिससे ये अपना राजनितिक हित साध सके |

क्या आपने इन दंगो में किसी बड़े हिन्दू या मुस्लिम नेताओं के बच्चो को देखा ? यकीनन जवाब होगा नहीं.. क्योंकि पर्दे पर किरदार नजर आते है सूत्रधार तो पीछे से कहानी रचते है | न दंगे हो और न कोई आम नागरिक इस नफरत का शिकार बने, न कोई नेता या नेता का बेटा दंगो में मरे, हालाँकि नेता और उनके बच्चे कभी इस साम्प्रदयिक हिंसा का हिस्सा नहीं बनते ये अलग बात है |
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क्या आपने कभी किसी अमीर व्यक्ति को या उनके बच्चों को हिन्दू-मुसलमान करते देखा ? क्या उनके बच्चो को दंगो में देखा? नहीं । क्योंकि वो जानते है ये सिर्फ नफरत की राजनीती है जिस पर नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते है। दंगो और सांप्रदायिक हिंसा में केवल गरीब का बच्चा ही मरता है |
हम यहाँ आपकों केवल ये समझाने का प्रयास कर रहे है की इस नफरत से सिर्फ नेताओ का भला हुआ है। जरूरत पड़ने पर हम किसी का धर्म नहीं देखते न पड़ोसी का धर्म देखते है| जरूरत पड़ने पर नेता नहीं आता, आएंगे तो वही जिससे आप नेताओ के भड़काने पर नफरत करने लगते हो समझने का प्रयास करे बाकी तो आप समझदार है ही। शिक्षित बनिये और अपने देश को उन्नति के पथ पर लें जाने में अपना सहयोग दे, यही असल देशभक्ति है| बाकि तो सब राजनीति है |
Note- ये लेखक के अपने निजी विचार है
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