दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा, और आम आदमी पार्टी के बीच सियासी संग्राम तेज है, लेकिन दलित समुदाय के मुद्दों पर कोई पार्टी गंभीर नहीं दिख रही। कांग्रेस ने आप को कमजोर बताया, जबकि केजरीवाल ने वोटर लिस्ट में धांधली का आरोप लगाया। तीनों पार्टियां केवल बयानबाजी में उलझी हैं, जबकि दलित वोटरों को बुनियादी सुविधाओं और अधिकारों पर ठोस नीतियों की तलाश है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोटरों के मुद्दे पर तीनों प्रमुख पार्टियों- आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)- के बीच सियासी जंग तेज हो गई है। कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने अरविंद केजरीवाल की पार्टी को हाशिए पर बताते हुए मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच बताया, ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। इस बीच, दलित समुदाय के नेताओं और संगठनों ने तीनों पार्टियों पर सवाल उठाए हैं कि वे दलितों के वास्तविक मुद्दों पर बात करने के बजाय केवल चुनावी खेल खेल रही हैं।
कांग्रेस की दलितों के लिए सहानुभूति असली या सिर्फ चुनावी रणनीति? BJP और आप को किया कटघरे में खड़ा
केजरीवाल का पूर्वांचल वोटरों पर आरोप, दलितों के मुद्दे पर चुप्पी क्यों?
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में दावा किया कि दिल्ली में पूर्वांचल के वोटरों के नाम जानबूझकर वोटर लिस्ट में जोड़े जा रहे हैं ताकि उनकी पार्टी को हराया जा सके। लेकिन सवाल यह उठता है कि केजरीवाल ने दलितों के मुद्दों को लेकर अब तक कोई ठोस बयान क्यों नहीं दिया। आम आदमी पार्टी के सत्ता में रहते हुए भी दलित बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी रही। चाहे झुग्गी-बस्तियों में पानी और बिजली की समस्या हो या रोजगार के अवसरों की कमी, आप सरकार दलित समुदाय को न्याय दिलाने में असफल रही है।
कांग्रेस और भाजपा पर भी उठे सवाल, दलितों के साथ केवल दिखावे की राजनीति?
संदीप दीक्षित ने अपने बयान में कहा कि दिल्ली में मुकाबला केवल कांग्रेस और भाजपा के बीच है, जबकि आम आदमी पार्टी कहीं भी नहीं है। लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों को दलित समुदाय से जुड़े मुद्दों पर घेरने की जरूरत है। भाजपा, जो लंबे समय से दलित उत्थान के दावे करती आई है, ने दिल्ली में दलितों के लिए कोई ठोस नीति लागू नहीं की। वहीं, कांग्रेस के शासनकाल में भी दलित बस्तियों के हालात जस के तस रहे।
दलित वोटरों के लिए कौन सा दल?
दलित समुदाय के नेताओं का कहना है कि तीनों पार्टियों ने दलितों को केवल वोट बैंक के रूप में देखा है। चाहे वह आप हो, जिसने अपने शुरुआती दौर में दलित वोटरों को आकर्षित किया, या कांग्रेस, जिसने पारंपरिक रूप से दलितों का समर्थन प्राप्त किया, या भाजपा, जिसने हाल ही में दलितों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, तीनों पार्टियां चुनावी फायदे के लिए दलितों के मुद्दों को नजरअंदाज करती आई हैं।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर जोर, लेकिन दलितों का भविष्य अधर में
संदीप दीक्षित ने केजरीवाल के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर किसी को वोटर लिस्ट में धांधली की शिकायत है, तो उसे चुनाव आयोग के पास जाना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि चुनाव आयोग क्या केवल वोटर लिस्ट की जांच तक सीमित रहेगा, या दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएगा? दिल्ली के दलित समुदाय को बुनियादी सुविधाओं और रोजगार का अधिकार कब मिलेगा?
दलितों के लिए सशक्त राजनीतिक विकल्प की तलाश
दिल्ली में आगामी चुनाव का मुकाबला चाहे कांग्रेस और भाजपा के बीच हो या आम आदमी पार्टी के दावों के अनुसार केवल भाजपा और आप के बीच, दलित समुदाय के लिए कोई स्पष्ट विजन किसी पार्टी ने पेश नहीं किया है। तीनों दल केवल बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हुए हैं। दलित संगठनों का कहना है कि यदि कोई भी पार्टी उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेगी, तो इस चुनाव में दलित समुदाय के वोटर सशक्त विकल्प की तलाश में स्वतंत्र उम्मीदवारों या छोटे दलों की तरफ रुख कर सकते हैं। दलितों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए समान अवसरों की गारंटी देने वाली नीतियां ही असली बदलाव ला सकती हैं।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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