किसानों के लिए जब साहूकारों और ब्राह्मणों से लड़ गए थे ज्योतिबा फुले

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ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में 11 अप्रैल को हुआ था। ज्योतिबा फुले समाजसुधारक थे। दलितों के उत्थान के लिए उन्होंने अनेक काम किए थे। किसानों की दुर्दशा के प्रति भी वह काफी चिंतित थे। उन्होंने किसानों के कल्याण के लिए मुंबई में भाषण दिया था। आज हम अपने इस लेख में ज्योतिबा फुले के भाषण और किसानों की मांगों के बारे में जानेंगे।

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किसानों की मांगें:

आपको बता दें कि महात्मा ज्योतिबा फुले ने 1882 में आज ही के दिन 10 जनवरी को मुंबई में किसानों की दुर्दशा पर भाषण दिया था। इस भाषण में देश भरके किसानों ने भाग लिया था। इस भाषण में किसानों की अनेक मांगे थी। किसानों का कहना था कि उन्हें न्यूनतम मज़दूरी की सहायता प्रदान की जाए। करों को हटा दिया जाए। राशन प्रणाली के लिए सरकार द्वारा उन्हें भूमि प्रदान की जाए।

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ग्रमीण क्षेत्रों का दौरा:

किसानों की दुर्दशा को गहनता से समझने के लिए ज्योतिबा फुले और दूसरे कार्यकर्ताओं ने पुणे के बाहर ग्रमीण क्षेत्रों का दौरा भी किया था। कुनबी किसानों की दयनीय स्थिति को समझने के लिए बड़ी सभाओं को संबोधित किया था। इसके अलावा ब्राह्मणों और साहूकारों का बहिष्कार करने की योजना भी बनाई गई थीं।

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JYOTIBA PHULE, IMAGE CREDIT BY SOCIAL MEDIA

 

कुनबी किसान कौन होते हैं?

कुनबी का मतलब होता है खेती करने वाला वर्ग या जाति। वैसे कुनबी पश्चिम भारत के कुलीन किसानों की जातियों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द है। कुनबी, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, उत्तरी कर्नाटक, मध्य प्रदेश, केरल में पाए जाते हैं। तेलंगाना के कुछ हिस्सों में कुनबी को आर्य कापू के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि कुनबियों को महाराष्ट्र में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) में शामिल किया गया है। कुनबी में धोनोजे, मसाराम, हिंद्रे, जादव, झारे, खैरे जैसे समुदाय शामिल हैं।

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कल्टीवेटर व्हिपकॉर्ड :

ऐसा कहा गया है कि ज्योतिबा फुले ने किसानो की दयनीय स्थिति को समझने के लिए जिन सभाओं का आयोजन किया था। और इन सभाओँ के लिए जो भाषण लिखे थे वे बाद में “कल्टीवेटर व्हिपकॉर्ड” बन गए थे। दरअसल कल्टीवेटर व्हिपकॉर्ड में किसानों के साथ हुए अत्याचार और दुर्दशा की स्थिति का दुखद चित्रण शामिल है।

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KISSAN KA KODA, BOOK , WRITER JYOTIBA PHULE

 

किसान का कोड़ा:

किसान का कोड़ा ज्यातिबा फुले की किताब है। इस किताब को ज्योतिबा फुले ने 1883 में लिखा था। इस किताब में किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। दरअसल ज्यातिबा फुले ने अपनी इस किताब में कुनबी किसानों की दशा का वर्णन किया है।

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भाषण का संकलन:

अपनी  किताब में ज्योतिबा फुले ने बताया है कि नौकरशाही, साहूकार, बाजार व्यवस्था, जाति व्यवस्था और प्राकृतिक आपदाओं से किसानों की मुश्किलें बढ़ी है। ऐसा भी माना जाता है कि ‘किसान का कोड़ा’ किताब में पुणे के आसपास के ग्रामीण इलाकों में किसानों की सभाओं में फुले द्वारा 1882 में दिए गए भाषणों का संकलन भी शामिल है। ज्योतिबा फुले ने दलितों और किसानों के लिए जो कार्य किए हैं उन्हें आज भी भुलाया नहीं जा सकता है।

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