डॉ. आंबेडकर का दिल्ली में स्मारक क्यों नहीं? कांग्रेस, भाजपा और आप सरकारों की दलित विरोधी मानसिकता पर सवाल

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दिल्ली में डॉ. आंबेडकर के स्मारक की मांग जोर पकड़ रही है। दलित समाज का कहना है कि कांग्रेस, भाजपा और आप ने बाबासाहेब को उचित सम्मान नहीं दिया। राजघाट में अन्य नेताओं के स्मारक बने, लेकिन आंबेडकर को अनदेखा किया गया। अब दलित समाज ने इन दलों की दलित विरोधी मानसिकता पर सवाल उठाते हुए स्मारक निर्माण की मांग तेज कर दी है। यह सम्मान सामाजिक न्याय और समानता का प्रतीक होगा।

Delhi News: बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के परिनिर्वाण के बाद से ही दलित समाज उनके प्रति उचित सम्मान की मांग करता आ रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस ने जहां देश को नेतृत्व दिया, वहीं दलित समाज और डॉ. आंबेडकर जैसे महान व्यक्तित्व को वह स्थान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। 1956 में डॉ. आंबेडकर के निधन के बाद उनकी अंतिम इच्छाओं और अनुयायियों की भावनाओं की अनदेखी करते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनके पार्थिव शरीर को आनन-फानन में मुंबई भिजवाया। दिल्ली, जो भारत की राजधानी है और जहां देश के महापुरुषों के स्मारक बनाए गए हैं, वहां आंबेडकर का स्मारक बनाने की मांग को ठुकरा दिया गया। शिवाजी पार्क में भी अंतिम संस्कार की मांग को नकार कर, कांग्रेस सरकार ने अपने जातिगत पूर्वाग्रह का परिचय दिया।

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मोदी सरकार की चुप्पी:

आज जब केंद्र में भाजपा की सरकार है और नरेंद्र मोदी खुद को दलितों का हितैषी बताने का प्रयास करते हैं, तब भी दिल्ली में डॉ. आंबेडकर का एक भव्य स्मारक बनाने की पहल नहीं की गई। जबकि राजघाट और आसपास के क्षेत्र में पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के स्मारक बनाए जा रहे हैं। प्रणब मुखर्जी के लिए राष्ट्रीय स्मृति स्थल में स्मारक के लिए जमीन आवंटित हो चुकी है। लेकिन बाबासाहेब, जिनका योगदान संविधान निर्माण से लेकर सामाजिक न्याय तक हर क्षेत्र में अतुलनीय है, उनके लिए ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया। मोदी सरकार द्वारा दलितों के लिए किए जाने वाले वादे केवल भाषणों तक सीमित हैं।

आप सरकार की दोहरी नीति:

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार, जो खुद को वंचित और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधि बताती है, ने भी इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अरविंद केजरीवाल सरकार ने बाबासाहेब के नाम पर कई योजनाओं की घोषणा तो की, लेकिन जब दिल्ली में स्मारक बनाने की बात आती है, तो उनकी सरकार पूरी तरह से चुप्पी साध लेती है। यह दलित समाज के प्रति केवल राजनीतिक स्वार्थ और वोट बैंक की राजनीति को दर्शाता है।

दलित समाज का आक्रोश:

दलित समाज इस उपेक्षा से आहत है। उनका मानना है कि चाहे कांग्रेस हो, भाजपा हो या आम आदमी पार्टी, किसी ने भी डॉ. आंबेडकर के प्रति वह सम्मान नहीं दिखाया, जिसके वे हकदार थे। दलितों के अधिकारों और उनके महापुरुषों के योगदान को हाशिए पर रखना इन दलों की जातिगत राजनीति को उजागर करता है। यह समय है कि दलित समाज इन दलों की उपेक्षा के खिलाफ एकजुट होकर अपनी मांगों को प्रमुखता से उठाए।

दिल्ली में स्मारक बनाना क्यों है जरूरी?

दिल्ली देश की राजधानी है और यहां आंबेडकर का भव्य स्मारक बनाना न केवल उनके योगदान को सम्मान देना होगा, बल्कि यह दलित समाज के संघर्षों और उनके इतिहास को भी राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने का प्रतीक बनेगा। इससे यह संदेश जाएगा कि भारत अब जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर समानता और सामाजिक न्याय के मूल्यों को आत्मसात कर रहा है।

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राजनीतिक दलों की दलित विरोधी मानसिकता:

डॉ. आंबेडकर का स्मारक न केवल दलित समाज की भावनाओं का सम्मान होगा, बल्कि यह भारतीय समाज में समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। भाजपा, कांग्रेस और आप जैसे दलों को अपनी जातिगत और राजनीतिक स्वार्थ की राजनीति छोड़कर इस ऐतिहासिक मांग को पूरा करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो यह स्पष्ट है कि इन दलों के लिए दलित समाज केवल एक वोट बैंक है, जिनकी भावनाओं और अधिकारों का कोई मूल्य नहीं है।

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