आखिर मेन स्ट्रीम मीडिया से क्यों खफ़ा थे कांशीराम ?

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मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की उपाधि दी गई है, लेकिन क्या मुख्यधारा का मीडिया देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए समाज के हर वर्ग को एक नज़र से देखता है?

डॉ. भीमराव आम्बेडकर की मुख्यधारा के मीडिया से कई शिकायते रही है और जब कांशीराम के नेतृत्व में बहुजन आंदोलन उत्तर भारत में फैलने लगा तो वह भी मुख्यधारा के मीडिया के बारे में वहीं अनुभव करने लगे जो डॉ. आम्बेडकर करते थे। बहुजनों को संगठित करते समय कांशीराम अपनी सभाओं में कहा करते थे कि “देश का पूरा मीडिया ब्राहम्णों–बनियों के हाथों में है और इसलिए उसमें उनके जैसे लोगों व उनके आंदोलनों के लिए कोई जगह नहीं है।“

मान्यवर कांशीराम साहेब का जीवन संघर्ष

उनका साफ मानना था कि मीडिया हमें (बहुजन) नोटिस नहीं करती, वह हमसे जुड़ी खबरों को ब्लैक आउट करती है. उस दौरान बहुजन मूवमेंट अपनी प्रगति के चरम पर था तब आर.एस.एस ने बहुजन मूवमेंट को हिन्दू कट्टरपंथियों के लिए सबसे खतरनाक करार दिया. जिसका सीधा प्रभाव मनुवादी मीडिया पर पड़ा और वह ज्यादा सतर्क हो गई.

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मुख्यधारा के मीडिया की इस एकतरफा विचारधारा को देखते हुए कांशीराम जी को अहसास हुआ की जब तक बहुजन समाज स्वंय अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ेगा तब तक उसे दबाया जाएगा.

6 दिसंबर 1973 को बामसेफ का विधिवत गठन किया. बामसेफ को बनाने और उसे फैलाने के दौरान कांशीराम के भाषणों का एक ही मुख्य विषय था, मीडिया।

Manyavar Saheb Kanshi Ram: The Leader Of The Masses

कांशीराम, “वे हमेशा ब्लैकआउट और ब्लैकमेल की नीति अपनाते हैं। वे हमारा कोई भी समाचार नहीं छाप सकते। हमारा दूसरा राष्ट्रीय अधिवेशन पांच दिनों तक दिल्ली में चला और किसी भी समाचारपत्र में एक पंक्ति भी नहीं छपी।’ उनकी गतिविधियों की इक्की-दुक्की खबरें ‘मुख्यधारा के मीडिया’ में आना उन्हें हैरान करने वाली घटना लगती थी। ऐसी एक-दो घटनाओं की उन्होंने अपने भाषणों में चर्चा भी की।”

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24 नवबंर 1980 को कांशी-राम, बहुजन समुदाय को दैनिक समाचारपत्रों के महत्व के बारे में बताते हुए कहते है – ‘दैनिक समाचार-पत्र रोज छपते हैं और उनमें छपे अनेक समाचार हम पढ़ते हैं और उससे रोज ब रोज हमारे दृष्टिकोण में अंतर आता है। इस सत्य को भारत के शासक वर्ग अथवा जातियों ने ब्रिटिशकाल के प्रारम्भ में ही जान लिया था और बाद में चलकर उन्होंने दैनिक समाचार सेवा पर धीरे धीरे ऐसा नियंत्रण कर लिया कि वे इस क्षेत्र के सर्वेसर्वा बन गए। उनकी इसी नीति ने यहां की दलित जातियों के सामने बहुत सी कठिनाईयां खड़ी की।’

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‘जो लोग इस बात से दुखी है कि विशेषाधिकार सम्पन्न वर्ग दलितों तथा शोषितों के मनोमस्तिष्क को प्रभावित कर रहा है, उसे सही करने के लिए उन्हें कुछ कदम उठाने होंगे। दैनिक समाचार सेवा पर उनके नियंत्रण को खत्म करना होगा।’

Thus Spoke Kanshi Ram: Follow Mission, Not Person - Velivada - Educate, Agitate, Organize

इस प्रकाशन को शुरू करने से पहले वे इस बात को जानते थे कि बहुजन समाज के प्रकाशन केवल एक-दो अंक तक ही चल पाते है। वे अपने भाषणों में भी कहते थे कि उनके समाज के लोगों ने एक हजार प्रकाशन शुरू किए लेकिन पहले अंक के बाद उनका जिंदा रहना संभव नहीं हो सका। लिहाजा, प्रकाशन के महत्व और उसे बरकरार रखने की चुनौती दोनों को वे लोगों के बीच अक्सर पेश करते थे।

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मुख्यधारा की मीडिया से परेशान हो कर शुरु किया बहुजन मीडिया

यही वजह रही कि कांशीराम जी ने खुद का मीडिया खड़ा करने की कोशिश की. अनटचेबल इंडिया (अंग्रेजी), बामसेफ बुलेटिन (अंग्रेजी), , अप्रेस्ड इंडिया (अंग्रेजी), बहुजन संगठक (हिन्दी), बहुजन नायक (मराठी एवं बांग्ला), श्रमिक साहित्य, दलित आर्थिक उत्थान, इकोनॉमिक अपसर्ज (अंग्रेजी), बहुजन टाइम्स (दैनिक, हिन्दी / अंग्रेजी) और बहुजन एकता इसी दिशा में गई पहल की कोशिशे थी.

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