जानिए, क्या है आरक्षण? आरक्षण सिर्फ जाति के आधार पर हीं नहीं दिया जाता, क्या आरक्षण हटना चाहिए??

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क्या हैं आरक्षण? क्यों दिया जाता है आरक्षण?

आज हम बात करेंगे आरक्षण की और आरक्षण के वजहों की, क्या आपने आरक्षण को पढ़ा हैं या थोड़ा भी आरक्षण के बारे में कभी जानने की कोशिश की है?? अगर आप आरक्षण के खिलाफ है तो पहले आप पढ़िए की आरक्षण है क्या? आरक्षण क्यों है? कारण क्या है? बहुत हीं साधारण भाषा में आज मैं आपको आरक्षण के बारे में समाझाने की कोशिश करूंगा, सबसे पहले बात करेेंगेेे कि क्या ऐसी परिस्थितियां थीं कि आरक्षण लाया गया, ये लेख पढ़कर आपको थोड़ा तो पता चल हीं जाएगा कि आरक्षण क्या है और आपको ये भी पता चलेगा कि आरक्षण सिर्फ एक हीं प्रकार का नहीं होता और ना आरक्षण सिर्फ जाति तक सिमीत है, आरक्षण के बारे में अगर आप अच्छे से समझेंगे तो पाएंगे कि जाति से आरक्षण से कोई मतलब है हीं नहीं, क्योंकि आरक्षण‌‌ तो हर तरह का होता है, समाज में जो बिल्कुल पिछड़े हैं जातिवादी, छुआछूत भरें समाज के कारण, इसलिए पिछड़े वर्गो को आरक्षण दिया जाता है ताकि उस समुदाय का जीवन का स्तर बड़े व उस पिछड़े समुदाय का नौकरी में हिस्सा हों ताकि वो पिछड़ा समुदाय भी तरक्की करें, महिलाओं को आरक्षण मिलता है, विकलांग लोगों को आरक्षण मिलता है, महिलाओं के लिए बस व मेट्रो में भी आरक्षित डब्बे व आरक्षित सिटे होती है ताकि महिलाओं को सफ़र आदि में दिक्कत ना हों, वो कोटा भी आरक्षण की श्रेणी में हीं आता है और भी कई जगहों पर ऐसा कोटा होता है, उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों को आरक्षण मिलता है, उत्तर-पुर्वी राज्यों में कई ऐसी जगह है जहां कई जगहों को मिलाकर स्वायत्तता दे रखी है, ताकि वो कुछ मामलों में अपना कानून खुद बनाएं और थोड़ा सुरक्षित महसूस करें जैसे बोडो लैंड, गोरखा लैंड आदि, इन क्षेत्रों के समुदायों को सरकार ने स्वायत्तता दे रखी है, ये भी एक तरह से आरक्षण की श्रेणी में हीं आता है।

 

 

 

तमिलनाडु में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण

अब थोड़ी बात करेंगे दक्षिण भारत की, दक्षिण भारत में कई जगह ऐसी है जहां कई समुदायों को मिलाकर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण है, अगर हम तमिलनाडु में देखेंगे तो‌ पाएंगे कि वहां के समुदायों को 69 प्रतिशत तक आरक्षण मिलता है, सुप्रीम कोर्ट की 50% वाली गाईडलाइन के बावजूद भी, सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाइंस है कि किसी समुदाय को 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकते लेकिन कुछ खास मुद्दों में या कुछ खास केस में सुप्रीम कोर्ट वाली गाईडलाइंस लागूं नहीं होती, इसलिए 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण तमिलनाडु में दिया जाता हैं, यहां तक कि 2019-20 से पहले एंग्लो इंडियन को भी आरक्षण दिया जाता था लोकसभा में, मतलब लोकसभा में उनके लिए दो सीटें आरक्षित की जाती थी ताकि वो लोग भी थोड़ा सुरक्षित महसूस करें और उनके हक़ की बात भी संसद में उठें, लेकिन 2019-20 में सरकार ने संशोधन करके इस कोटे को हटा दिया था और भी कई प्रकार के आरक्षण हैं जो अलग-अलग समुदायों को जरूरत के हिसाब से दिए जाते हैंं।

 

 

 

 

पहले छुआछूत, असामनता मिटाओ फिर आरक्षण हटाओ?

लेकिन कुछ लोगों की नज़र आरक्षण पर हीं क्यों जाती है, क्यों कुछ लोग बराबरी नहीं देख सकते, क्यों कुछ लोगों को समानता पसंद नहीं है, कुछ लोगों को आरक्षण दिखता है लेकिन उसके पिछे की वजह नहीं दिखती या वो देखना हीं नहीं चाहते, वज़ह कुछ भी हों हम सबको उस वज़ह को ढूंढ़ना है और उस वज़ह की जड़ पर वार करना है मतलब छुआछूत, असामनता, जातिवाद, प्रान्तवाद आदि पर वार करना है, ताकि किसी के मन में ये शंका ना आएं कि वो अलग है या उसके साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है, सबको मिलकर जाति से उपर उठना है, प्रान्त से उपर उठना है और अपने आप को या किसी को भी एक जाति के नजरिए से नहीं देखना बल्की इन्सानियत के नजरिए से देखना है, ताकि ऐसे समाज की रचना हों जिस समाज में असमानता, रूढ़िवाद, जातिवाद, नस्लवाद के लिए कोई जगह ना हो!

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